अपनों की प्रेरणा और त्याग ने बना दिया सेना में अधिकारी
लालगंज (रायबरेली) सेना में अफसर बन दो नौजवानों ने अपने परिवार और गांव का ही नहीं बल्कि र
लालगंज (रायबरेली): सेना में अफसर बन दो नौजवानों ने अपने परिवार और गांव का ही नहीं, बल्कि रायबरेली का भी नाम रोशन किया है। आज जिस मुकाम पर ये दो युवा पहुंचे हैं, उसके लिए उन्होंने अपनों से मिली प्रेरणा और उनके त्याग को श्रेय दिया है। बच्चों की इस उपलब्धि पर परिवारीजन जहां खुशियां मना रहे हैं, वहीं जिला खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा है।
खास बात यह है कि सेना में बतौर अफसर शामिल होने वाले अभिषेक सिंह और विक्रांत प्रताप सिंह दोनों ही युवा कलम और कृपाण की धनी धरती बैसवारे के निवासी हैं। अभिषेक सिंह लालगंज ब्लॉक क्षेत्र के मैदेमऊ के रहने वाले हैं तो विक्रांत प्रताप सिंह का गांव बेहटा कला है। अभिषेक का सेलेक्शन 2015 में एनडीए में बतौर जेंटलमैन कैडेट पद पर हुआ था। पहले वहां तीन साल फिर इंडियन मिलेट्री एकेडमी देहरादून में एक साल का प्रशिक्षण किया। अब यहीं से आर्मी में लेफ्टीनेंट बनकर निकले हैं। जबकि विक्रांत प्रताप सिंह का चयन टेक्निकल एंट्री स्कीम में चार साल पहले हुआ था। फिर गया में कमीशन हुआ और वहां से व्रिकांत लेफ्टीनेंट बनकर फौज में शामिल हो गए। उन्हें आर्मी की लेफ्टीनेंट की वर्दी में परिवारीजनों का सीना गर्व से चौंड़ा हो गया। इधर, गांव में दोनों सैन्य अफसरों के घरों में खुशी का माहौल है। हर कोई उन्हें और उनके परिवारीजनों को बधाई दे रहा है।
पिता के कदमों पर चल रहे दोनों भाई
अभिषेक सिंह दो भाई हैं। अभिषेक सबसे बड़े हैं तो छोटा भाई विवेक है। इनके पिता जितेंद्र बहादुर सिंह भी सेना में कैप्टन रहे। अभिषेक का कहना है कि जब से होश संभाला, तब से पिता को सेना की वर्दी में देखा था। शुरू से ही सिर्फ एक इच्छा थी कि आर्मी में जाऊं। वे कहते हैं कि पिता से प्रेरणा मिली तो मां गायत्री सिंह ने मुश्किलों से लड़ने का हौसला दिया।
विक्रांत के परिवार का सेना से है पुराना नाता
विक्रांत प्रताप सिंह के परिवार में कोई पहली बार सेना में नहीं गया है। बल्कि उनके परिवार का सेना से पुराना नाता है। पिता डीपी सिंह सेना में ब्रिगेडियर थे, तो वहीं दादा राघवेंद्र बहादुर सिंह लेफ्टीनेंट कर्नल और उनके नाना एमबी सिंह कर्नल थे। विक्रांत कहते हैं कि बचपन से ही सेना और देश सेवा की बातें सुनता था। सेना की तमाम कहानियां दादा, नाना और पिता से सुनने को मिली। शायद यही वजह रही कि सेना को छोड़ कोई दूसरा रास्ता मुझे नजर नहीं आया। अपनों के आशीर्वाद से इस मुकाम पर पहुंचा हूं।
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप