सुबह ठिठका, फिर शहर चला अपनी रफ्तार
रायबरेली सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना था। शुक्रवार की रात से ही माहौल कड़क था। लोग स
रायबरेली : सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना था। शुक्रवार की रात से ही माहौल कड़क था। लोग सशंकित तो थे मगर, संजीदगी ओढे़ रहे। प्रशासन भी अपने अंदाज में माहौल बनाता रहा। शनिवार की भोर हुई तो रोजाना के बजाय माहौल एकदम विपरीत दिखा। सड़कें सन्नाटे में और चाय-पान के दुकानदार भी नदारद। जहां ठेले खोमचे लगे भी, वहां खाकी पहुंच गई। दस बजे तक लोगों ने घर की देहरी नहीं छोड़ी। हां, फैसला आया तो धीरे-धीरे लोग सड़क पर निकले। शहर का माहौल भांप कर अपने गंतव्यों की ओर बढ़े। फिर शाम हुई तो बाजारें गुलजार हो गईं। फैसले की घड़ी भले ही शनिवार 10.30 बजे तय थी मगर, यहां के लोग उसे सुनने को पहले से ही तैयार हो गए थे। शहर की अल्पसंख्यक बहुल बस्तियां हों या मंदिरों के आसपास वाले मुहल्ले। कहीं कोई तनाव नहीं। पुलिस भी उस संख्या में नहीं तैनात दिखी जो अमूमन तैयारी थी। शायद, एलआइयू (स्थानीय खुफिया इकाई) की रिपोर्ट भी शहर के अमन पसंद माहौल के मुताबिक मिली। सुबह की अजान अपने वक्त हुई और मंदिरों के घंटे घड़ियाल भी तय समय पर बजे। आरती, पूजा अपने ढंग से होती रही। सूरज की किरणें ज्यों खिलखिला कर जमीं पर उतरीं, हल्की सी गर्मी बढ़ी। उसी दौरान फैसला आने लगा। दस बजे से लेकर पूर्वाह्न साढे़ ग्यारह बजे तक लोग तो टेलीविजन से चिपक गए। पल-पल की खबरें देखते और मोबाइल से अपनों को बताते रहे। इसी दौरान प्रशासनिक अमला भी सड़क पर निकला और जो कुछ लोग साहस करके अपनी दुकानें खोलने निकले थे, उन्हें पुलिस वालों ने बंद करा दिया। कुछ लोग दुकानों के बाहर खड़े होकर प्रशासनिक काफिला निकल जाने का इंतजार करते रहे। दोपहर तक शहर कशमकश में चला। शाम हुई तो स्ट्रीट लाइटें जलीं और दुकानों के शटर पूरे उठ गए। फिर तो प्रतिष्ठानों की जगमगाहट सड़कों को अपनी रोशनी से नहलाने लगी। हां, खरीदार भी सड़क पर आ गए, ऐसा लगा मानो सुप्रीम फैसले को सबने शिद्दत से स्वीकार कर लिया और अमन के शहर में खुशमिजाज लोग फिर अपनी उसी गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करने निकल पड़े।
चर्चाओं से बचे लोग
राम मंदिर पर फैसला आया। सबकुछ स्पष्ट हो गया, मगर चाय-पान की दुकानों पर हमेशा होने वाली चर्चाएं शनिवार को मौन व्रत पर रहीं। लोगों को किसी ने अगर कुरेदा भी तो वे सब मुस्कराकर बिना बोले वे चलते बने। यही नहीं, दुकानदार भी चर्चा-ए-जंग करने वालों से हाथ जोड़ते रहे।
गजब की राजनीतिक खामोशी
उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद रात नौ बजे तक किसी भी राजनीतिक दल की ओर से कोई बयान जारी नहीं हुआ। भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस के स्थानीय पदाधिकारी, नेता भी सार्वजनिक स्थलों पर दिखाई नहीं पड़े। शायद उन्हें आभास था कि दिखेंगे तो मीडिया उनसे कुछ न कुछ पूछेगी। बोलेंगे तो वे उलझेंगे।