संयुक्त किसान मोर्चा में फूट, चिल्ला बार्डर पर धरने से हटा भानु गुट
जागरण संवाददाता नोएडा गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली के लाल किले पर किसान आंदोलन के नाम पर
जागरण संवाददाता, नोएडा :
गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली के लाल किले पर किसान आंदोलन के नाम पर जिस प्रकार से उपद्रव हुआ। लाल किला की प्राचीर पर तिरंगे की जगह केसरिया झंडा लगाकर, तिरंगे का अपमान किया। इस घटना के बाद संयुक्त किसान मोर्चा में फूट पड़ गई है। किसान संगठनों ने घटना की भर्त्सना कर प्रकरण से कन्नी काटनी शुरू कर दी है। यहीं नहीं किसान आंदोलन बीच में छोड़ कर घर वापसी करने लगे है। बुधवार को सेक्टर-14 ए स्थित चिल्ला बार्डर पर 58 दिन से नए कृषि कानूनों को वापस कराने की मांग को लेकर धरने पर बैठे भारतीय किसान यूनियन (भानु) गुट ने अपना धरना ही समाप्त कर दिया। एनसीआर का यह पहला किसान संगठन है, जिसने आंदोलन को बीच में छोड़कर जाने का निर्णय लिया है। धरने के खत्म होने से बार्डर खुल गया, जिससे वाहनों चालकों को भारी राहत मिली है।
बता दें कि बुधवार को चिल्ला बार्डर पर लाल किले की घटना को लेकर दिन भर भारतीय किसान यूनियन (भानु) गुट की कोर कमेटी की बैठक होती रही। इसमें किसान आंदोलन को लेकर मंथन चला। इस दौरान पदाधिकारियों ने निर्णय लिया कि किसानों की मांग को लेकर संघर्ष जारी रहेगा, लेकिन चिल्ला बार्डर से धरना खत्म किया जाएगा। इसकी घोषणा भानु गुट के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने की। इस दौरान उन्होंने बताया कि किसानों की मांग को लेकर भारतीय किसान यूनियन खुद सक्षम है कि वह आंदोलन कर सके। संयुक्त किसान मोर्चा से भानु गुट का कोई संबंध नहीं है। किसानों की मांग को पूरा कराने के लिए यहां पर धरना लगाया था, दिल्ली में किसान परेड करना चाहते थे, बुधवार को किसानों ने परेड की, लेकिन किसानों की ओर से कोई उपद्रव नहीं किया गया। जो रूट निर्धारित था, उससे इतर भानु गुट के किसान नहीं गए। लेकिन जिन लोगों ने लाल किले पर उपद्रव किया, जवानों को मारा, तिरंगे का अपमान किया, केसरिया रंग का झंडा लगाया, यह घटना बहुत ही निंदनीय है। देश दुनिया में भारत की छवि को शर्मसार किया है। इसलिए आंदोलन से भारतीय किसान यूनियन (भानु) गुट ने अपने को अलग कर लिया है। हम सरकार से मांग करते हैं कि जिन लोगों ने इस तरह का कृत्य किया है, जिससे हर भारतीय का सिर झुका है, उन लोगों को बेनकाब कर सख्त कार्रवाई की जाए, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि किसानों की आड़ में यह कौन से उपद्रवी थे, जिन्होंने हमारे संविधान के साथ खिलवाड़ किया है।