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आंसुओं ने पूछे सवाल, चीखों से टूटा सन्नाटा

कल तक पत्रकार सुलभ रेणुका के सुहाग थे। बिटिया वैष्णवी और फूल से कोमल मासूम बेटे शाश्वत के पापा थे। उनके लिए हर खुशी की फिक्र करते थे। शाम को परिवार उनका इंतजार करता था लेकिन सोमवार को ऐसा नहीं था। सुलभ हमेशा के लिए खामोश हो चुके थे। बोल रहीं थीं तो केवल परिवार की चीखें। सवाल कर रहे थे उनके आंसू। रविवार रात जैसे ही सुलभ के साथ हादसे की जानकारी मिली पूरे जिले में लोग गमगीन हो गए। इंटरनेट मीडिया पर संवेदना का ज्वार सा आ गया। उनकी पत्नी यह मनहूस खबर सुनते ही बदहवास हो गईं। उन्होंने रात से ही कहना शुरू कर दिया कि यह हादसा नहीं हत्या है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 14 Jun 2021 11:36 PM (IST)Updated: Mon, 14 Jun 2021 11:36 PM (IST)
आंसुओं ने पूछे सवाल, चीखों से टूटा सन्नाटा

जासं, प्रतापगढ़ : कल तक पत्रकार सुलभ रेणुका के सुहाग थे। बिटिया वैष्णवी और फूल से कोमल मासूम बेटे शाश्वत के पापा थे। उनके लिए हर खुशी की फिक्र करते थे। शाम को परिवार उनका इंतजार करता था, लेकिन सोमवार को ऐसा नहीं था। सुलभ हमेशा के लिए खामोश हो चुके थे। बोल रहीं थीं तो केवल परिवार की चीखें। सवाल कर रहे थे उनके आंसू। रविवार रात जैसे ही सुलभ के साथ हादसे की जानकारी मिली, पूरे जिले में लोग गमगीन हो गए। इंटरनेट मीडिया पर संवेदना का ज्वार सा आ गया। उनकी पत्नी यह मनहूस खबर सुनते ही बदहवास हो गईं। उन्होंने रात से ही कहना शुरू कर दिया कि यह हादसा नहीं, हत्या है। रात में वह कई बार बेहोश हुई। होश आते ही चीखने लगती। कहती..उन लोगों ने मेरे पति को मार दिया। मां की चीखों में बेटी वैष्णवी का विलाप खो सा जा रहा था। सात साल का बेटा शाश्वत पहले तो रोया और बाद में वह गुमशुम सा हो गया। दोपहर में जब पापा की लाश आई तो उसे पकड़कर बैठ गया। पत्नी व बेटी रोने लगी। बेटा कभी अपने पापा को देखता, कभी उनको उठाने की कोशिश करता, कभी संवेदना व्यक्त करने वालों के चेहरे निहारता। समझ न पाता कि आखिर पापा के साथ क्या हो गया। जो सुलभ अपने बच्चों के लिए जैसे-तैसे हर चीज सुलभ कराते थे, अचानक वही परिवार के लिए दुर्लभ हो गए। वह भी हमेशा-हमेशा के लिए। परिवार की माली हालत अच्छी नहीं थी। बीच में लोन लेकर किराने की दुकान भी खोली, लेकिन वह चली नहीं। फिर भी सुलभ बच्चों के लिए छोटी-छोटी खुशियों का इंतजाम करने में लगे रहते थे। बच्चों की पढ़ाई हो चाहे उनका बर्थ डे हो सब वह अरेंज करते थे। उनके पिता हनुमान प्रसाद कई साल पहले चल बसे थे। दो साल पहले उनकी मां भी बीमार होकर चल बसीं थीं। परिवार की जिम्मेदारी सुलभ पर ही थी। वह मिलनसार व सहयोगी स्वभाव के थे। दोपहर बाद जब शव यात्रा चली तो बेटा शाश्वत भी चला। उसका बुझा चेहरा देखकर लोगों के आंसू बह चले।

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मैं डरने वाली नहीं, मार डालूंगी..

जब सुलभ की शव यात्रा घर से रवाना हुई तो पीछे से पत्नी रेणुका भी दौड़ पड़ीं। गम और गुस्से में उन्होंने सड़क से पत्थर उठाकर कहा, जिन लोगों ने मेरे पति को मारा है, मैं उनको मार डालूंगी। मैं डरने वाली नहीं हूं। पति साहसी थे, सच लिखते थे। मैं भी डरती नहीं किसी से। जो मेरे पति को मारे हैं, वह मुझे भी मार दें, मुझे कोई डर नहीं है। अचानक उनके द्वारा पत्थर उठा लेने पर वहां अफरातफरी मच गई। कुछ महिलाओं ने उनको किसी तरह संभाला।


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