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प्लंबरिग का काम छोड़कर जनसेवक बने दल बहादुर

1984 में कानपुर में ली भाजपा की सदस्यता 1989 में राम मंदिर आंदोलन में भी सक्रिय रहे। सात बार लड़े विधायकी तीन बार जीते चुनाव। जमीनी नेता के रूप में बनाई अपनी पहचान।

By JagranEdited By: Published: Fri, 07 May 2021 11:17 PM (IST)Updated: Fri, 07 May 2021 11:17 PM (IST)
प्लंबरिग का काम छोड़कर जनसेवक बने दल बहादुर

संदीप सिंह, परशदेपुर (रायबरेली)

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डीह ब्लाक के पद्मनपुर बिजौरी गांव में 17 जनवरी 1957 को जनप्रिय नेता दल बहादुर कोरी का जन्म हुआ। गांव में ही आठवीं तक की पढ़ाई की। युवावस्था में काम की तलाश में कानपुर चले गए। वहीं, पर इन्होंने प्लंबरिग का काम सीखा और मेहनत करके जीवन यापन करने लगे। इसी बीच राजनीति में इनकी रुचि बढ़ी।

वर्ष 1984 में दल बहादुर ने भाजपा की सदस्यता ली और पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में काम करने लगे। 1989 के राम मंदिर आंदोलन में भी भागीदारी की। सन 1991 में भाजपा ने इन्हें सलोन से टिकट दिया। नामांकन करने के लिए जब निकले तो हादसे में पैर टूट गया और चुनाव भी हार गए। इसी क्रम में 1993 में पार्टी ने इन्हीं को फिर उम्मीदवार बनाया तो जीत दर्ज की। इसी क्रम में 1996 में फिर चुनाव जीते और 2002 में समाज कल्याण राज्य मंत्री रहते हुए चुनाव हार गए।

वहीं, 2007 में भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर इन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ले ली। टिकट नहीं मिला तो बसपा में शामिल हो गए और चुनाव लड़े, मगर हार गए। दल बहादुर 2012 में दोबारा भाजपा में शामिल हुए और चुनाव मैदान में उतरे। लेकिन, सपा की आशा किशोर ने उन्हें हरा दिया। फिर 2017 में सपा और कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी को हराकर ये साबित कर दिया कि वह जनता की पहली पसंद हैं।

विधायक बनने के बाद जारी रखी पढ़ाई :

विकास खंड डीह के प्राथमिक विद्यालय बरुआ में विधायक ने कक्षा पांच तक की पढ़ाई की थी। बाद में जूनियर हाईस्कूल परशदेपुर में कक्षा आठ तक पढ़े। विधायक बनने के बाद प्रतापगढ़ जनपद से हाईस्कूल व इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की।

दीदी रोज लेती थीं हालचाल :

विधायक के पुत्र अशोक कुमार ने बताया कि पिता की तबीयत दोबारा खराब होने पर दीदी यानी अमेठी की सांसद व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और इनके प्रतिनिधि विजय प्रतिदिन फोन करके हालचाल पूछते थे। अपोलो हॉस्पिटल में जब उनको भर्ती कराया गया, तब भी दीदी ने मदद की थी।


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