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तो संगम तट से राजाराम की बदल गई थी जिदगी की राह

मकर संक्रांति से माघ मेले की शुरुआत हो चुकी है। श्रद्धालुओं की भीड़ मां गंगे के दर्शन व स्नान के लिए प्रयागराज कोने-कोने से पहुंच रही है। भीड़ में कुछ बच्चे बुजुर्ग महिलाएं अपनों से बिछड़ते हैं तो उन्हें खोजने में मशक्कत होती है। माघ मेला क्षेत्र में भूले भटके शिविर ही इनकी सहारा बनते हैं। प्रतापगढ़ जिले के रानीगंज तहसील क्षेत्र के गौरापूरेबदल गांव के पं. राजाराम तिवारी भले ही अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन भूले भटके शिविर का नाम आते ही लोगों की जुबां पर उनका नाम आ जाता है। उनके स्वर्गवासी होने पर यह कमान उनके दो बेटों ने संभाल ली है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Jan 2021 10:23 PM (IST)Updated: Sun, 17 Jan 2021 10:23 PM (IST)
तो संगम तट से राजाराम की बदल गई थी जिदगी की राह
तो संगम तट से राजाराम की बदल गई थी जिदगी की राह

राजेंद्र त्रिपाठी, गौरा (प्रतापगढ़) : मकर संक्रांति से माघ मेले की शुरुआत हो चुकी है। श्रद्धालुओं की भीड़ मां गंगे के दर्शन व स्नान के लिए प्रयागराज कोने-कोने से पहुंच रही है। भीड़ में कुछ बच्चे बुजुर्ग महिलाएं अपनों से बिछड़ते हैं तो उन्हें खोजने में मशक्कत होती है। माघ मेला क्षेत्र में भूले भटके शिविर ही इनकी सहारा बनते हैं। प्रतापगढ़ जिले के रानीगंज तहसील क्षेत्र के गौरापूरेबदल गांव के पं. राजाराम तिवारी भले ही अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन भूले भटके शिविर का नाम आते ही लोगों की जुबां पर उनका नाम आ जाता है। उनके स्वर्गवासी होने पर यह कमान उनके दो बेटों ने संभाल ली है।

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भूले भटके शिविर में लोगों को अपनों से बिछड़ने वालों को मिलाने का कार्य कर रहे हैं स्व. पं. राजाराम तिवारी के बड़े बेटे लालजी तिवारी व छोटे बेटे उमेश चंद्र तिवारी उनके सपनों को साकार कर रहे हैं। प्रतापगढ़ जिले के रानीगंज तहसील क्षेत्र के गौरापूरेबदल गांव के पं. राजाराम तिवारी प्रयागराज में ही रहकर पढ़ाई करते थे। 18 वर्ष की आयु में माघ मेला घूमने गए तो एक वृद्धा अपनों से बिछड़कर फूट-फूटकर रो रही थी। वृद्धा का यह दर्द उनसे सहा न गया तो वह भी रोने लगे। उसी वक्त उन्होंने कुछ अलग हटकर समाज सेवा करने की ठान ली। फिर उन्होंने हर माघ मेला में बिछड़ों को मिलाने की की मुहिम शुरु कर दी। 1946 में उन्होंने भारत सेवा दल की स्थापना कर माघ मेला में वह भूले भटके शिविर चलाने लगे। कुंभ मेला, अर्ध कुंभ मेला जैसे बड़े स्नान पर्व पर पर उन्होंने शिविर के माध्यम से अपनों से बिछड़ने वालों की मदद की। वर्ष 2015 में मुंबई में एक कार्यक्रम में बिग बी अमिताभ बच्चन ने उन्हें इस सराहनीय कार्य के लिए सम्मानित भी किया था। 70 वर्ष तक इस कार्य में वह पूरे निष्ठा भाव से लगे रहे। इसमें उनकी पत्नी शांति देवी भी सहयोग करती थी। 20 अगस्त 2016 को पं. राजाराम तिवारी ने संसार से विदा ली तो यह कार्य उनके दो बेटो ने संभाल लिया। स्वर्गीय राजाराम तिवारी के चार बेटे हैं। बड़े बेटे लालजी तिवारी सीडीए पेंशन विभाग से सेवानिवृत्त होकर होकर प्रयागराज में रहते हैं। प्रकाश चंद्र दिल्ली में व्यवसाय तो रमेश चंद दिल्ली में ही वकालत करते हैं। छोटे बेटे उमेशचंद भी प्रयागराज में ही बड़े भाई के सहयोग में रहते हैं। राजाराम की मौत के बाद भूले भटके शिविर की कमान उनके बड़े बेटे लालजी तिवारी व छोटे बेटे उमेश चंद तिवारी ने संभाल रखी है। इनके साथ करीब डेढ़ सौ स्वयंसेवक संस्था से जुड़े हैं। उमेश चंद्र तिवारी का कहना है कि वह बड़े भाई के साथ पिताजी की मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं। हालांकि इस बार कोरोना संक्रमण से बचाव के चलते पूरी सतर्कता रखनी पड़ रही है। गैर प्रांत के स्वयंसेवकों को इस बार शिविर में नहीं बुलाया गया है। प्रयागराज, प्रतापगढ़ ,जौनपुर ,वाराणसी सहित जनपदों से 50 स्वयंसेवक की इस कार्य में लगे हैं। सभी को मास्क लगाने फिजिकल दूरी रखने सहित पूरी सतर्कता के लिए प्रशिक्षित भी किया गया है। माघ मेले के मकर संक्रांति के पर्व पर इस बार 55 महिला व 7 नन्हें-मुन्ने बच्चों को इनके स्वजन से भटकने पर भूले भटके शिविर के माध्यम से मिलाया गया। उन्होंने बताया कि संस्था द्वारा अब तक 15 लाख से अधिक महिला पुरुष व 30 हजार नन्हें मुन्नों को अपने स्वजनों से मिलाया जा चुका है।


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