जीवनदायिनी नदियों में बढ़ रहा प्रदूषण
तराई का यह जिला हरियाली के लिए मशहूर रहा है। जल जंगल और जमीन के मामले में धनी जिला में भी प्रदूषण की समस्या दिनोंदिन गहरा रही है। जीवनदायिनी मानी जाने वाली नदियां भी प्रदूषण से अछूती नहीं रहीं। सबसे खराब स्थिति तो खकरा नदी है। इसके बाद देवहा का नंबर आता है।
पीलीभीत : तराई का यह जिला हरियाली के लिए मशहूर रहा है। जल, जंगल और जमीन के मामले में धनी जिला में भी प्रदूषण की समस्या दिनोंदिन गहरा रही है। जीवनदायिनी मानी जाने वाली नदियां भी प्रदूषण से अछूती नहीं रहीं। सबसे खराब स्थिति तो खकरा नदी है। इसके बाद देवहा का नंबर आता है। दोनों नदियों का संगम इसी शहर की धरती पर होता है। ऐसे में प्रदूषण दोनों में घुलमिल गया है। नदियां ही नहीं बल्कि सड़कों व वाहनों की बढ़ती तादात से ध्वनि व वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ा है तो दूसरी ओर खेतों में अंधाधुंध रसायनिक उर्वरक व केमिकल वाले कीटनाशकों के प्रयोग से भूजल को भी दूषित कर रहा है।
जिला का लगभग 73 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल प्राकृतिक वनों से आच्छादित है। प्रकृति ने इसे उपहार के तौर पर दिया है। सामाजिक वानिकी क्षेत्र में भी कई दशक पहले अच्छी खासी हरियाली रहा करती थी लेकिन अब लगातार घट रही है। पुराने पेड़ कट जाते हैं या सूख जाते हैं लेकिन उतनी संख्या में नए पेड़ नहीं उगते। वैसे हर साल पौधरोपण का विशेष अभियान चलता है। हजारों की संख्या में पौधे लगाए जाते हैं लेकिन देखभाल के अभाव में तमाम पौधे सूखकर नष्ट होते रहे हैं। जंगल एरिया में भी चोरी छिपे वृक्षों का कटान होता रहता है। हरियाली घटने से पर्यावरण संरक्षण के लिए खतरा बढ़ रहा है। दूसरी ओर नदियों में भी लगातार प्रदूषण बढ़ रहा है। देवहा नदी में प्रदूषण बढ़ने का सबसे बड़ा कारण तटों पर लगे कूड़े के ढेर हैं। बारिश होने पर तमाम कूड़ा नदी में समा जाता है। उत्तराखंड की ओर से ही आने वाली खकरा नदी का पानी तो अब पशु भी नहीं पीते। नदी का पानी काला पड़ चुका है। इस नदी में मांस के कारोबारी पशु पक्षियों के अवशेष फेंक देते हैं। शहर का एक प्रमुख गंदा नाला भी इसी नदी में गिर रहा है। खकरा नदी का देवहा से संगम ब्रह्मचारी घाट पर होता है। ऐसे में खकरा नदी से आने वाला प्रदूषण देवहा में घुलमिल जाता है। नदी की सफाई का सिर्फ एक बार हुआ प्रयास
खकरा नदी की सफाई करने की पहल सबसे पहले सेव इन्वायरमेंट सोसायटी की ओर से कई साल पहले की गई थी। सोसायटी के सदस्यों ने नदी में उतरकर श्रमदान करके सफाई करने का प्रयास किया,लेकिन सरकारी स्तर पर प्रदूषण की रोकथाम के लिए अब तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है। सोसायटी के सचिव तहसीन हसन खान का कहना है कि इसके लिए सरकार के भरोसे नही रहना चाहिए बल्कि लोगों को खुदी ही जागरूक होने की आवश्यकता है। सबसे पहले तो पशु-पक्षियों के अवशेष नदी में डालना बंद किया जाना चाहिए। यह कार्य जिला प्रशासन की सख्ती से ही संभव हो सकता है। जैविक खेती को मिले बढ़ावा
रसायनिक उर्वरक और कीटनाशक के बढ़ते इस्तेमाल की वजह से ही प्रदूषण बढ़ रहा है। यहां तक कि भूजन भी इससे प्रभावित हो रहा है। इसकी रोकथाम के लिए जैविक खेती को बढ़ावा मिलना चाहिए। राजकीय कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शैलेंद्र सिंह ढाका का कहना है कि इसके लिए किसानों को लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है। अनेक किसानों ने जैविक खेती को अपनाया है। परिणाम भी अच्छा आ रहा है। धीरे-धीरे ऐसे किसानों की जब संख्या बढ़ेगी तो रसायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती जाएगी , जिससे जमीन के अंदर होने वाले प्रदूषण में कमी आएगी। नदियों को जीवनदायिनी कहा जाता है लेकिन लोगों में जागरूकता की कमी के कारण हमारे शहर की दोनों नदियां प्रदूषण का शिकार हो गई हैं। नदियों में गंदगी फेंकना, तट पर कूड़ा डालना रुकना चाहिए। इसके लिए जिला प्रशासन को ही सख्ती करनी पड़ेगी तभी यह रुक सकेगा।
-सुरेंद्र अग्रवाल बुजुर्ग बताते हैं कि पहले देवहा का पानी एकदम साफ हुआ करता था लेकिन अब ऐसा नहीं रहा। इसका प्रमुख कारण बढ़ता प्रदूषण है। इसकी रोकथाम के लिए जरूरी है कि वहां कूड़ा नहीं डाला जाए। साथ ही खकरा नदी की एक बार समुचित ढंग से सफाई कराई जाए।
-राजा अग्रवाल
वाहनों की तादात बढ़ रही है। इसी वजह से वायु प्रदूषण की समस्या पैदा हुई है। अगर सप्ताह में कम से कम एक दिन लोग वाहन का उपयोग न करें तो भी काफी फर्क पड़ेगा। लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए। साथ ही नदी को प्रदूषण से मुक्त कराने के प्रयास होने चाहिए।
-मोहित सहगल
शहर में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है। लोग ही जिम्मेदार हैं। नदियों का पानी जहरीला हो रहा है, क्योंकि प्रदूषण इतना अधिक है। प्रदूषण रोकने के लिए प्रशासन के साथ ही स्वयंसेवी संगठनों को भी सहयोग करना होगा। साथ ही जन जागरूकता को भी बढ़ाना होगा, तभी समस्या का समाधान है।
-लक्ष्मीकांत शर्मा