जागरण विमर्श : भारत के इतिहास से खिलवाड़ कर जो गलतियां की गईं, उन्हें सुधारना होगा
दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर डा. रत्नेश त्रिपाठी ने जागरण विमर्श में अपने विचार रखते हुए कहा कि इतिहास को नकारा तो जा सकता है लेकिन नष्ट नहीं किया जा सकता। उन्होंने इतिहास में की गई अन्य कई गलतियों को उजागर किया।
नोएडा / नई दिल्ली [सुशील गंभीर]। हमारे इतिहास के साथ खिलवाड़ हुआ है। तथ्यों को तोड़-मरोड़कर इतिहासकारों ने अपनी और अपने ‘आकाओं’ की सुविधा के लिहाज से पेश किया। इतिहास में जो ‘बीमारी’ है, उसका इलाज जरूरी है और इसका उपचार इतिहास के डाक्टर, यानी इतिहासकार ही कर सकते हैं।
जिन तथ्यों को छोड़ दिया गया, उन्हें जाति और संप्रदाय से ऊपर उठकर सबके सामने लाना होगा, अन्यथा भावी पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी। इन विचारों और इतिहास में की गई अन्य कई गलतियों को उजागर किया डा. रत्नेश त्रिपाठी ने। डा. रत्नेश त्रिपाठी दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और इतिहास को खंगालने के लिए विभिन्न शोध में सहयोग कर चुके हैं।
सोमवार को वह दैनिक जागरण के नोएडा कार्यलय में आयोजित ‘जागरण विमर्श’ में पहुंचे और ज्ञानवापी परिसर के साथ ही कुतुबमीनार परिसर को लेकर सामने आ रहे तथ्यों पर अपनी बात रखी। विमर्श के दौरान उन्होंने कहा, भारतीयों के लिए कहा जाता रहा है कि इतिहास लिखना नहीं आता, लेकिन ऐसा कहने वाले यह नहीं जानते कि हमारे पुराणों में ही इतिहास लिखने की बात लिखी गई है।
उन्होंने कहा कि हमारे इतिहास से जुड़े बहुत से पन्ने और लेख गायब कर दिए गए, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि इतिहास को नकारा तो जा सकता है, लेकिन नष्ट नहीं किया जा सकता। इतिहास कभी स्थिर नहीं होता। यह शोध के साथ नए तथ्य लेकर उजागर होता है। यह हमारा कर्तव्य है कि जिन तथ्यों को जानबूझकर छोड़ दिया गया या किसी दबाव में सभी के सामने नहीं आने दिया गया, उन्हें सामने लाना होगा। जहां से यह गलती की गई, वहीं से सुधार करना होगा।
- इतिहास कभी स्थिर नहीं होता, यह शोध के साथ बदलता रहता है
- इसकी रचना गढ़ी गई कहानियों से नहीं, तथ्यों के आधार पर होती है
- किताबों में जिन तथ्यों को छोड़ दिया गया, उन्हें शामिल करना होगा
- इतिहास को नकारा जा सकता है, लेकिन नष्ट नहीं किया जा सकता
- कुतुबमीनार, ज्ञानवापी सहित जो भी सच दबाया गया, उन्हें सामने लाना होगा
- यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि इतिहास के कई पन्ने गायब हैं
जिसे समझ होगी, वही करेगा समाधान
विमर्श के दौरान प्रश्न उठा कि ज्ञानवापी परिसर को लेकर न्यायपालिका की भूमिका कितनी सार्थक साबित होगी? इस पर डा. रत्नेश त्रिपाठी ने कहा कि जब किसी विषय पर दो पक्ष असहमत होते हैं तो भलाई इसी में है कि तीसरे से समाधान करवाया जाए, जो समझदार हो। इस प्रकरण में भी यह जरूरी है। किसी समस्या के निदान के लिए बेहतर प्लेटफार्म होना चाहिए और इसके लिए न्यायपालिका से ऊपर कुछ नहीं है।