संस्कृति का अधिकार : संस्कारशाला से नई पीढ़ी में बो रहे संस्कृति का बीज
चंद्रशेखर वर्मा ग्रेटर नोएडा संस्कृति किसी भी देश की हो वहां की समृद्ध परंपरा इतिहास
चंद्रशेखर वर्मा, ग्रेटर नोएडा
संस्कृति किसी भी देश की हो वहां की समृद्ध परंपरा, इतिहास, पहनावे, खानपान, भाषा को प्रदर्शित करती है। भारतीय संस्कृति विश्व में महान है। इसका हर पहलू विज्ञान पर आधारित है। पाश्चात्य संस्कृति से अभिभूत होकर भारतीय अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं। आधुनिकता ने जीवन तो आसान बना दिया, साथ ही कई बीमारी को जन्म दिया है। पर्यावरण संरक्षण दल (पसंद) सप्ताह में एक दिन संस्कारशाला का आयोजन करती है। इसका मकसद लोगों को संस्कृति से दोबारा जोड़ना है।
पसंद के संस्थापक टीकम सिंह ने बताया कि वर्ष 2015 से यह मुहिम शुरू की गई। भारतीय संस्कृति इतनी वैज्ञानिक है कि इसका हर पहलू कहीं न कहीं स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। पहले लोग गांवों में रहते थे। पशुओं को पालते और खेती करते थे। पहनावा ऐसा था कि पूरा शरीर ढका रहता। घरों में पीसने के लिए मिक्सी की जगह सिल-बट्टा होता था। मिट्टी से बने बर्तन होते थे। लोग पर्यावरण से जुड़े थे। महिलाएं अनाज पीसने के लिए चक्की चलाती थीं। इससे उनका गर्भाशय मजबूत होता था। प्रसव सामान्य होते थे। अब आरामदायक जीवन के लिए लोग मशीनों पर आधारित हो गए, जिससे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता घट गई।
ऐसे में संस्कारशाला की शुरुआत की गई। टीम में संगीता, शोभा शर्मा, दीपक शर्मा, राजेंद्र सिंह और गौरव सत्यार्थी जुड़े। शनिवार व रविवार को एक दिन संस्कारशाला लगाई जाती। इसके लिए गुर्जरपुर स्थित फार्म हाऊस को चुना गया। सोशल मीडिया, फोन और संस्था के यूट्यूब चैनल से लोग से संपर्क किया गया। गर्म मौसम का हवाला देते हुए महिलाओं को खुले व ढीले-ढाले वस्त्र पहनने की सलाह दी गई। ताकि शारीरिक अंगों का विकास हो और आराम मिले। इसे फैशन से भी जोड़ा जा सकता है। प्लास्टिक की जगह मिट्टी आदि के बर्तन के इस्तेमाल के प्रति जागरुक किया जा रहा। बताया कि शीत पेय की जगह छाछ आदि का सेवन करने लगे। हालांकि, कोरोना काल में संस्कारशाला संचालित नहीं हो रही। लोग ऑनलाइन माध्यम से कार्यशाला की बात करने लगे हैं। जल्द ही इस पर काम शुरू हो जाएगा।