घिसटती पैथालॉजी के भरोसे मरीज लड़ रहे जिदगी की जंग
मर्ज का इलाज तभी हो सकता है जब उसकी पहचान हो जाए।
जागरण संवाददाता, प्रतापगढ़ : मर्ज का इलाज तभी हो सकता है, जब उसकी पहचान हो जाए। यह पहचान करने के लिए जिले में पैथालॉजी व्यवस्था आधुनिक नहीं हो पा रही। जिला स्तर के अस्पताल को छोड़कर ग्रामीण अस्पतालों में अब भी स्लाइड से ही जांच होती है। कई बार यह जांचें मेडिकल कालेजों में फेल हो जाती हैं।
जिले में 27 सीएचसी और 55 पीएचसी हैं। एक अर्बन अस्पताल में भी मरीज देखे जाते हैं। इन ग्रामीण अस्पतालों में खून, यूरिन, बलगम आदि की जांचें मैनुअल सिस्टम पर टिकी हुई हैं। रक्त का नमूना लेकर स्लाइड बनाकर जांच की जाती है। इससे जहां जांच भरोसेमंद नहीं होती, वहीं समय भी अधिक लगता है। जांच रिपोर्ट मरीज के पर्चे के पीछे लिख दी जाती है। जिसे कई बाहर के डाक्टर समझ नहीं पाते। केवल जिला अस्पताल और महिला अस्पताल में दो साल पहले आधुनिक पैथालॉजी मशीन लगाई गई। यहां की जांचें विश्वसनीय होती हैं। स्वास्थ्य सेवाओं को ग्रामीण स्तर पर मजबूत करने के लिए एनएचएम सहित कई योजनाएं संचालित हैं। इसके बावजूद पैथालॉजी व्यवस्था को नया स्वरूप नहीं मिल पा रहा है। जांचों में अंतर
कई बार जांचों में अंतर पाया गया है। सीएचसी, पीएचसी की पैथालॉजी रिपोर्ट में गंभीर रोग की बात जांच में कही जाती है। मेडिकल कालेज जाने पर फिर से खून की जांच होती है तो कई बार मरीज को कोई रोग ही नहीं निकलता। कई बार इसको लेकर हंगामा भी हो चुका है। जेब होती है हल्की
सरकारी अस्पतालों में सभी जांचें निश्शुल्क होती हैं। बाहर वहीं जांचें हजारों रुपये निगल लेती हैं। सरकारी अस्पतालों में मैनुअल पैथालॉजी व्यवस्था न बदलने से बहुत से लोग निजी सेंटरों पर जांच कराते हैं। इससे उनकीे जेब हल्की होती है। इस ओर विभाग अब तक कोई पहल नहीं कर सका। कम हैं पैथालॉजिस्ट
जिले में सभी सरकारी अस्पतालों में पैथालॉजिस्ट पूरे नहीं हैं। कई जगह लैब टेक्नीशियन से काम चलाया जा रहा है। मामला तब फंस जाता है जब जांच रिपोर्ट को कहीं प्रमाण के तौर पर लगाना होता है।