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फादर्स डे: पत्थर तोड़ा-रिक्शा चलाया और बेटे को बनाया इंजीनियर

मूल निवासी उन्नाव का, बेटे ने शिक्षा पाई रायबरेली में। पिता ने मजदूरी की पंजाब और कानपुर में। तेलंगाना में बायो टेक्नोलॉजी से बीटेक करने के बाद आज लाखों के पैकेज पर बेटा कर रहा नौकरी।

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Jun 2018 03:42 PM (IST)Updated: Sun, 17 Jun 2018 05:05 PM (IST)
फादर्स डे: पत्थर तोड़ा-रिक्शा चलाया और बेटे को बनाया इंजीनियर
फादर्स डे: पत्थर तोड़ा-रिक्शा चलाया और बेटे को बनाया इंजीनियर

रायबरेली(जेएनएन)। उन्होंने कैसी भी मुसीबतें उठाईं लेकिन हिम्मत नहीं हारी। पंजाब में पत्थर तोड़े, कानपुर में रिक्शा चलाया और घटाघर पर अखबार बिछाकर सोए। कभी हाथ से रोटिया बनायीं तो कभी भूखे ही रह गए। उनकी हिम्मत ही हमारे लिए सुगम राह बनाती रही। उन्होंने हमेशा यही कहाकि '.तुम कभी यह न सोचना कि तुम्हारा पिता क्या करता है। हमेशा यही सोचना कि तुम्हें पढ़कर आगे बढ़ना है।' विपरीत हालात और झझावतों से लड़कर उन्होंने हमें किसी लायक बनाया। अब हम उनको क्या दे सकते हैं. उनकी खुशिया कहा हैं? यही सोचते हैं और उसको पूरा करने के लिए प्रयास करते हैं। 17 जून को फादर्स डे है। इस मौके पर दैनिक जागरण आपको एक ऐसी ही शख्स से रूबरू करा रहा है। पत्थर तोड़ा-रिक्शा चलाया और बेटे को बनाया इंजीनियर

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मौजूदा समय में अहमदाबाद में इंजीनियर शिवेंद्र कुमार ने बताया कि हम लोग बहुत गरीब परिवार से हैं। मात्र दस बिस्वा खेती और कच्चा मकान है। पिता भिखारी लाल की कुल यही पूंजी थी। उन्नाव जनपद के हिचौली विकास क्षेत्र अंतर्गत शकरबख्श खेड़ा में हम लोग किसी तरह गुजर बसर करते थे। पापा की मेहतन देखकर तरस आता था लेकिन बच्चे थे, क्या कर सकते थे। ज्यों ज्यों हम लोग पढ़ाई की ओर बढ़े, फीस के पैसे के लाले पड़ गए। फिर पापा हमारे उन्हीं पैसों का इंतजाम करने पंजाब चले गए। वहा उन्होंने मजदूरी की, पत्थर तोड़े। जब लौटते तो हम लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाने के लिए कुछ न कुछ जरूर लाते। नवोदय में हमारा दाखिला हो गया। फिर दूसरे भाई की पढ़ाई का खर्चा खड़ा हो गया तो वे कानपुर आकर रिक्शा चलाने लगे। तंग हालातों के बावजूद-पिता ने हमेशा किया मोटीवेट

हम लोगों से पापा हमेशा यही कहते कि हम रिक्शा चलाएं या मजदूरी करें, तुम लोग कभी ये सोचकर निराश नहीं होना। तुम्हारा काम है सिर्फ पढ़ाई। उनके इन शब्दों ने हमेशा ताकत दी। रायबरेली के नवोदय विद्यालय महाराजगंज में पढ़ाई के दौरान हमारी लगन देख रायबरेली के एक प्रोफेसर सहारा बने। 12वीं पास करने के बाद जब इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करनी थी तो उन्होंने अपने घर में जगह दी। संशिक्षा एकेडमी में निशुल्क प्रवेश मिला। पहली ही बार में जेईई मेंस में मेरा चयन हो गया। कड़ी मेहनत और पाया लक्ष्य, लगी 5.10 लाख की जॉब

तेलंगाना एनआइटी से बायो टेक्नालाजी ब्राच से बीटेक करने के बाद नवंबर 2017 में अहमदाबाद की एक कंपनी में 5.10 लाख रुपये की नौकरी मिल गई। शिवेंद्र ने बताया कि उन्होंने गरीबी को बहुत करीब से देखा है। अब जब उन्हें मौका मिला है तो वह अपने पिता संग भाई-बहन और मा को वो सभी खुशिया देना चाहते हैं, जिनसे अब तक वे वंचित रहे हैं।


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