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सेठ जी, जमीन जान से प्यारी, गहना बेचना मजबूरी

शहरों में रहकर कमाई करने वाले लॉकडाउन के चलते अपने घरों को वापस आ गए तो उनके घर का बजट बिगड़ना शुरू हो गया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 05 Jun 2020 10:41 PM (IST)Updated: Sat, 06 Jun 2020 06:08 AM (IST)
सेठ जी, जमीन जान से प्यारी, गहना बेचना मजबूरी
सेठ जी, जमीन जान से प्यारी, गहना बेचना मजबूरी

संसू, पट्टी : शहरों में रहकर कमाई करने वाले लॉकडाउन के चलते अपने घरों को वापस आ गए तो उनके घर का बजट बिगड़ना शुरू हो गया। इसे संभालने के लिए लोग अब अपने घरों में रखे आभूषणों को बेचकर संकट से उबारने की कोशिश कर रहे हैं।

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पट्टी क्षेत्र के लगभग सभी गांव के अधिकतर लोग शहरों में रहकर परिवार का खर्च चलाते थे। दो माह तक लॉकडाउन रहने के कारण आमदनी का जरिया बंद हो गया। लोग अपने पैतृक गांव लौट आए। यहां आने पर उन्होंने रोजगार के लिए हाथ-पैर मारा, लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा। ऐसे में घर का बजट पूरी तरह से गड़बड़ गया। इसे संभालने के लिए लोग घर में रखे गहनों को सर्राफा व्यापारियों के पास बेचकर परिवार चलाने की अंतिम कोशिश कर रहे हैं। पट्टी नगर के सर्राफा व्यापारी रामचरित्र वर्मा का कहना है कि इस समय सहालग सीजन चल रहा है, यद्यपि सरकार द्वारा शादी विवाह में अधिक भीड़भाड़ जुटाने की अनुमति नहीं है। ऐसे में हमारे यहां ग्राहकों की संख्या काफी कम हो गई है। उधर, शहरों में कमाई करने वाले लोगों का बजट लाक डाउन के चलते गड़बड़ा गया है। इससे वे घरों का नियमित खर्च व शादी विवाह के खर्च को निपटाने के लिए गहने लाकर हम लोगों के यहां बेच रहे हैं। कुछ इसी तरह की बात नगर के रायपुर रोड के दुकानदार धनीराम सोनी का कहना है कि इस समय सोने का भाव काफी ऊंचा है। ऐसे में लोग अपने गहने को अच्छे भाव में बेचकर घरों के खर्च को चला रहे हैं। उन्होंने जब कुछ प्रवासियों से गहने बेचने की मजबूरी जाननी चाही तो उन्होंने बताया कि सेठ जी, आभूषण फिर से वह खरीद लेंगे। अगर पैतृक जमीन बेच दी, तो फिर वह पुरखों की जमीन नहीं खरीद पाएंगे। उसी मिट्टी में खेलकर बड़े हुए हैं, उन्हें उस जमीन से बेहद लगाव है। यह भी बताया कि लगाव तो गहनों से भी है। पहले तो महिलाएं इसे बेचने को तैयार नहीं थी, कइयों को गहने में अपने मायके का जुड़ाव नजर आता है। इसी तरह सर्राफा व्यापारी रमापति मौर्य, अशोक सोनी, बांकेलाल सोनी, आलोक सोनी व भोलानाथ सोनी का भी कहना है कि लाक डाउन से व्यवस्था गड़बड़ा गई है। उसे संभालने के लिए कोई विकल्प नहीं बचा है और वे अपने गहने बेचकर परिवार का खर्च चला रहे हैं। हालांकि लोगों के पास गहना इतना नहीं है कि इसके सहारे लंबा समय निकाल पाएंगे, मगर जब तक है जान, तब तक है जहान। कोरोना संक्रमण काल में कुछ इसी तरह सभी की जिदगी घिसट रही है।


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