कोरोना में आए प्रवासियों के लिए खोल दी चप्पल की फैक्ट्री
कोरोना काल में परदेस से हजारों प्रवासी श्रमिक अपने घर आ गए। इसमें से कोरोना के डर से काफी संख्या में श्रमिक परदेस नहीं गए। काफी दिनों तक जब काम नहीं मिला तो वह आर्थिक संकट से गुजरने लगे। ऐसे में कहीं से जानकारी मिलने पर वह औद्योगिक क्षेत्र सुखपाल नगर पहुंचे। जहां तय मजदूरी पर सहमति जताने के बाद उनको चप्पल व आंवले का उत्पाद बनाने की फैक्ट्री में रोजगार मिल गया। अब यह श्रमिक यहां से होने वाली आय से खुश हैं। वह परदेस जाने को राजी नहीं हैं। यहां से होने वाली आय से वह गरीबी को मात दे रहे हैं।
प्रवीन कुमार यादव, प्रतापगढ़ : कोरोना काल में परदेस से हजारों प्रवासी श्रमिक अपने घर आ गए। इसमें से कोरोना के डर से काफी संख्या में श्रमिक परदेस नहीं गए। काफी दिनों तक जब काम नहीं मिला तो वह आर्थिक संकट से गुजरने लगे। ऐसे में कहीं से जानकारी मिलने पर वह औद्योगिक क्षेत्र सुखपाल नगर पहुंचे। जहां तय मजदूरी पर सहमति जताने के बाद उनको चप्पल व आंवले का उत्पाद बनाने की फैक्ट्री में रोजगार मिल गया। अब यह श्रमिक यहां से होने वाली आय से खुश हैं। वह परदेस जाने को राजी नहीं हैं। यहां से होने वाली आय से वह गरीबी को मात दे रहे हैं।
कोरोना में दुकानदार से लेकर उद्यमियों का काफी नुकसान हुआ। तीन माह तक कामकाज बंद होने से वह आर्थिक संकट से गुजरने लगे। ऐसे में प्रवासी श्रमिकों के सामने अंधेरा था। ऐसे में शहर के चौक निवासी उद्यमी अनुराग खंडेलवाल ने सदर क्षेत्र के औद्योगिक क्षेत्र सुखपाल नगर में मई माह से व्यापक स्तर पर काम करने के लिए चप्पल की फैक्ट्री खोल दी। इसमें परदेस से आए करीब 50 श्रमिकों को रोजगार भी मिल गया। एक ओर जहां चप्पल बनाने के एवज में रोजाना 500 से 600 रुपये की आय हो रही है, वहीं वह हुनरमंद भी बन रहे हैं।
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कानपुर से मंगाते हैं कच्चा माल
चप्पल बनाने के लिए अनुराग कानपुर से कच्चा माल मंगाते हैं। वह कानपुर के मूरतगंज से रबड़, कैल्शियम, जिक, कार्बन, डीजीपी, पीईजी आदि का निश्चित मात्रा में मिश्रण में गलाकर इसे तैयार किया जाता है। चप्पल बनाने वाली डाई की क्षमता के अनुसार डालकर भाप के द्वारा इसे तैयार किया जाता है।
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बिहार, झारखंड में सबसे अधिक डिमांड
चप्पल की सबसे अधिक डिमांड बिहार, झारखंड सहित अन्य प्रांतों में है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के रायबरेली, जौनपुर, कौशांबी, गोंडा, फैजाबाद, सुलतानपुर, गोंडा सहित अन्य जिलों में भी डिमांड पर चप्पल भेजा जाता है। खास बात यह है कि एडवांस पेमेंट करने पर व्यापारी को छूट का लाभ दिया जाता है।
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15 से 20 रुपये की होती है बचत
प्रति चप्पल तैयार करने के बाद उसकी बिक्री करने के एवज में अनुराग को 15 से 20 रुपये की बचत होती है। जबकि प्रति चप्पल बनाने में करीब 60 रुपये खर्च होता है। 15 रुपये पीस के हिसाब से मुनाफे के बाद इसकी बिक्री होती है। हर रोज 300 से 500 पीस चप्पल तैयार किया जाता है।
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आंवले का भी व्यवसाय चमका
मजदूरों की बढ़ती डिमांड पर अनुराग से आंवले के उत्पाद बनाने की भी फैक्ट्री खोली। प्लांट में आंवले का अचार, मुरब्बा, कैंडी, बर्फी, लड्डू, चूरन आदि तैयार किया जाता है। डिमांड पर उत्पाद को कोलकाता, मध्य प्रदेश, पंजाब, बिहार सहित कई जगहों पर भेजा जाता है।
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पहले परदेस में रहकर प्राइवेट काम करता था। कोरोना की वजह से घर आना पड़ा। काफी दिनों तक जब रोजगार नहीं मिला तो परिवार आर्थिक संकट से गुजरने लगा। चप्पल की फैक्ट्री में रोजगार मिलने से काफी राहत मिली है।
-धीरज, दुजई का पुरवा
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कोरोना में घर आ गया। ऐसे में परदेस में रहकर जो कमाया था, वह सब खर्च हो गया। परिवार का खर्च कैसे चले, यह चिता रात-दिन खाए जा रही थी। फैक्ट्री में काम मिलने से राहत मिली है। रोजाना मिलने वाली मजदूरी से संतुष्ट हूं।
-प्रेमचंद्र सरोज, रूपापुर
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कोरोना में तीन माह तक घर बैठने से काफी नुकसान हो गया। आय न होने से परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा था। चप्पल की फैक्ट्री में काम मिलने से काफी सुकून है। मजदूरी भी रोज मिल जाती है और घर की देखरेख भी हो जाती है।
-मोहम्मद सादिक, प्रतापगढ़ सिटी
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परदेस से आए श्रमिकों को रोजगार मिले। उनको आर्थिक संकट से निजात दिलाने के लिए चप्पल की फैक्ट्री खोली गई है। काफी श्रमिकों को रोजगार भी मिल गया है। काम करने के एवज में रोजाना मिलने वाली मजदूरी से वह संतुष्ट हैं। चप्पल व आंवले के उत्पाद की बिक्री से आय भी हो रही है।
-अनुराग खंडेलवाल, उद्यमी