अंत्येष्टि स्थलों का हाल, जर्जर दीवारें और छत बदहाल
- सरकारी योजनाओं से निर्माण में धन की बंदरबांट कर भूले अफसर
रायबरेली : गाजियाबाद हादसे ने हर किसी को झकझोर दिया है। अंत्येष्टि स्थल की छत गिरने से हुई मौतों के बाद बड़ी कार्रवाई भी कर दी गई। कुछ ऐसी ही दशा जिले में भी है। सरेनी, लालगंज, डलमऊ, ऊंचाहार गंगा तट के किनारे हर दिन लोग अंतिम संस्कार में शामिल होने आते हैं। यहां पर बने शवदाह गृह की दशा किसी से छिपी नहीं है। लाखों रुपये खर्च करके निर्माण कराया गया। देखरेख के अभाव में दशा दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है। कुछ ऐसा ही हाल ग्रामीण क्षेत्रों में बने अंत्येष्टि स्थलों का है। यहां पर तो कोई देखने ही नहीं जाता है कि वर्तमान में क्या हाल हैं। दीवारें जर्जर हो चुकी हैं। छत पर कूड़ा-कचरा है। बारिश में पानी निकासी नहीं होने की दशा में छत ढहने का खतरा बना रहा है।
मरम्मत कराने की नहीं किसी को याद
विकासखंड जगतपुर में दो अंत्येष्टि स्थल हैं। पांच वर्ष पहले ग्रामसभा धूता में 14 लाख रुपये की लागत से अंत्येष्टि स्थल बनवाया गया था। वर्तमान में पूरी तरह से जर्जर है। ग्रामसभा टिकट्ठा मुसल्लेपुर में वर्ष 2020 में 24 लाख से निर्माण कराया गया। यहां भी बदहाली है।
गोकनाघाट पर जीर्ण-शीर्ण शवदाह गृह
ऊंचाहार के गोकना गंगा घाट पर अंत्येष्टि स्थल सांसद सोनिया गांधी द्वारा 35 लाख की लागत से वर्ष 2014 में बनवाया गया था। मरम्मत न होने से पूरी तरह जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। एनटीपीसी द्वारा दो वर्ष पहले 2.33 करोड़ की लागत से शवदाह गृह बनाए जाने की घोषणा की थी। अभी तक मामला ठंडे बस्ते में है।
डलमऊ में एक करोड़ से अधिक खर्च
डलमऊ गंगा तट पर बने अंत्येष्टि स्थल निर्माण के लिए एक करोड़ 12 लाख रुपये खर्च किए गए हैं। यहां पर आसपास के जिलों से लोग आते हैं। नगर पंचायत अध्यक्ष पं. बृजेश दत्त गौड़ ने बताया कि 57.58 लाख रुपये से प्रतीक्षालय, शवदाह गृह, रंगाई-पुताई, प्लेटफार्म आदि पर खर्च होना है।
इनकी सुनें
वर्ष 2020-21 में नौ अंत्येष्टि स्थल बने हैं, जिनकी हालत बेहतर है। पुराने आंकड़ों को लेकर जानकारी नहीं है। पड़ताल कराई जाएगी।
उपेंद्र राज सिंह, डीपीआरओ