इस बार बाजार में देशी राखियों की धूम
पिछले कुछ समय से चीनी उत्पादों के बहिष्कार की मुहिम चलाई जाती रही है। रक्षाबंधन के त्योहार पर इस बार इसका व्यापक असर दिखाई पड़ा। किसी भी दुकानदार ने इस बार चाइनीज राखियां नहीं मंगाई।
पीलीभीत,जेएनएन : पिछले कुछ समय से चीनी उत्पादों के बहिष्कार की मुहिम चलाई जाती रही है। रक्षाबंधन के त्योहार पर इस बार इसका व्यापक असर दिखाई पड़ा। किसी भी दुकानदार ने इस बार चाइनीज राखियां नहीं मंगाई। बाजारों में हर दुकान पर देशी राखियों की धूम रही। विभिन्न तरह के रंग और डिजाइन वाली देशी राखियों को लोगों ने खूब पसंद किया जबकि पिछले वर्षों में चाइनीज राखियों का आकर्षण रहा और देशी राखियों की बिक्री कम रही।
स्टेशन रोड पर स्टेशनरी एवं गिफ्ट सेंटर के संचालक शांतनु देव का कहना है कि सीमा पर चीन की बढ़ती बेजा हरकतों की वजह से तमाम लोगों ने पहले ही चीनी उत्पाद खरीदने बंद कर दिए थे। चीनी माल के बहिष्कार की घोषणा भी विभिन्न संगठनों ने कर रखी थी। ऐसे में मार्केट में चाइनीज राखियां मंगाई ही नहीं गईं। खुद उनके शोरूम में भी देशी राखियों की बहार रही है। ग्राहकों ने भी इन्हें खूब पसंद किया। पिछले वर्षों में चाइनीज राखियां बिकती रही हैं। वे देखने में आकर्षक होती थीं। साथ ही दाम भी कम होते थे लेकिन क्वालिटी बेहद घटिया रहती थी। सस्ती मिलने के कारण लोग खरीदने के लिए आकर्षित हो जाते थे। ऐसे में देशी राखियां चाइनीज के मुकाबले कम बिकती रही हैं। चौक बाजार में गिफ्ट सेंटर चलाने वाले निखिल का कहना है कि सिर्फ राखियां ही नहीं बल्कि हर तरह का चाइनीज माल मार्केट से गायब हो चुका है। कोई ग्राहक अब चाइना के आयटम नहीं मांगता। मुख्य बाजार में हर साल अस्थाई तौर पर राखी की दुकान लगाने वाले दुकानदारों का कहना है कि ग्राहकों का नजरिया बदल चुका है। लोग देशी राखियां ही पसंद करने लगे हैं। चाइनीज राखियों एवं देशी राखियों की पिछले वर्षों में तुलनात्मक रूप से कारोबार कैसा रहा, इस पर ज्यादातर दुकानदार यही कहते हैं कि चाइनीज ज्यादा बिकती रही हैं। एक आकलन के अनुसार पिछले साल पूरे जिले में चाइनीज राखियों का कारोबार करीब 3.25 लाख रुपये का रहा था जबकि देशी राखियां भी 2.08 लाख की बिकी थीं। कुछ कारोबारी सवा दो लाख रुपये तक के देशी राखियों का गत वर्ष कारोबार होना मानते हैं।