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जब परिवार ने ललकारा तो कोरोना हारा

कोरोना का कहर जब पूरे परिवार पर टूट पड़े तो क्या होगा। उसकी जान कैसे बचेगी।

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 May 2021 10:56 PM (IST)Updated: Fri, 14 May 2021 10:56 PM (IST)
जब परिवार ने ललकारा तो कोरोना हारा
जब परिवार ने ललकारा तो कोरोना हारा

राजनारायण शुक्ल राजन, प्रतापगढ़

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कोरोना का कहर जब पूरे परिवार पर टूट पड़े तो क्या होगा। उसकी जान कैसे बचेगी। कौन उसे खाना, पानी दवा देगा। क्या वह परिवार कभी संभल पाएगा..। इस तरह के सारे सवालों का जवाब हैं प्रधानाध्यापिका मीना पुष्पाकर। वह और उनके परिवार के छह सदस्य कोरोना महामारी के मुंह से अगर बचे हैं तो केवल इसलिए क्योंकि उनके साथ उनका परिवार था। भले ही सब संक्रमित थे, पर एक दूसरे को हौसला देते रहे।

शहर के अजीत नगर की मीना की तैनाती मकंद्रूगंज में है। पंचायत चुनाव में ड्यूटी करके आने के तीसरे दिन से उनको शरीर में दर्द, बुखार व उलझन महसूस हुई। फिर उनकी बहन रीना व कामिनी को वही लक्षण होने लगे। जब तक लोग कोरोना की आशंका व्यक्त कर पाते भाई अमलेश, भाभी वंदना, चाचा महेंद्र प्रताप और बृजेश प्रताप बताने लगे कि उनको किसी चीज की गंध-दुर्गंध नहीं आ रही है। बदन में दर्द है। खाना अच्छा नहीं लग रहा। गले में कुछ फंसा सा लग रहा है। अब इन लोगों को लगा कि कोरोना का अटैक हो गया। मीना ने अपनी मित्र स्वास्थ्यकर्मी वत्सला सिंह को फोन करके मदद मांगी। कहा कि लगता है हम लोग नहीं बचेंगे। फौरन मेडिकल टीम पहुंची। सैंपल की जांच की तो सब के सब संक्रमित मिले। यह सुनकर घर के लोग एक बार तो इतने निराश हो गए कि जैसे जीने की उम्मीद ही खोने लगे। इस पर मीना ने उनको संभाला। सबको अलग कमरे में आइसोलेट किया।

किसी ने पकड़ी रसोई, कोई बना नर्स

मीना ने रसोई संभाली। किसी ने सफाई का काम पकड़ा तो कोई सैनिटाइजिग का काम करने लगा। सब संक्रमित थे, ऐसे में किसी से बचने की जरूरत नहीं थी। पूरे परिवार के लिए समय पर नाश्ता, काढ़ा, भोजन का इंतजाम हुआ। एक सदस्य नर्स की तरह सबको दवा देने, गरम पानी देने, गरारा कराने, भाप देकर छाती में जमे कफ को बाहर निकालने में जुट गया। एक मरीज के जिम्मे केवल यह काम दिया गया कि वह फोन करके, वीडियो कालिग करके रिश्तेदारों को हाल चाल बताए व कोरोना से बचने को जागरूक भी करे।

अंत्याक्षरी खेलकर किया मनोरंजन

संक्रमित होकर भी घर में कोरोना की चर्चा नहीं होती थी। मानसिक रूप से स्वस्थ रहने को घर की लॉबी में सब दूर-दूर बैठाकर अंत्याक्षरी जैसे मनोरंजक गेम खेले। दादी, नानी के किस्से सुने और सुनाए। पढ़ाई और राजनीति पर बातें कीं। हफ्ते भर की इस कवायद और परिवार के साथ ने कोरोना को मात दे दी। जांच में सबकी रिपोर्ट निगेटिव आने पर खुशी का ठिकाना न रहा। मीना कहती हैं कि शुरू में कोरोना के लक्षण न समझने की भूल जरूर हुई, पर परिवार ने ऐसा साथ दिया कि कोरोना बेचारा हारा और जिदगी की जंग में जीत मिली।


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