वयोवृद्ध अवधी कवि ओंकारनाथ नहीं रहे
जिले के प्रमुख अवधी कवि पं. ओंकारनाथ उपाध्याय का लंबी बीमारी के बाद उनके आवास तौंकलपुर मानधाता में 88 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया। इस पर जिले के साहित्यकारों ने गहरा शोक व्यक्त किया है। अवधी कवि ओंकार का जन्म आठ अगस्त 1930 को हुआ था।
जासं, प्रतापगढ़ : जिले के प्रमुख अवधी कवि पं. ओंकारनाथ उपाध्याय का लंबी बीमारी के बाद उनके आवास तौंकलपुर मानधाता में 88 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया। इस पर जिले के साहित्यकारों ने गहरा शोक व्यक्त किया है। अवधी कवि ओंकार का जन्म आठ अगस्त 1930 को हुआ था। उन्होंने अपने जीवन काल में ¨हदी-अवधी पर साहित्य का सृजन किया, पर अवधी उनकी रचनाओं के केंद्र में रही। अवधी में ही रचित उनकी रचना हमार गांधी पर वर्ष 1986 में उत्तर प्रदेश ¨हदी संस्थान द्वारा उन्हें मलिक मुहम्मद जायसी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
उनके निधन पर गजलकार अनुज नागेंद्र के संयोजन में बाबागंज में श्रद्धांजलि सभा हुई। इसमें अनुज ने कहा कि ओंकारनाथ विपरीत हालात से लड़ते हुए साहित्य का सृजन किया। वह वंदनीय रहेंगे। इस मौके पर राजमूर्ति ¨सह सौरभ ने उनकी कई रचनाओं का जिक्र किया। व्यंग्यकार राजेश प्रतापगढ़ी, सुनील प्रभाकर, गंगा पांडेय भावुक ने भी उनको श्रद्धा सुमन अíपत किए। इसी प्रकार आचार्य अनीस देहाती, फैय्याज अहमद परवाना, अर्जुन मिश्र अनारी, डा. वकील अहमद, विश्वनाथ प्रजापति, अमर नाथ बेजोड़, डा. राजेंद्र राज, अशोक अग्रहरि ने भी इसे साहित्य जगत की बड़ी क्षति करार दिया।
--
राजीव गांधी ने किया था विमोचन
संसू, मानधाता : ओंकारनाथ उपाध्याय के रचे दर्जनों लोकगीत लोकगायक प्रयोग में लाते हैं। इनमें लव-कुश व सीता जी का संवाद देखिए.घोड़ा कोटि जतन हम छोड़ब ना महतरिया, समरिया राजाराम से ठनब है। उनका लिखा इंदिरा खंडकाव्य पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी को बहुत पसंद था। राजीव ने उसका विमोचन उनको बुलाकर दिल्ली में किया था। इधर कुछ साल से उपाध्याय जी शिव शक्ति नामक खंड काव्य की रचना करने में लगे थे, जो स्वास्थ्य खराब होने के कारण पूरी नहीं हो सकी। दिवंगत कवि को केंद्र सरकार द्वारा चार हजार की मासिक पेंशन मिल रही थी। उनकी अवधी भाषा की रचनाओं पर डॉ. मत्स्येंद्र नाथ शुक्ल समेत कई लोगों ने शोध कर डॉक्टरेट की उपाधि पाई।
--
यह रहीं रचनाएं
हमार गांधी, इंदिरा खंडकाव्य, सिपाही, राही, मां की छाती फटती है, कोठा खंडकाव्य।