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    ट्राइकोडर्मा का फसलों में किसान करें प्रयोग

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    Updated: Mon, 07 Apr 2014 04:50 PM (IST)

    रायबरेली, जागरण संवाददाता : ट्राइकोडर्मा घुलनशील जैविक फफूंदी नाशक दवा है। धान, गेहूं, दलहनी, औषधीय, गन्ना और सब्जियों की फसल में प्रयोग करने से उसमें लगने वाले फफूंद जनित तना गलन, उकठा आदि रोगों से निजात मिल जाती है। इसका प्रभाव फलदार वृक्षों पर भी लाभदायक है।

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    किसान अपनी फसलों सब्जियों को रोगों से बचाने के लिए बहुतायत में रासायनिक दवाओं का प्रयोग करते है। इससे जहां एक ओर फसल की लागत बढ़ जाती है। वहीं फसलों में विष का प्रभाव भी किसी न किसी रूप में रहता है। आधुनिक तकनीकी में ट्राईकोडर्मा का उपचार किसानों के लिए हर हाल में फायदेमंद है। इसकी कीमत या लागत भी रासायनिक दवाईयों से काफी कम है। किसान भाई पांच से दस ग्राम ट्राइकोडर्मा को 25 मिली लीटर पानी में घोल लें। यह घोल एक किलोग्राम बीज को शोधित करने के लिए पर्याप्त है। धान की नर्सरी और अन्य कन्द वाली फसलों में दस ग्राम ट्राइकोडर्मा का घोल एक लीटर पानी में बना लें। नर्सरी पौध को तैयार घोल में आधे घंटे तक भिगो ले, इसके बाद रोपाई कर दें। प्रति एकड़ खेत में एक किलो ग्राम ट्राइकोडर्मा सौ लीटर पानी में घोलकर उसका छिड़काव कर दें। भूमि शोधन के लिए एक किलो ग्राम ट्राइकोडर्मा सौ किलो ग्राम गोबर की खाद में मिलाकर एक सप्ताह तक छाया में रख दें। उसके बाद प्रति एकड़ के हिसाब से खेतों में मिला दें।

    कृषि उपनिदेशक डॉ एसके दुबे ने बताया कि ट्राइकोडर्मा सभी सरकारी बीज भंडारों दवा की दुकानों में उपलब्ध है। किसान इसको अपना कर फसल की लागत कम कर सकते हैं। इसके प्रयोग से फसल का उत्पादन भी अच्छा होता है।