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बड़ी बेटी बनी उत्तराधिकारी

By Edited By: Published: Mon, 18 Nov 2013 10:26 PM (IST)Updated: Mon, 18 Nov 2013 10:27 PM (IST)

मुन्ना मिश्रा, प्रतापगढ़ : वह पिता तो थे ही, हमारे गुरु भी थे। उनका निधन हमें अनाथ कर गया। अब हमें कौन देगा दिशा, यह सवाल जेहन को मथने लगा है।

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जगद्गुरु की बड़ी बेटी सुश्री विशाखा त्रिपाठी ने हमेशा अपने पिता कृपालु जी को अपना गुरू माना है। पिता द्वारा चलाए गए राधे-राधे के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने अपनी गृहस्थी नहीं बसाई। कभी भारत तो कभी अमेरिका तो कभी कनाडा में भ्रमण कर करके अपने पिता के सपने को पूरा करती रहीं। बचपन से ही अपने पिता के हर संघर्ष में साथ देने वाली बड़ी बहन को देखकर छोटी बहनों ने भी विवाह नहीं रचाया।

सुश्री विशाखा बताती हैं कि परिवार में किसी को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि महान व्यक्तित्व का निधन इस तरह हादसे में हो जाएगा। बड़ी बेटी होने का पूरा सम्मान और अधिकार भी कृपालु जी विशाखा को ही देते थे। यही वजह रही कि अपनी जन्मभूमि के ट्रस्ट यानी मनगढ़ धाम की बागडोर उन्होंने बड़ी बेटी विशाखा को ही सौंप दी थी।

आदर्श पिता की भूमिका निभाते हुए जगद्गुरु ने अपनी दोनों छोटी बेटियों को भी बराबर का प्यार और सम्मान दिया था। बेटी सुश्री श्यामा देवी को प्रेम मंदिर वृंदावन और उससे छोटी बेटी सुश्री कृष्णा को बरसाना मंदिर ट्रस्ट का प्रमुख बनाया था। कृपालु जी ने अपने रहते ही ऐसी पारदर्शी व्यवस्था कर दी थी कि अब उनके न रहने पर बहनों में किसी प्रकार का मनमुटाव नहीं होगा। इसके अलावा उन्होंने संत होने को चरितार्थ करते हुए अपना जीवन बिताया और अपने नाम कोई भी संपत्ति नहीं रखी। अंत्येष्टि के दौरान जगद्गुरु की तीनों बेटियां एक दूसरे से लिपटकर रो रही थीं। छोटी बहनें सुश्री विशाखा से कह रहीं थीं कि दीदी अब तो आप ही सब देखना है। बहनों के मुख से यह बात सुन विशाखा की आंखों से आंसुओं की धारा और तेज बह चली।

इसी बीच उनके बड़े भाई घनश्याम त्रिपाठी ने आकर उन्हें समझाया कि अब धैर्य रखना है। जो लोग घर के बड़े हैं, उनकी तो अब खास जिम्मेदारी है। इसके थोड़ी ही देर बाद बहनों ने खुद को संभाला और एकटक पिता की जलती चिता को देखने लगीं।

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