Move to Jagran APP

..दवा के लिए उतरे, ट्रेन चली गई और बापू रुक गए

प्रयागराज से गांधी की तमाम यादें जुड़ी हैं। आनंद भवन में आज भी उनकी सारे यादों को सहेज कर रखा गया है। उनके सोने के कमरे से लेकर पढ़ने वाली किताबें भी यहां सुरक्षित हैं।

By Edited By: Published: Tue, 01 Oct 2019 08:01 PM (IST)Updated: Tue, 01 Oct 2019 08:01 PM (IST)
..दवा के लिए उतरे, ट्रेन चली गई और बापू रुक गए
..दवा के लिए उतरे, ट्रेन चली गई और बापू रुक गए

ज्ञानेन्द्र सिंह, प्रयागराज संगमनगरी की जितनी ख्याति ऐतिहासिक, धार्मिक और साहित्यिक कारणों से है उतनी ही देश की आजादी के लिए हुए आदोलन में इस धरती से इसके लिए उठी आवाज की भी। वर्ष 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो जैसा नारा आनंद भवन में तय हुआ था, बापू की मौजूदगी में। संगमनगरी में बापू से जुड़ी कई यादें हैं। अपने जीवन काल में वह छह बार यहां आए थे और पांच बार आनंद भवन में ठहरे थे। आज दो अक्टूबर को महात्मा गाधी को उनकी 150वीं जयंती पर समूची दुनिया याद करेगी। संगम नगरी भी इसमें पीछे नहीं होगा। यहां की मिट्टंी से उनका खासा लगाव रहा है। बापू पहली बार पांच जुलाई 1869 को प्रयागराज की धरती पर उतरे थे। यह भी एक इत्तेफाक की वजह से। वह दक्षिण अफ्रीका से लौटे थे और ट्रेन से कोलकाता से राजकोट जा रहे थे। तबीयत खराब हुई तो दवा लेने के लिए इलाहाबाद जंक्शन पर उतर गए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो.योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि स्टेशन के बाहर चौक साइड से दवा लेकर जब वह लौटे तो ट्रेन जा चुकी थी। स्टेशन मास्टर ने उनका सामान ट्रेन से उतार लिया था। बापू तब कैलिनर होटल में रुके, उनका यह प्रवास दो दिन का था। करीब 40 साल तक आनंद भवन के चीफ केयरटेकर रहे मुंशी कन्हैयालाल के दामाद श्यामकृष्ण पाडेय के मुताबिक आखिरी बार बापू का जून 1942 में आना हुआ था। यहां आनंद भवन में भारत छोड़ो आंदोलन का मसौदा तय होना था। कांग्रेस वर्किग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की अति गोपनीय बैठक हुई थी। इसमें गांधी जी के साथ ही डॉ.राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, जवाहर लाल नेहरू, राजगोपालाचारी, सीआर दास, जेबी कृपलानी आदि नेता बैठक में शामिल हुए थे। वर्धा में कांग्रेस वर्किग कमेटी की औपचारिक बैठक हुई थी। फिर आठ अगस्त 1942 को अखिल भारतीय काग्रेस की बैठक मुंबई (तत्कालीन बंबई) के ऐतिहासिक ग्वालिया टैंक मैदान में हुई। वहां गाधीजी के भारत छोड़ो नारे के प्रस्ताव को काग्रेस कार्यसमिति ने कुछ संशोधनों के बाद स्वीकार लिया और नौ अगस्त से देशव्यापी आदोलन की शुरुआत हुई। यह विश्व के इतिहास में अगस्त क्रांति कहलाती है। बापू दो बार काग्रेस की बैठकों के सिलसिले में प्रयागराज आए थे। दरअसल, तब कांग्रेस का मुख्यालय स्वराज भवन था। उन्होंने कमला नेहरू अस्पताल की आधारशिला रखी थी। विजय लक्ष्मी पंडित और इंदिरा गांधी की शादी में भी वह आए थे। उनकी यादों को अब भी आनंद भवन में सहेज कर रखा गया है। इनमें तीन बंदरों का छोटा स्टेच्यू, चरखा, पलंग, पूजा के बर्तन, कुर्सी, मेज जैसे सामान हैं। हरिजन और यंग इंडिया पत्रिका की मूल प्रति भी यहां रखी है। आनंद भवन में जहां वह रुकते थे, उसी शयन कक्ष में उनके सभी सामान संरक्षित हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से था महात्मा गांधी का गहरा नाता प्रयागराज : महात्मा गांधी का इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भी गहरा नाता था। जब वह पहली बार प्रयागराज आए थे, तब इलाहाबाद विश्वविद्यालय भी गए थे। प्रो.योगेश्वर तिवारी ने बताया कि विश्वविद्यालय परिसर स्थित वटवृक्ष के नीचे ग्रीन पंफलेट पर दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों की समस्याओं को दर्शाते हुए उनके उन्मूलन की मांग की थी। फिर उसे यहां से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र में छपवाने भी पहुंचे थे। विश्वविद्यालय के तत्कालीन वाइस चांसलर प्रो.अमरनाथ झा, प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रो.जेके मेहता, प्रो.रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी, प्रो.रसाल, ईश्वरी प्रसाद और राम प्रसाद त्रिपाठी आदि से उनके बेहतर रिश्ते थे। अर्थशास्त्री जेके मेहता ने सलाह दी थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी की कमर तोड़ने के लिए अपनी मांग कम करने का देशवासियों से आह्वान होना चाहिए। इसके बाद ही एक वस्त्र धारण करने लगे। प्रो.मेहता को गांधी के पत्र व पर्चे विश्वविद्यालय में संरक्षित कर रखे गए हैं।

loksabha election banner

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.