पिता ने लिखी 6 महीने की सेवा में अमर हुए पुत्र की शौर्य गाथा
वैभव तिवारी नोएडा स्वर्ग के देवताओं के अधिपति देवता अर्थात विजयंत जो शौर्य और तेज के परि
वैभव तिवारी, नोएडा :
स्वर्ग के देवताओं के अधिपति देवता अर्थात विजयंत जो शौर्य और तेज के परिचायक होते है, ऐसी ही वीरता और अदम्य प्रतिभा के धनी थे राजपूताना राइफल्स के वीर चक्र विजेता कैप्टन विजयंत थापर, जिन्होंने महज 22 वर्ष की उम्र में सेना के छह महीने की सेवा में कारगिल युद्ध के दौरान खुद को बलिदान कर दिया था। दिवंगत बेटे की शौर्य गाथा और जीवन के विभिन्न आयामों और संवेदनाओं को उनके पिता सेवानिवृत्त कर्नल विरेंद्र थापर ने अपने शब्दों में उकेरकर पुस्तक का रूप दिया है,जिनका सहयोग कारगिल युद्ध के बलिदानी मेजर चंद्रभान द्विवेदी की बेटी दिल्ली निवासी नेहा द्विवेदी ने किया है।
13 अक्टूबर को चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने विजयंत पुस्तक के हिदी रूप का लोकार्पण किया। इसके अंग्रेजी रूप का लोकार्पण छह महीने पहले हो चुका है। सेवानिवृत्त कर्नल विरेंद्र थापर ने अपने बेटे के साथ बिताए हुए पलों का संस्मरण साझा करते हुए बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान नोल की चोटी पर चढ़ाई से दो दिन पहले 27 जून 1999 को विजयंत ने एक पत्र लिखा था। पत्र में लिखा था जब तक आप सभी को पत्र मिलेगा मैं आसमान में अप्सराओं के सेवा सत्कार का आनंद उठा रहा होऊंगा। साथ ही दोबारा जीवन मिलने पर सैनिक बनने और मातृभूमि के लिए लड़ने की बात कही थी। पत्र में आतंकी हमले में रुखसाना नाम की बच्ची के मां-बाप के मारे जाने और उसे सदमे से बाहर निकालने वाले कैप्टन विजय थापर ने अपने पिता से उसकी फीस देने को कहा था। रुखसाना से आज भी उनके पिता वर्ष में एक बार मिलने जाते है और हरसंभव मदद करते है। नोएडा में उमड़ा था जनसैलाब
29 जून 1999 को शहीद हुए कैप्टन विजयंत थापर का अंतिम संस्कार 3 जुलाई को हुआ था। इस दौरान नोएडा में करीब डेढ़ लाख लोगों का जनसैलाब अंतिम विदाई में शामिल हुआ था। इस दौरान उन्हें बलिदानी का सम्मान देते हुए अंतिम विदाई दी गई थी। उनके पिता सेवानिवृत्त कर्नल विरेंद्र थापर ने बताया कि पुस्तक में विजयंत के बचपन से देश भक्ति के जज्बे, संघर्ष के बारे में लिखा गया है, जिसे पढ़कर युवा देश भक्ति और जज्बे का पाठ सीख सकेंगे। वीर पदक से सम्मानित शहीद विजयंत थापर का व्यक्तित्व युवाओं के लिए आदर्श है।