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यहां तो इलेक्ट्रॉनिक चाक से गढ़े जा रहे दीये

गोतनी दीपावली के नजदीक आते ही लोग त्योहार की तैयारियों में जुट गए हैं।घर-आंगन को रोश्

By JagranEdited By: Published: Wed, 27 Oct 2021 10:46 PM (IST)Updated: Wed, 27 Oct 2021 10:46 PM (IST)
यहां तो इलेक्ट्रॉनिक चाक से गढ़े जा रहे दीये
यहां तो इलेक्ट्रॉनिक चाक से गढ़े जा रहे दीये

गोतनी : दीपावली के नजदीक आते ही लोग त्योहार की तैयारियों में जुट गए हैं।घर-आंगन को रोशन करने के लिए कुंभकार के चाक पर दीये भी आकार लेने लगे हैं। कुम्हार दीपक बनाने में जुटे हैं, ताकि दीपावली पर आमजन के घर-आंगन और प्रतिष्ठान रोशन हो सकें। हालांकि दीये पर भी महंगाई की मार नजर आ रही है। कुम्हारों को खुशी की बात यह है कि मोदी ने भी अपने अभिभाषण में देशवासियों से स्वदेशी अपनाने की अपील की है। इससे प्रभावित होकर लोगों द्वारा चीनी उत्पादों के बहिष्कार से दीये की मांग बढ़ी है। वैसे कुंम्हारों का कहना है कि चीनी आइटमों को लेकर भले ही लोग कम रुझान दिखा रहे हों, लेकिन हमारे धंधे में बढ़ोतरी पर कोई खास असर भी नहीं पड़ा है।

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कुंडा के दिलेरगंज गांव के कुम्हार गंगा प्रसाद दिन रात एक कर मिट्टी के दीये बनाने में जुटे हैं। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री ने दो वर्ष पूर्व कुछ कुम्हारों को इलेक्ट्रॉनिक चाक दिया था, लेकिन हम लोगों के पास कोई सरकारी मातहत पूछने भी नहीं आया। इसलिए हमने स्वयं इलेक्ट्रॉनिक चाक बनवा लिया। गणेश लक्ष्मी, मटका, हंड़िया, बड़ी दियाली सहित प्रतिदिन पांच सौ से सात सौ दीये बना रहे हैं। इसमें उनकी बेटी पूजा भी मेरा साथ देती है। अब अगले महीने लगन शुरू होने वाली है और शादी व ब्याह के आर्डर आने लगे हैं। थोड़ी देर चुप रहने के बाद तभी राम अधार बोल पड़ते हैं। भैया ई आपके दैनिक जागरण अखबार के मुहिम बहुत बढि़या बा। कम से कम हमार लोगन के हाल सरकार तक तो पहुंची। सुजौली गांव के अखिलेश प्रजापति बताते हैं कि पहले हाथों से चाक को घुमाकर मिट्टी के दिये व अन्य सामान को तैयार किया जाता था। अब इलेक्ट्रॉनिक चाक से कम से कम समय में अधिक से अधिक सामान तैयार कर रहे हैं। पहले जहाँ दिन भर चाक चलाकर दो सौ दीपक ही बना पाते थे। अब इलेक्ट्रॉनिक चाक की मदद से चार गुना तक दीपक बना रहे हैं। अब पहले से ज्यादा आर्डर मिलने लगे हैं। और आय भी बढ़ी है।

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दीपावली में मिट्टी के दीपक बेहतर हैं। इनसे पवित्रता के साथ साथ पर्यावरण का भी संतुलन बना रहता है। इसके अलावा हस्तशिल्प को भी संरक्षण व प्रोत्साहन मिलता है। -अजय यादव, जिला पंचायत सदस्य

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हमें मिट्टी का दीपक जलाकर विलुप्त हो रही संस्कृति को नया जीवन देना होगा।ऐसा हम तभी कर सकते हैं जब हम स्वदेशी अपनाएंगे और सच्चे मायने में यही उन दीपक बनाने वाले लोगों के लिए दीपावली का उपहार होगा।

- रवि यादव, प्रबंधक, ज्ञानोदय इंटर मीडिएट कालेज कुसाहिल बाजार


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