Yamuna Expressway Scam: यमुना प्राधिकरण के पूर्व CEO के खिलाफ CBI ने दर्ज की FIR
यमुना एक्सप्रेसवे मामले में सीबीआइ ने यमुना प्राधिकरण के पूर्व सीईओ पीसी गुप्ता और 21 अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया है।
ग्रेटर नोएडा, एएनआइ। यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में हुए 126 करोड़ के जमीन घोटाले की जांच अब केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) करेगी। सीबीआइ ने इस संबंध में सेवानिवृत्त आइएएस अफसर एवं प्राधिकरण के पूर्व सीईओ पीसी गुप्ता समेत 21 आरोपितों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। पीसी गुप्ता समेत कई अन्य आरोपित वर्तमान में जेल में है। जांच में कई और बड़े चेहरे बेनकाब हो सकते हैं। अब तक मामले की जांच गौतमबुद्ध नगर पुलिस कर रही थी। बीटा-2 कोतवाली में बीते साल दर्ज हुई पहली एफआइआर को ही सीबीआइ ने टेकओवर किया है।
यमुना प्राधिकरण में वर्ष 2013-14 में हुए भूमि घोटाले के संबंध में तीन जून, 2018 को बीटा-2 कोतवाली में प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ सेवानिवृत्त आइएएस अफसर पीसी गुप्ता समेत 21 आरोपितों के खिलाफ भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। पुलिस ने मुख्य आरोपित पीसी गुप्ता को 22 जून, 2018 को मध्य प्रदेश के दतिया से गिरफ्तार किया था। आरोप है कि मास्टर प्लान से बाहर जाकर प्राधिकरण क्षेत्र में जमीन खरीदी गई थी। मुआवजा अपने रिश्तेदारों को रेवड़ी की तरह बांटा गया था। पुलिस जांच में कई अन्य अधिकारियों के नाम प्रकाश में आए थे और पुलिस ने उन सभी अधिकारियों को भी आरोपित बनाया था।
सेवानिवृत्त पीसीएस भी हुए गिरफ्तार
प्राधिकरण के तत्कालीन एसीईओ व सेवानिवृत्त पीसीएस अधिकारी सतीश कुमार को एक सप्ताह पहले बीटा-2 कोतवाली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। वह भी वर्तमान में जेल में बंद हैं।
अधिकारी से लेकर नेता तक सीबीआइ की रडार पर
जमीन खरीद घोटाले की जांच सीबीआइ ने अपने हाथों में ले ली है। सीबीआइ की जांच का दायरा प्राधिकरण में हुए अन्य जमीन खरीद घोटाले तक पहुंचना तय है। प्राधिकरण में जमीन खरीद के नाम पर तीन हजार करोड़ से अधिक का घोटाला हुआ है। इसमें अधिकारियों से लेकर सफेदपोश नेताओं ने करोड़ों के वारे न्यारे किए। अब ये सब सीबीआइ के रडार पर आ सकते हैं।
गौतमबुद्ध नगर से लेकर आगरा तक यमुना प्राधिकरण में कई जिले अधिसूचित हैं। प्राधिकरण अभी तक पहले मास्टर प्लान में अधिसूचित क्षेत्र का विकास पूरा नहीं कर पाया है। लेकिन तत्कालीन अधिकारियों ने अपनी तिजोरियां भरने के लिए नियम कानून की सीमा लांघते हुए मास्टर प्लान के बाद जाकर जमीन खरीद की। तत्कालीन चेयरमैन डा. प्रभात कुमार द्वारा कराई गई जांच में सामने आया था कि मथुरा जिले के बाजना व नौझील में यमुना एक्सप्रेस वे का रैंप बनाने के नाम पर जमीन खरीदी गई। जिसका मकसद जमीन खरीद के नाम पर घोटाले को अंजाम देना और अपने नाते रिश्तेदारों को करोड़ों का फायदा पहुंचाना भर था। सात गांवों में एक्सप्रेस वे से काफी दूर जाकर जमीनें खरीदी गईं। जिस पर रैंप का निर्माण संभव ही नहीं था। कंपनियां बनाकर पहले अपने रिश्तेदारों को किसानों से कौड़ियों में जमीने खरीदवाई गईं। चंद दिनों में ही प्राधिकरण न इस जमीन को क्रय कर करोड़ों रुपये मुआवजे में अपने रिश्तेदारों को बांट दिए। सीबीआइ के हाथ में इसकी जांच आने के बाद घोटाले में शामिल रसूखदारों की गर्दन पर शिकंजा तेजी से कसना तय है। जो अभी तक अपनी पहुंच के कारण पुलिस से बचे हुए थे।
सीबीआइ के हाथ हाथरस जमीन घोटाले, पंद्रह गांवों में खरीदी गई जमीन व जहांगीरपुर में सब स्टेशन के लिए जमीन खरीदने में हुए घोटाले तक पहुंचना तय है। मथुरा में जमीन खरीद घोटाले से मिली रकम को और बढ़ाने के लिए घोटालेबाजों ने हाथरस जिले में भी उसी तर्ज पर जमीन खरीद को अंजाम देकर प्राधिकरण को करोड़ों को चूना लगाया था। आयकर की नजर से घोटाले को बचाने के लिए मुआवजे की रकम के नियम विरुद्ध टुकड़ों में चेक जारी किए गए थे। प्राधिकरण इस मामले में पहले ही एफआइआर दर्ज करा चुका है। पंद्रह गांवों में जमीन खरीद कर प्राधिकरण ने अधिकारियों के साथ नेताओं को भी करोड़ों का फायदा पहुंचाने में गुरेज नहीं किया था। इन गांवों में भी मास्टर प्लान से बाहर जाकर जमीनें खरीदी गई थीं।
जमीन भी समेकित न होकर टुकड़ों में खरीदी गई। प्राधिकरण आज तक इस जमीन पर न तो कब्जा ले सका है और न मास्टर प्लान में इसे शामिल कर पाया है। जहांगीरपुर में भी नाते रिश्तदारों को फायदा पहुंचाने के लिए प्राधिकरण ने अस्सी एकड़ की बजाय 127 एकड़ जमीन खरीद डाली थी। पहले किसानों से कम कीमत में रिश्तेदारों को जमीन खरीदवाई गई, चंद दिनों में ही प्राधिकरण ने इसे खरीद लिया। सीएजी ऑडिट में भी यह गड़बड़ी पकड़ी गई है।