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भूमिगत रहकर कारसेवकों को भेजते रहे अयोध्या

मझोला कस्बा निवासी बुजुर्ग सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. डोरीलाल वर्मा राममंदिर आंदोलन से सीधे तौर पर जुड़े रहे हैं। स्मृतियों पर जोर देते हुए वह कहते हैं कि राम मंदिर आंदोलन के दौरान हिदू समाज में भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा था।

By JagranEdited By: Published: Wed, 29 Jul 2020 11:25 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jul 2020 11:25 PM (IST)
भूमिगत रहकर कारसेवकों को भेजते रहे अयोध्या

पीलीभीत,जेएनएन : मझोला कस्बा निवासी बुजुर्ग सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. डोरीलाल वर्मा राममंदिर आंदोलन से सीधे तौर पर जुड़े रहे हैं। स्मृतियों पर जोर देते हुए वह कहते हैं कि राम मंदिर आंदोलन के दौरान हिदू समाज में भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा था। उनका कहना है कि पहली मई 1983 को शहर के गांधी स्टेडियम में हुए हिदू सम्मेलन में ही उस समय की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे दाऊ दयाल खन्ना की मौजूदगी में तीन मानबिदु प्रस्ताव पारित किए गए थे। अयोध्या के साथ ही मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर, काशी के विश्वनाथ मंदिर को भी शामिल किया गया था। वर्ष 1984 में कर्नाटक के उड़पी में विश्व हिदू परिषद की ओर से धर्म संसद बुलाई गई। उसमें तय किया गया था कि सबसे पहले अयोध्या में रामजन्म भूमि को मुक्त कराना है। इसी के बाद रामजन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ।

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जब नौ सितंबर 1990 को सोमनाथ से लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में राम मंदिर के लिए जन जागरण अभियान के तौर पर रथयात्रा शुरू हुई तो राम भक्तों में भावनाओं का ज्वार उमड़ने लगा। इससे पहले शहर के अग्रवाल सभा भवन में 15 अगस्त 1989 को साध्वी ऋतंभरा के नेतृत्व में राम शिला पूजन का शुभारंभ हुआ। इसके बाद जिले के प्रत्येक गांव, मुहल्ले में रामशिला का पूजन किया गया। मझोला में नेहरू इंटर कॉलेज में यह आयोजन कराया गया। इसके बाद 14 अक्टूबर 1990 से जिले में राम मंदिर आंदोलन के जुड़े लोगों की गिरफ्तारी होने लगी। उस समय बरेली चला गया। उस समय आरएसएस के प्रांत प्रचारक दिनेश तथा सह प्रांत प्रचारक रामलाल ने कहा कि अपने को गिरफ्तारी से हर हाल में बचाए रखना है। भूमिगत रहकर राम मंदिर की अलख जगाते हुए कारसेवकों को अयोध्या पहुंचाते रहे। तब भूमिगत रहकर विभिन्न माध्यमों से जिले से कारसेवकों को अयोध्या भिजवाने का काम किया। मझोला से 18 पांच युवकों को अयोध्या भेजा, वहां उनकी गिरफ्तारी हो गई। उस समय की सरकार दमन की नीति अपनाए हुए थी लेकिन कारसेवकों का हौसला किसी भी तरह से कम नहीं कर पाई। वर्ष 1990 में प्रतिबंध के बावजूद 18 अक्टूबर को दिवाली पर राम ज्योति से घर घर दीप जलाए गए थे। दिसंबर 1992 की शुरुआत में ही अपने सात साल के बेटे चेतन को साथ लेकर अयोध्या पहुंच गया। छह दिसंबर को विवादित ढांचा ढह जाने के बाद रामलला के लिए अस्थाई मंदिर के लिए मुझे भी चार ईंटे लगाने का अवसर मिला था। बेटे ने भी दो ईंटे लगाई थीं। विवादित ढांचा ढहने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया था। कारसेवकों तथा आंदोलन के जुड़े लोगों की गिरफ्तारी का क्रम फिर तेज हो गया। अंतत: दो जून 1993 को मुझे भी गिरफ्तार करके सुनगढ़ी थाना ले जाया गया। बाद में चालान करके अदालत में पेश किया गया था। आंदोलन के दौरान चोट लग जाने से मेरा हाथ टूट गया था तब विहिप की ओर से हुतात्मा निधि से चार हजार की धनराशि इलाज के लिए मुझे दी गई थी। वह धनराशि संघ के ही अनुषांगिक संगठन सेवा भारती को दान कर दी। लंबे आंदोलन के बाद अब अयोध्या में राम मंदिर का सपना साकार होता देख आत्मिक प्रसन्नता महसूस कर रहा हूं।


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