अपनों के अपनाने का अब भी इंतजार
-फोटो 16 एनडीपी 09 से 14
संवाददाता, नोएडा :
जिस घर, समाज में जन्म लिया, सबसे पहले वहां से भेदभाव शुरू हुआ। इसके बाद गली-मोहल्ले और फिर पूरे समाज ने अपनाने से इन्कार कर दिया। तिरस्कार का दंश झेलते, अपने हक के लिए तरसते लंबा समय बीत गया। अब उम्मीद है कि समाज में समानता का दर्जा मिलेगा। यह बात तो पता नहीं कि समाज हमें कब तक अपनाने की स्थिति में होगा, लेकिन अब हास्य का पात्र बनने के बजाय सामान्य जीवन जीने में कुछ राहत जरूर मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने तो अपना काम कर दिया है, अब इंतजार है तो समाज में बदलाव का। यह कहना है उनका (किन्नरों का), जिन्हें सिर्फ खुशी के मौके पर नाचने और बधाई देने के लिए बुलाया जाता है। इन्हें न पुरुष माना गया, न महिला। इन्होंने अपनी मर्जी से अपने नाम रखे और समाज के एक अलग हिस्से के रूप में जिदंगी जी रहे हैं। जी हां, बात किन्नरों की हो रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में न सिर्फ किन्नरों को लिंग की तीसरी श्रेणी में शामिल करने का, बल्कि उन्हें शैक्षणिक और संस्थानों में प्रवेश व नौकरियों में आरक्षण देने का भी अधिकार दिया है। किन्नरों को मिले इस हक के बारे में जब दैनिक जागरण की टीम किन्नरों से मिलने भंगेल गांव की कुंडा कॉलोनी पहुंची, जहां किन्नरों का सिर्फ एक घर है। इस घर के आसपास सामान्य कहे जाने वाले लोग रहते हैं लेकिन शायद इनसे कोई सरोकार रखने को तैयार नहीं है। घर का दरवाजा खुला था। वहां एक बच्चे से पूछा कि यह पप्पू का घर है तो बच्चा मुस्कुराया और कहा कि हां, बुलाता हूं। घर के बाहर ही बातचीत का सिलसिला शुरू करने का प्रयास किया, लेकिन वे कतराते रहे। काफी देर तक प्रयास किया तो उन्होंने कहा कि हमारे गुरु पप्पू यहां नहीं हैं। आप लोग अगले दिन आ जाओ। वह पप्पू होंगे तो उनसे बात कर लेना, हम कुछ नहीं कहेंगे। किन्नरों द्वारा बनाई गई एक अलग विचाराधारा के कारण ही उन्होंने बात करने से मना किया। क्योंकि गुरु के कहे बिना न वे कहीं जाते हैं, न किसी से बात करते हैं। फिर काफी प्रयास के बाद भी किन्नरों ने बिना गुरु की इजाजत के बात करने से मना कर दिया और गुरु का मोबाइल नंबर भी देने से इन्कार कर दिया। टीम ने एक बार फिर प्रयास करते हुए कहा कि हम आपके गुरु को जानते हैं, वह होते तो हमें पहचान लेते, आप कुछ नहीं कहना चाहते तो हमारी बात अपने मोबाइल से करा दो। कई बार किए गए अनुग्रह के बाद किन्नरों ने अपने ही मोबाइल से गुरु पप्पू से बात कराई। पप्पू को जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में बताया और इस बारे में उनकी प्रतिक्रिया चाही तो हंसने की आवाज आई और ऐसा लगा मानो पप्पू इस निर्णय से काफी खुश है। पप्पू ने फोन पर अन्य किन्नरों से कहा कि वे जागरण टीम से बात कर सकते हैं, तो किन्नरों ने अपनी वास्तविक खुशी का इजहार करने के साथ अपनी पीड़ा भी रखी। उन्हें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बारे में जानकारी तो थी, लेकिन जब टीम ने प्रतिक्रिया चाही तो उन्होंने शब्द कम कहे और ढोलक बजाकर नाचने गाने का सिलसिला शुरू कर बता दिया कि अब समाज की मूल धारा से जुड़कर सामान्य जीवन जीने का उनका इंतजार खत्म हो गया है।
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बॉक्स
किन्नर होने पर लोग उन्हें भेदभाव से देखते हैं। इससे उन्हें समाज में अनेक दिक्कतों से जूझना पड़ता है।
पप्पी
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किन्नरों का समाज में तिरस्कार किया जाता रहा है। कानूनन उनके हक व सुविधा के लिए कुछ नहीं किया जाता।
रीना
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संविधान में लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया गया। हालांकि समाज में रोज उनके साथ भेदभाव किया जाता है।
शर्मिली
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किन्नरों को पहचान के लिए काफी समय से प्रयास किए जा रहे थे। आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सुन ली।
पिंकी
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स्कूल व संस्थानों में उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया जाता है। किन्नर होने की तोहमत लगा रपटा दिया जाता है।
आनंदी
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समाज में रहते हैं, लेकिन अब तक उसका हिस्सा नहीं बन पाए थे। अब उम्मीद है कि समाज में बराबरी का दर्जा मिले तो हम भी सभी के साथ रहेंगे।
मुन्नी