रेरा से बचने के लिए एनसीएलटी को हथियार बना रहे बिल्डर
वैसे तो न्यायालय (कोर्ट) व अधिकरण (ट्रिब्यूनल) अपने न्यायसंगत आदेशों से लोगों की समस्याओं का समाधान करते हैं लेकिन यही कोर्ट यदि बचाव का जरिया बन जाए तो भला आम आदमी कहां जाएगा। विभिन्न बिल्डर परियोजनाओं में फंसे खरीदारों के साथ ऐसा ही हो रहा है जहां बिल्डर रेरा के फेर से बचने के लिए एनसीएलटी (नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) को हथियार बना रहे हैं।
पंकज मिश्रा, ग्रेटर नोएडा : वैसे तो न्यायालय (कोर्ट) व अधिकरण (ट्रिब्यूनल) अपने न्यायसंगत आदेशों से लोगों की समस्याओं का समाधान करते हैं, लेकिन यही कोर्ट यदि बचाव का जरिया बन जाए तो भला आम आदमी कहां जाएगा। विभिन्न बिल्डर परियोजनाओं में फंसे खरीदारों के साथ ऐसा ही हो रहा है, जहां बिल्डर रेरा के फेर से बचने के लिए एनसीएलटी (नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) को हथियार बना रहे हैं।
यह बात मंगलवार को सेक्टर गामा दो स्थित उत्तर प्रदेश भू संपदा विनियामक प्राधिकरण (यूपी रेरा) में सुनवाई के दौरान सामने आई, जब एक खरीदार ने रेरा सदस्य कल्पना मिश्रा के सामने अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए उक्त बात कही। खरीदार विवेक तिवारी ने कहा कि मैडम अभी तक मामला रेरा में है, तो आप जल्द से जल्द रिफंड का आदेश दे दीजिए। क्या पता कब बिल्डर अपने ही किसी खरीदार के द्वारा एनसीएलटी में याचिका दाखिल करा दे। एनसीएलटी में मामला चले जाने पर संबंधित बिल्डर से जुड़े किसी भी मामले पर रेरा सुनवाई के लिए विचार नहीं करता। ऐसे में रेरा में हाजिरी से बचने के लिए बिल्डर उक्त हथकंडा अपना रहे हैं।
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यह है मामला :
याचिका कर्ता विवेक तिवारी के मुताबिक थ्री सी बिल्डर की नोएडा स्थित जिग परियोजना में उन्होंने अप्रैल 2011 में एक फ्लैट बुक किया था, जिसकी अब तक 95 फीसदी धनराशि जमा की जा चुकी है। बिल्डर ने 2014 में उन्हें कब्जा देने का भरोसा दिया था, लेकिन आज तक निर्माण कार्य ही पूरा नहीं हो पाया है। वहीं थ्री सी बिल्डर की ही एक दूसरी परियोजना पनाश में भी उन्होंने 2010 में फ्लैट बुक किया, जिसके लिए बिल्डर ने नवंबर 2012 में कब्जा देने का भरोसा दिया था। इस परियोजना का भी अब तक निर्माण पूरा नहीं हो पाया है। खास बात यह है कि पनाश परियोजना से जुड़े मामलों के एनसीएलटी में जाने से अब रेरा इस पर सुनवाई से इन्कार कर रहा है। विवेक ने बताया कि उन्हें नहीं मालूम कि एनसीएलटी कब मामले पर सुनवाई करेगा।
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पहले भी आ चुके हैं ऐसे मामले :
बिल्डरों द्वारा एनसीएलटी के जरिए खुद को रेरा से बचने के पूर्व में भी मामले सामने आते रहे हैं। प्रिमरोज बिल्डर ने भी रेरा के चक्कर से बचने के लिए यही हथकंडा अपनाया है। इसी बात को लेकर उक्त परियोजना के निवेशकों ने बीते फरवरी माह में बिल्डर के खिलाफ मोर्चा खोला था। हालांकि, प्रिमरोज बिल्डर के खिलाफ ईओडब्ल्यू भी सबूत जुटा रहा है, इसकी आशंका को देखते हुए बिल्डर बिल्डर प्रतिनिधि रेरा कार्यालय जाकर आक्रोशित खरीदारों से मुलाकात करता रहता है। ग्रेटर नोएडा स्थित प्रिमरोज परियोजना में खरीदारों ने 416 फ्लैट बुक किए गए हैं, जिनसे बतौर एडवांस खरीदारों से चार करोड़ से ज्यादा की धनराशि वसूली जा चुकी है। उक्त परियोजना से जुड़े मामले एनसीएलटी में जाने से यूपी रेरा ने सुनवाई से इन्कार कर दिया है, लेकिन ईओडब्ल्यू की कार्रवाई की आशंका से डरकर बिल्डर प्रतिनिधि समय-समय पर सभी खरीदारों को घर देने की बात कहते रहते हैं। 243 मामलों पर हुई सुनवाई :
मंगलवार को रेरा कार्यालय में विभिन्न बिल्डर परियोजनाओं से जुड़े 243 मामलों पर सुनवाई हुई। रेरा सदस्य कल्पना मिश्रा ने पीठ एक ने 72 और भानु प्रताप व बलविदर कुमार ने संयुक्त रूप से पीठ दो में 171 मामले सुने। मंगलवार को भी ज्यादातर खरीदारों ने बिल्डर की कार्यशैली से असंतोष व्यक्त करते हुए ब्याज समेत रिफंड की मांग की। पीठ एक में अजनारा रियलटेक, ड्रीमलैंड प्रमोटर्स, जीडीए, जेपी ग्रींस, जेकेजी कंस्ट्रक्शंस, क्वालिटी टाउनशिप, ओरिश इन्फ्रास्ट्रक्चर समेत अन्य मामलों पर सुनवाई हुई। वहीं पीठ दो ने वैलेंसिया होम्स, युनाइटेड रिलायबल होम्स, वेव मेगासिटी समेत अन्य बिल्डरों से जुड़े मामले सुने।