खेत तुम्हारा और मेहनत हमारी, बनाएंगे आत्मनिर्भर भारत, प्रतापगढ़ के तीन युवा पेश कर रहे मिसाल
बटाई के खेत में सब्जी की खेती कर रानीगंज तहसील के संडिला गांव के तीन युवक जगरनाथ यादव विनोद कुमार यादव राजकुमार पटेल आत्मनिर्भर बनने की मिसाल पेश कर रहे हैं।
धर्मेंद्र मिश्र, प्रतापगढ़। बटाई के खेत में सब्जी की खेती कर रानीगंज तहसील के संडिला गांव के तीन युवक जगरनाथ यादव, विनोद कुमार यादव, राजकुमार पटेल आत्मनिर्भर बनने की मिसाल पेश कर रहे हैं। रोजी-रोटी के चक्कर में कोरोना संकट से भी पहले तीनों मुंबई गए थे। वहां काम नहीं बना और ऐसे में उन्हें उल्टे पांव गांव लौटना पड़ा। तमाम बाधाओं के बावजूद हार नहीं मानी और दूसरे का खेत बटाई पर लिया और उस पर अपनी तकदीर लिख दी। मुंबई से लौटे थे तीनों
रानीगंज तहसील क्षेत्र के संडिला गांव के जगरनाथ उर्फ गब्बर और विनोद यादव मुंबई में किसी तरह रोजगार करके जीवन यापन कर रहे थे। मगर तीन साल मुंबई में रहने के बावजूद उनकी जिदगी की राह आसान नहीं हुई। जगरनाथ और विनोद वापस घर आ गए। यहां पर आने के बाद कई विकल्प पर मंथन किया लेकिन कोई राह नहीं सूझ रही थी। इसी बीच उनके गांव के मित्र राजकुमार पटेल ने उनके सामने सब्जी की खेती का विचार रखा, दोनों सहर्ष तैयार हो गए।
उन्नत तरीके से शुरू की खेती
तीनों साथियों ने सब्जी की खेती को उन्नत तरीके से करने और उससे अच्छी आय करने का संकल्प लिया। इस पर उन्होंने पहले बाजार का अध्ययन किया और फिर सब्जियों के वैज्ञानिक तरीके से करने की सारी विधि को व्यवहारिक रूप से जाना-समझा। इतना सब करने के बाद उनके सामने समस्या आई खेत की, जो उनके पास नाम मात्र की थी। ऐसे में गांव के शिक्षक अजय पांडेय के ढाई बीघा खेत को 25 हजार सालाना पर बटाई पर ले लिया। इस पर मन लगाकर वैज्ञानिक तरीके से सब्जी की खेती शुरू की। इसमें प्रमुख रूप से बैगन, गोभी, परवल, मिर्चा, टमाटर, सेम, पालक मूली, खीरा, चुकंदर, नेनूआ और तुराई जैसी सब्जी उगाने लगे। राजकुमार पटेल ने सब्जी की खेती से ही अब तक दो टैक्टर खरीद लिया है। अब वह ट्रैक्टर से अपनी खेती के साथ दूसरों के खेत की जुताई कर रहा है। जगरनाथ उर्फ गब्बर और विनोद यादव भी आत्मनिर्भर बन चुके हैं।
सफलता के पीछे काम वितरण का मंत्र
इस सफलता के पीछे तीनों साथियों के बीच कार्य वितरण भी है। जगरनाथ के जिम्मे दिन भर खेत की देखभाल है, विनोद मंडी का काम देखता है। राजकुमार खाद, बीज और जुताई की जिम्मेदारी देखता है। साल भर में जो आमदनी होती है, उसमें से पहले खेती की लागत निकाली जाती है। इसके बाद मुनाफा बांटा जाता है। इस साल करीब ढाई लाख रुपये फायदा हुआ। इसमें से तीनों ने अपना-अपना बराबर हिस्सा बांट लिया।
सफलता का कोई शार्टकट नहीं
जगरनाथ का कहना है कि पहले मुंबई रहता था, परेशान रहता था। घर से दूर रहने की परेशानी और महानगर की तमाम अन्य परेशानियों से भी दो-चार होना पड़ता था। अब गांव में ही रोजगार मिल गया और सब्जी की खेती से आत्म निर्भर बन गए हैं। लोग उनकी सब्जी की खेती देखने आते हैं। मोबाइल पर कृषि विभाग की वैज्ञानिक विधि को बड़े ही ध्यान से सुनता हूं। उसी हिसाब से खेती करने से अच्छा फायदा हुआ है। राजकुमार पटेल का कहना है कि सब्जी की खेती से दो ट्रैक्टर खरीद लिया और क्या चाहिए। सफलता का कोई शार्टकट नहीं है भइया, मेहनत से बहुत कुछ पाया जा सकता है। हमने इस बार प्लान किया है कि बटाई पर पांच बीघे और खेत लेकर उस पर भी कई अन्य प्रकार की सब्जियां उगाएंगे, उससे भी अच्छी आमदनी होगी।