युवाओं में अनुशासनहीनता चिंता की बात
पीलीभीत : पिछले 75 वर्षों में देश और समाज में बहुत बदलाव आया है। लोगों की आमदनी बढ़ी तो खर्च
पीलीभीत : पिछले 75 वर्षों में देश और समाज में बहुत बदलाव आया है। लोगों की आमदनी बढ़ी तो खर्च भी बढ़ गए। पहले लोगों की आवश्यकताएं सीमित थीं लेकिन, अब जरूरतें भी बढ़ गईं। बहुत कुछ अच्छा हुआ लेकिन, ऐसा भी है जिससे समाज का स्वरूप और मूल भावना बदल रही है। पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे। सभी साथ मिलकर रहते थे। बच्चों को रिश्तों की अहमियत के बारे में पता था लेकिन, आज स्थिति बदली हुई है।
घर से ही शिक्षा का अभाव
पहले के शिक्षक पूरे मन से बच्चों को पढ़ाते थे और बच्चे भी पूरा ध्यान लगाकर अपने शिक्षक की बात को गुनते थे। आज के बच्चे शिक्षक की बातों पर कम ही ध्यान देते हैं। नई पीढ़ी में अनुशासन की भी कमी है। पहले के बच्चे बड़े ही अनुशासित हुआ करते थे। जीवन में अनुशासन की दीक्षा उन्हें परिवार से ही मिलती थी। स्कूल में उसका विकास किया जाता था। अब यह नहीं हो रहा है। इसी वजह से नई पीढ़ी में अनुशासन की कमी दिख रही है।
घट रही सामाजिकता
लोगों में सामाजिकता की भावना घट रही है। प्रकृति ने भरपूर संसाधन दिए हैं हमें। विज्ञान के नए आविष्कार हुए लेकिन, इनका पूरी तरह सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। इंटनेट ने बहुत चीजें आसान कर दीं। सोशल मीडिया का जमाना है। इससे अच्छाई भी निकलकर आई, साथ ही बुराई भी लोग ग्रहण कर रहे हैं। युवा पीढ़ी को संचार माध्यमों का सदुपयोग करना चाहिए, जिससे वह अपने जीवन में प्रगति हासिल कर सकते हैं।
- सरोज जगोता, निदेशिका, स्प्रिंगडेल कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज (पीलीभीत)
समाज में एकता की भावना का हो विकास
समय के साथ ही समाज में भी बदलाव आया है। धर्म एवं अध्यात्म के प्रति लोगों की रुचि बढ़ी है। यह अच्छी बात है लेकिन, धर्म के नाम पर आडंबर नहीं होना चाहिए। तकनीक का जमाना है। नई-नई तकनीक ईजाद हो रही हैं, विकास में इसका इस्तेमाल होने से देश प्रगति कर रहा है। विचारणीय पहलु यह है कि पहले की अपेक्षा समाज में बुजुर्गों का सम्मान घटा है। यह नहीं होना चाहिए।
बुजुर्गो का करें सम्मान
युवाओं को चाहिए कि वे अपने परिवार के साथ ही समाज के अन्य बुजुर्ग जनों का सम्मान करते हुए उनके अनुभव से सीखें। क्योंकि बुजुर्गों के पास अनुभवों की कमी नहीं होती। उन्होंने अपने जीवन में बहुत कुछ सीखा, नई पीढ़ी को उनसे सीखकर आगे बढ़ना चाहिए।
पशुओं के प्रति प्रेम जताएं
दूसरी बात है कि पशुओं का वध। दरअसल प्रकृति ने संतुलन कायम किया है। पशु-पक्षी भी ईश्वर की देन हैं। इंसान को कोई अधिकार नहीं कि अपने स्वार्थ के लिए पशुओं का वध करें या उन्हें सताएं। ऐसा करना प्रकृति के विरुद्ध है।
बराबरी का मिले अधिकार
सरकार को चाहिए कि समाज में सभी को बराबरी का दर्जा दें। किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। शिक्षा से ही व्यक्ति की प्रगति होती है लेकिन, सरकारी शिक्षा बदहाल है। सुधार की गुंजाइश है। सरकारी शिक्षा में क्या क्या बदलाव होने चाहिए, इसके लिए विद्वानों की समिति बनाकर उनके सुझाव लिए जाएं। शिक्षा को सर्व सुलभ बनाने की आवश्यकता है। छह से चौदह साल तक के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार कानून लागू हुए कई साल बीत गए लेकिन, इसका पूरा लाभ समाज को अभी तक नहीं मिल पा रहा है। इस कानून का कड़ाई से पालन कराया जाना चाहिए।
- दीपक शर्मा, युवा व्यापारी स्टेशन रोड (पीलीभीत)।