आधी आबादी के लिए जीवनरेखा बन गईं रेखा
(कॉलम नमो देव्यै महा देव्यै) - जलकुंभी से डस्टबिन बास्केट के साथ ही अन्य सजावटी सामान बनाने का सिखाया हुनर - पचास महिलाएं जलकुंभी से विविध उत्पाद तैयार कर बनीं आत्मनिर्भर - जिलाधिकारी ने दिखाई रुचि तो इनके उत्पादों की बिक्री के लिए मिलने लगे आर्डर फोटो-3पीआइएलपी-10
जागरण संवाददाता, पीलीभीत : अक्सर तालाबों की सतह पर उग आने वाली जलकुंभी को प्राय: बेकार समझा जाता है। अगर इसकी सफाई न कराई जाए तो तालाब के सूखने का खतरा पैदा हो जाता है, इसीलिए तालाब से निकालकर इसे फेंक दिया जाता है लेकिन यहां इस बेकार समझी जाने वाली जलकुंभी से ऐसी वस्तुएं बनाई जा रही हैं जो बड़े काम की साबित होती हैं। इसकी पहल की है शहर की मधुवन कॉलोनी में रहने वाली रेखा सिंह परिहार ने। जलकुंभी से विभिन्न तरह के उत्पाद बनाने का बाकायदा प्रशिक्षण हासिल किया। फिर अन्य महिलाओं को इस हुनर से जोड़ने का अभियान चलाया, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें।
रेखा को जलकुंभी से विभिन्न तरह के उत्पाद तैयार करके जरूरतमंद महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की प्रेरणा सांसद रहीं पूर्व केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका संजय गांधी से मिली थी। वर्ष 2015 में वह पच्चीस महिलाओं को लेकर असोम के गुवाहाटी पहुंचीं। वहीं पर जलकुंभी से विविध उत्पाद तैयार करने का लगभग एक महीने का प्रशिक्षण लिया। लौटने के बाद उन महिलाओं से सहयोग से जलकुंभी तलाश करके बास्केट, पेन होल्डर, चटाई समेत अन्य सजावटी सामान बनाना शुरू कर दिया। दिल्ली के प्रगति मैदान पर लगने वाले अंतरराष्ट्रीय मेला में भी स्टाल लगवा चुकी हैं। वहां जलकुंभी से तैयार उत्पादों को ग्राहकों ने हाथों हाथ लिया। पिछले दिनों जब जिलाधिकारी वैभव श्रीवास्तव को जलकुंभी से तैयार उत्पादों के बारे में जानकारी दी गई तो वह बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने इसे बढ़ावा देना शुरू कर दिया। डीएम के प्रयासों से ही रेखा की संस्था अनुभव चौहान सेवा समिति को सरकारी विभागों के लिए पांच सौ डस्टबिन तैयार कर आपूर्ति करने का काम मिला। अब ढाई सौ बॉस्केट बनाने का आर्डर मिल गया है। जलकुंभी से तैयार होने वाले उत्पादों की मांग बढ़ रही है। ऐसे में रेखा ने अब इसके लिए छोटी सी फैक्ट्री लगाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं, जिससे और ज्यादा संख्या में महिलाओं को इससे जोड़कर स्वरोजगार दिलाया जा सके। इनसेट
पर्यावरण संरक्षण में भी जलकुंभी उत्पाद सहायक
डीएम वैभव श्रीवास्तव का मानना है कि जलकुंभी से तैयार किए गए डस्टबिन पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक हैं, इसीलिए उन्होंने सरकारी कार्यालयों में प्लास्टिक के डस्टबिन हटाने और उनके स्थान पर जलकुंभी से बने डस्टबिन रखवाने का फैसला किया। इसी वजह से उन हुनरमंद महिलाओं को डस्टबिन तैयार करके आपूर्ति करने के आर्डर मिले।