सेकेंड लाइफ लाइन के खेवनहारों का मुंबई से है गहरा नाता
आर्थिक राजधानी के रूप में झंडा गाड़ने वाली मुंबई से बरसों का नाता टूटा तो मानों कलेजा मुंह को आ गया। दर-दर की ठोकर खाने वाले लाखों-करोड़ों को मुंबई में कोई न कोई रोजगार मिल ही जाता है।
जासं, प्रतापगढ़ : आर्थिक राजधानी के रूप में झंडा गाड़ने वाली मुंबई से बरसों का नाता टूटा तो मानों कलेजा मुंह को आ गया। दर-दर की ठोकर खाने वाले लाखों-करोड़ों को मुंबई में कोई न कोई रोजगार मिल ही जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों का कई पीढ़ीयों से नाता है। माया नगरी में नौकरी मिली, फिर घंरौंदा बनाया और ठाट-बाट से बच्चों का वैवाहिक संस्कार संपन्न कराया। इस तरह से वहां बने नातों-रिश्तों ने उसे दूसरा घर ही बना दिया। न जाने कितने परिवार अब वहीं के होकर रह गए, जिनकी आप गिनती नहीं कर सकते। दो माह पहले कोरोना संक्रमण के जहर ने इस बरसों पुरानी विरासत और परंपरा को एक झटके में निगल लिया। अब बची हैं वहां की यादें, जिसके किस्से सुना अब वे दिन काट रहे हैं। इन्हीं सबके बीच मुंबई की लाइफ लाइन बने टैक्सी चालकों की बात न की जाए तो बेमानी होगी।
मुंबई में करीब 37 हजार टैक्सी चालकों की संख्या है। ऐसा माना जाता है कि इसमें सबसे अधिक टैक्सी चालक प्रतापगढ़ जिले के हैं। दिन-रात जागने वाली मुंबई नगरी की लाइफ लाइन वहां की लोकल ट्रेनों को माना जाता है। उसके बाद की दूसरी लाइफ लाइन टैक्सी को ही माना जाता है। मुंबई में हर जगह आसानी से उपलब्ध। मुंबई का सेंट्रल लाइन हो, वेस्टर्न या फिर हार्बर लाइन, सभी जगह टैक्सियों की उम्दा सेवा। आज वहां लोकल ट्रेन बंद हैं और टैक्सियां गायब हो चुकी हैं। वहां की सड़कों पर सन्नाटा है। सगरासुंदरपुर प्रतिनिधि के मुताबिक लालगंज तहसील के अजगरा के मीरनपुर गांव निवासी मो. मोबीन कोरोना महामारी के चलते मुंबई से अपनी टैक्सी लेकर गांव आ गए हैं। दैनिक जागरण से बातचीत में वह भावुक हो उठे। कहते हैं, मुंबई में 32 वर्ष से टैक्सी लेकर जीवन यापन कर रहा था। कोरोना के कारण लाकडाउन लग गया और तब से बेकारी आ गई। एक माह पूर्व गांव आकर परिवार के साथ रह रहा हूं। समझ में नहीं आ रहा क्या करूं। मुंबई में टैक्सी की कमाई से बड़े सकून से जिदगी कट रही थी। आधा जीवन टैक्सी चलाकर मुंबई में ही बीत गया। मालूम ही नहीं पड़ा, कब मुंबई में अपना मकान बन गया। लाकडाउन समाप्त होने पर फिर मुंबई जाकर टैक्सी चलाकर कमाई शुरू करूंगा। वहां के जीवन की ऐसी आदत पड़ गई है कि वहां से आने के बाद मन ही नहीं लग रहा। कुछ इसी तरह की भावना लिए बोझवा निवासी अलीम अहमद कहते हैं कि दो माह पूर्व अपनी टैक्सी लेकर गांव आना पड़ा। लॉकडाउन समाप्त होने के बाद मुंबई फिर से पहुंच कर टैक्सी चलाने का काम शुरू कर देंगे। कहते हैं, एक बात बताऊ ं, जो इज्जत मुंबई में टैक्सी चालकों की है, वैसी इज्जत किसी और शहर में टैक्सी चालकों की नहीं हैं। हमने अपनी ईमाननदारी से इस पेशे को सम्मानजनक बनाया है जनाब। इतने खून-पसीने से बनाई अपनी जमीन को छोड़ने के बाद दर्द तो होगा ही। कोरोना का संकट खत्म हो और फिर से हम मुंबई लौट जाएंगे। जगेसरगंज प्रतिनिधि के मुताबिक सदर तहसील के सरायदली गांव निवासी अखिलेश कुमार शुक्ला दो मई को मुंबई से टैक्सी लेकर गांव आ गए। जब तक मुंबई में रहे तब तक यही डर लगा रहता था की कोरोना महामारी के चपेट में न आ जाएं। लॉकडाउन से काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन्हें आशा है कि जल्दी ही कोरोना महामारी की वैक्सीन जल्द ही तैयार हो जाएगी और मुंबई जाने का मौका मिलेगा, तब तक गांव में आराम करेंगे। वह सीने में जलन, आंखों में तूफान सा क्यूं है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूं है...गीत गुनगुनाते हुए मुस्कुरा पड़ते हैं। कहते हैं हमारा ही नहीं इस समय सभी एक ही नाव पर सवार हैं, जो मझधार में बुरी तरह से फंसी है।