बच्चों ने सीखी संवेदनशीलता अपनाने की भावना
हर बच्चे की प्रथम पाठशाला परिवार होती है, लेकिन जागरण की संस्कारशाला में बच्चों को जीवन का ज्ञान दिया गया।
(संस्कारशाला)
जागरण संवाददाता, पीलीभीत :
हर बच्चे की प्रथम पाठशाला परिवार होती है। वह परिवार में ही रहकर एक-दूसरे के प्रति होने वाले संस्कारों के बारे में जान पाते हैं। उसी अनुरूप बच्चे बड़ों के साथ व्यवहार करते हैं। अगर बच्चे बड़े होकर संस्कारवान बन जाएं, तो सारी मेहनत सफल हो जाती है। आज बच्चों में संस्कारों का अभाव होता जा रहा है, जिसे कायम रखने की जरूरत है। शहर के संतराम सरस्वती शिशु मंदिर अशोकनगर में बच्चों का प्रवेश होते ही संस्कार दिए जाने की शिक्षा शुरू हो जाती है। प्रत्येक बच्चों को सिलेबस के अनुरूप पढ़ाया जाता है, जिसे पढ़कर अपने उद्देश्यों को हासिल करते हैं। बच्चों में संस्कार पैदा करने के लिए दैनिक जागरण की ओर से संस्कारशाला कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें छात्र-छात्राओं ने बढ़-चढ़कर उत्साह दिखाया। बच्चों ने जागरण संस्कारशाला में पिछले दिनों प्रकाशित संवेदनशीलता से बदलेगा समाज कहानी को पूरे मनोयोग से सुना। कहानी में बताई गई चीजों पर अमल करने का संकल्प लिया।
अंसेबली के दौरान ड्रमंड राजकीय इंटर कालेज के प्रवक्ता एवं राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक डॉ. दीनदयाल शर्मा ने जागरण संस्कारशाला की कहानी बच्चों के लिए काफी उपयोगी करार दिया। डॉ.शर्मा ने बताया कि आज लोग पाश्चात्य संस्कृति को अपना रहे हैं, जो किसी भी दशा में उचित नहीं है। इसी वजह से लोग देश की संस्कृति से अलग होते जा रहे हैं। दैनिक जागरण का संस्कारशाला कार्यक्रम काफी प्रशंसनीय कदम है, जिसकी आज के दौर में जरूरत है। बच्चों को 'मैं नहीं हम-संवेदनशीलता से बदलेगा समाज' कहानी सुनाकर कुछ सीख लेने की अपील की। उनकी कहानी को बच्चे पूरी तन्मयता से सुन रहे थे। अंसेबली के बाद स्कूल सभागार में कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें शिक्षक डॉ.शर्मा ने जागरण संस्कारशाला में प्रकाशित कहानी मैं नहीं हम को सुनाया। उन्होंने बच्चों को आरुषि और रिया की कहानी को सुनाया, जो आपस में सहेलियां हैं। दोनों सहेलियां चकोतरा के पेड़ के नीचे दोनों बैठी थी। छोटा सा चकोतरा आरुषि के सिर पर गिरता है। उसने देखने के बाद पता चलता है कि गिलहरी का बच्चा सिर पर गिरा है। दोनों व्याकुल हो गई। दोनों ने अपने माता-पिता को जाकर सूचना दी। गिलहरी को किसी तरह बचाने के लिए जुगत लग गई। अंत में एक डिब्बे में गिलहरी को लेकर आरुषि, रिया समेत तीनों पशु अस्पताल पहुंची, जहां पर पूछा क्या इलाज की फीस जाती है। इस पर डॉक्टर ने कहा : नहीं मुफ्त इलाज होता है। इलाज करने के बाद डॉक्टर ने बताया कि गिलहरी खुद ही पेड़ पर चढ़ने लगेगी। इस कहानी से उद्देश्य स्पष्ट होता है कि हम सभी को संवेदनशीलता बनाए रखने की जरूरत है। शिक्षक ने कहानी समाप्त होने के बाद बच्चों से अलग-अलग पांच प्रश्न पूछे। पहला प्रश्न था कि पेड़ से आरुषि के सिर पर कौन सा पशु गिरा? प्रश्न समाप्त होने के बाद बच्चों ने बताया कि गिलहरी। दूसरा प्रश्न पूछा गया कि क्या गिलहरी के बच्चे को आरुषि अस्पताल ले जाने में सफल हुई? जवाब दिया गया हां। डाक्टर ने उन तीनों को कौन सी महत्वपूर्ण जानकारी दी? बताया गया कि बहुतों की जान बच सकती है। चौथे पश्न में मम्मी ने आरुषि को क्यों शाबाशी दी? पशुओं की जान बचाने पर। अंत में रिया ने सॉरी क्यों कहा? इस सवाल का भी बच्चों ने जवाब दिया। कहानी को सुनकर बच्चों के अंदर संवदेनशीलता और पशु-पक्षियों की मदद करने का भाव जाग्रत हुआ।
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जागरण की ओर से समय-समय पर कार्यक्रम किए जाते हैं, जो बच्चों के लिए ज्ञानवर्धक साबित होते हैं। संस्कारशाला से बच्चों को बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। जागरण का यह कदम सराहनीय है। बहुत सारे जीवजंतु है, जिन पर दया करने की जरूरत है। दया स ही जीवजंतुओं का संरक्षण किया जा सकेगा। परमात्मा ने पक्षियों को भी पृथ्वी पर जन्म दिया है। उनके प्रति संवेदनशील रहने की आवश्यकता है। सरकार की ओर से पशु-पक्षियों के संरक्षण की दिशा में कार्य किए जा रहे हैं। जीवों पर दया करेंगे। अपने घरों की छत पर पानी और अनाज के कुछ दाने डालकर पक्षियों की सेवा की जा सकती है। मैं नहीं हम की भावना को आत्मसात करना चाहिए, तभी समाज का सर्वांगीण विकास हो सकेगा।
-ओम प्रकाश दीक्षित, प्रधानाध्यापकसंतराम सरस्वती शिशु मंदिर, अशोकनगर (पीलीभीत)------------------------फोटो 19 पीआइएलपी 4
जागरण के संस्कारशाला की मैं नहीं हम कहानी बहुत ही अच्छी लगी है। इस कहानी को सुनकर काफी कुछ सीखने को मिला है। हम सभी को किसी प्रकार का अहंकार नहीं करना चाहिए। समाज के सभी लोगों की नि:स्वार्थभाव से मदद करन चाहिए। बेजुबान पशु-पक्षियों के संरक्षण की दिशा में काम करने चाहिए। ऐसा करने से किसी की जान को बचाया जा सकेगा।
-कपिल, कक्षा पांच------फोटो 19 पीआइएलपी 5
हम सभी को समाज के प्रत्येक व्यक्ति की सेवा करनी चाहिए। मैं नहीं हम की भावना को अपने अंदर आत्मसात करना होगा, तभी अपने उद्देश्यों में खरे उतर सकेंगे। किसी भी व्यक्ति अथवा पशु-पक्षियों की मदद करने में कभी संकोच नहीं करना चाहिए। संस्कारशाला की कहानी ने झकझोर करके रख दिया गया है। संवेदनशीलता की भावना सबमें आनी चाहिए।
-प्रतिभा शर्मा, कक्षा आठ--------फोटो 19 पीआइएलपी 6मैं नहीं हम-संवेदनशीलता से बदलेगा समाज कहानी काफी प्रेरणादायक थी, जिसे सुनकर बहुत कुछ सीखने को मिला है। कहानी में आरुषि और रिया के किरदार बहुत ही अच्छा था। उसी अनुरूप हम सभी को अन्य लोगों के प्रति व्यवहार करना चाहिए। अपने में संवेदनशीलता लाने की कोशिश करें, तभी समाज में अच्छा मुकाम पाया जा सकेगा। इस दिशा में काम करें।
-ऐश्वर्या, कक्षा आठ---------फोटो 19 पीआइएलपी 7
संस्कारशाला की कहानी बहुत ही अच्छी और प्रेरणादायक लगी है। पशु-पक्षियों के प्रति सेवाभाव का व्यवहार करना चाहिए। इससे यहीं सीख मिली है। प्रत्येक व्यक्ति में संवेदनशीलता का होना बहुत ही जरूरी है। उसके बगैर कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति की मदद करनी चाहिए।
-दीपांशी गुप्ता, कक्षा आठ
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कहानी सुनकर काफी कुछ सीखने को मिला है, जिसे जीवन में लागू करने का प्रयास करूंगा। कहानी पूरी तरह प्रेरणादायी थी। अगर किसी भी व्यक्ति को सहायता की जरूरत है, तो उसे देने में किसी प्रकार का संकोच नहीं करना चाहिए। घायल को अस्पताल में भर्ती कराकर अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। इसे नजरअंदाज नहीं करें।
-चैतन्य पटेल, कक्षा पांच-----------फोटो 19 पीआइएलपी 9
समाज के प्रत्येक व्यक्ति को संवेदनशील होना चाहिए, तभी हम किसी की सहायता कर सकते हैं। जैसे आरुषि और रिया ने गिलहरी का इलाज कराके की है। इसी तरह हम सभी को नि:स्वार्थभाव से सहायता देने की दिशा में आगे आना चाहिए। सहायता देने से दूसरे को जीवन मिल जाता है।
-दीक्षा गंगवार, कक्षा आठ
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