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जनपद के सरकारी अस्पताल बने रेफर सेंटर

अस्पताल में बेडों से लेकर आक्सीजन की उपलब्धता को लेकर मचे हाहाकार के बीच एक बार फिर जनपद की स्वास्थ्य सुविधाओं पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है। जनपद के एलटू कोविड अस्पताल में गाइडलाइन से हटकर जरूरतमंद मरीजों को भर्ती किया गया व उनकी जान बचाने की कोशिश की गई। सीमित संसाधनों के चलते कई मरीजों ने जान गंवा दी।

By JagranEdited By: Published: Tue, 11 May 2021 11:32 PM (IST)Updated: Tue, 11 May 2021 11:32 PM (IST)
जनपद के सरकारी अस्पताल बने रेफर सेंटर
जनपद के सरकारी अस्पताल बने रेफर सेंटर

पीलीभीत,जेएनएन: अस्पताल में बेडों से लेकर आक्सीजन की उपलब्धता को लेकर मचे हाहाकार के बीच एक बार फिर जनपद की स्वास्थ्य सुविधाओं पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है। जनपद के एलटू कोविड अस्पताल में गाइडलाइन से हटकर जरूरतमंद मरीजों को भर्ती किया गया व उनकी जान बचाने की कोशिश की गई। सीमित संसाधनों के चलते कई मरीजों ने जान गंवा दी। निजी अस्पतालों से मदद मांगी गई तो केवल चार अस्पताल ही आगे आए जिनमें रोजाना कोई न कोई समस्या आती रहती है। कोरोना की दूसरी लहर में यह हाल हुआ तो अब संकट तीसरी लहर का मंडराने लगा है।

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जनपद के सरकारी अस्पतालों की पहचान रेफर सेंटर के रूप में होती है। पीएचसी से सीएचसी, सीएचसी से जिला अस्पताल व जिला अस्पताल से हायर सेंटर के लिए मरीज को कागज थमा दिया जाता है। साधारण मरीजों को छोड़ दें तो गंभीर स्थिति वाले किसी मरीज को जनपद के सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं मिल पाता। ट्रामा सेंटर से लेकर बर्न यूनिट बनी हुई हैं लेकिन उसमें सुविधा शून्य है। जनपद के सरकारी अस्पतालों आइसीयू बेडों की संख्या जीरो है। डाक्टरों व पैरामेडिकल स्टाफ की कमी मरीजों के इलाज व देखभाल में बाधा है। मानक से 32 गुना डाक्टर कम: जनपद की सरकारी सेवा में कुल 75 डॉक्टर कार्यरत है। हालांकि तैनाती अधिक की है लेकिन शेष कई वर्षों से गायब चल रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार प्रति 1000 व्यक्तियों पर एक डॉक्टर होना चाहिए। जनपद में मानक के सापेक्ष 32 गुना डाक्टर कम हैं। ऐसे में मरीजों को सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। विशेषज्ञ के नाम पर फिजीशियन, बाल रोग विशेषज्ञ, जनरल सर्जन, महिला रोग, ईएनटी, आर्थो, स्किन व आंख रोग विशेषज्ञ डाक्टर की सुविधा है। संसाधनों के अभाव में ये डाक्टर की पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर पाते और मरीजों को रेफर करना पड़ता है। प्रदेश से लेकर केंद्र सरकार में रही भूमिका: जनपद की सत्ता में राजनीतिक हैसियत की बात करें तो विधानसभा व लोकसभा दोनों ही क्षेत्रों में यहां की सीट हाई-प्रोफाइल रहती है। अब तक प्रदेश सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक में यहां से जीत हासिल करने वाले जनप्रतिनिधि कैबिनेट मंत्री पद तक पहुंचे। हालांकि उस तेजी से सुविधाओं में बढ़ोतरी नहीं देखी गई जितनी जनता ने उम्मीद की। बीते दिनों मेडिकल कालेज बनने की चर्चाएं शुरू हुईं लेकिन अभी तक उसकी भी आधारशिला नहीं रखी जा सकी है। बजट का हो सही इस्तेमाल: चिकित्सकीय क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने को अभी लंबा सफर तय करना है लेकिन इस आपदा को अवसर में बदलकर अवसंरचनात्मक व संसाधनात्मक स्थिति को मजबूत करना बेहतर विकल्प होगा। महामारी से निपटने के लिए सरकार की ओर से 2 करोड़ रुपये राहत कोष बजट दिया गया है। सांसद, विधायक व सीआरएस फंड मौजूद रहता है जिसे संसाधनों की पूर्ति में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस बजट का सही प्रयोग करते हुए चिकित्सकीय उपकरणों व संसाधनों का विकास किया जाना चाहिए। आबादी- 24.5 लाख

गरीबी रेखा से नीचे- 16 लाख

गोल्डन कार्ड लक्ष्य- 8.5 लाख

गोल्डन कार्डधारी- 2.75 लाख

जिला संयुक्त अस्पताल- 1

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र- 21

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र- 8

मेडिकल कालेज- 0

आइसीयू बेड- 0

वेंटिलेटर बेड- 0

आक्सीजन प्लांट-0

ट्रामा सेंटर- बंद पांच करोड़ रुपये ट्रामा सेंटर पर खर्च हो गए। आजतक स्टाफ की तैनाती पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। नियुक्तियां नहीं हो रही हैं। जनपद के सरकारी अस्पताल केवल रेफर सेंटर बनकर रह गए हैं। मरीजों को थोड़ी भी गंभीर स्थिति में जिला अस्पताल में इलाज नहीं मिल पाता। विशेषज्ञ डॉक्टर मौजूद नहीं हैं। इस पर ध्यान देते हुए जनप्रतिनिधियों को प्रयास करने चाहिए।

- शिवम कश्यप, अधिवक्ता दूसरी लहर की मार ही इतनी भयानक हो गई कि लोगों को अस्पतालों में बेड नहीं मिले। लोग घरों में जान गंवा रहे हैं। महामारी या आकस्मिक चिकित्सा आवश्यकता निमंत्रण देकर नहीं आती। इसके लिए हमें पहले से तैयारी पूरी रखनी चाहिए। दूसरी लहर में जनपदवासियों को आई दिक्कतें ²ष्टिगत रखते हुए जिला प्रशासन व जनप्रतिनिधियों को व्यवस्थाएं मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए।

- अफरोज जिलानी, व्यापारी संसाधनों को बढ़ाने पर ध्यान दे रहे हैं। सीएचसी स्तर पर आक्सीजन कंसंट्रेटर उपलब्ध कराकर आक्सीजन की समस्या कम कर रहे हैं। जल्द ही माधोटांडा व जहानाबाद सीएचसी को कोविड केयर सेंटर के तौर पर शुरू करेंगे। जिला संयुक्त अस्पताल कैंपस में आक्सीजन प्लांट की फाइल चल रही है। उम्मीद है जल्द फाइनल हो जाएगा। महामारी के दौरान काफी संख्या में कंसंट्रेटर, वेंटिलेटर व अन्य उपकरण आए हैं जिसका महामारी के बाद भी सरकारी अस्पतालों में उपयोग होगा। स्टाफ की कमी के बाबत नियमित शासन को अवगत कराया जाता है।

- डा. सीमा अग्रवाल, सीएमओ


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