शब्दों के जादूगरों ने दुनिया में कमाया नाम
बुढ़ाना क्षेत्र में साहित्य सृजन से लेकर काव्य पाठ की परंपरा काफी पुरानी है। यहां पर जहां प्रसिद्ध साहित्यकार भीमसेन त्यागी ने नाम रोशन किया। वहीं आजकल काव्य की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए नई पीढ़ी अपना नाम कमा रही हैं। इन लोगों ने अपनी साहित्यिक क्षमताओं के आधार पर अपनी एक विशिष्ट पहचान स्थापित की है।
मुजफ्फरनगर, प्रदीप मित्तल।
बुढ़ाना क्षेत्र में साहित्य सृजन से लेकर काव्य पाठ की परंपरा काफी पुरानी है। यहां पर जहां प्रसिद्ध साहित्यकार भीमसेन त्यागी ने नाम रोशन किया। वहीं आजकल काव्य की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए नई पीढ़ी अपना नाम कमा रही हैं। इन लोगों ने अपनी साहित्यिक क्षमताओं के आधार पर अपनी एक विशिष्ट पहचान स्थापित की है।
साहित्य के बीज से बनाया वट वृक्ष
भीमसेन त्यागी का जन्म 19 सितंबर, 1935 को हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद और दिल्ली में कई पत्रिकाओं का संपादन भी किया। उनके लिखे उपन्यास जमीन, नंगा शहर, काला गुलाब, वर्जित फल तथा कहानी संग्रह दीवारें ही दीवारें, जुबान, कमजोर प्यार की कहानियां तथा शब्द चित्र आदमी से आदमी तक काफी प्रसिद्ध रहे।
तमन्ना जमाली ने वर्ष 80-90 के दशक में देश भर के बड़े आयोजनों में बुढ़ाना का प्रतिनिधित्व किया। उनकी लोकप्रियता सरहदों को भी पार करती रही। उनकी गजल- 'तगाफुल से तेरे जो बर्बाद होगी, वो बस्ती ना फिर दिल की आबाद होगी'
सभी की •ाुबान पर रहती थी।
साहित्य काव्य की धरोहर संजोए है युवा पीढ़ी
देव शर्मा देव के नाम से कविता लिखकर व गाकर नाम रोशन करने वाले कवि किसी पहचान के मोहताज नहीं है। उन्होंने देश भक्ति गीत लिखे व गाए। उनके द्वारा रचित कविताओं का संग्रह 'गीत सुमन' प्रकाशित हुआ है। मालीवुड (देहाती फिल्मों) में गीत, कहानी, डायलाग लिखने के साथ उसमें अभिनय भी कर रहे हैं। उनकी एक फिल्म धाकड़ छोरा बहुत प्रसिद्ध हुई थी।
पिछले कुछ वर्षों में कस्बे के युवा अजहर इकबाल भी साहित्य के क्षितिज पर उभरे हैं। अजहर इकबाल को हिन्दी साहित्य में महारत हासिल है। इंडियन लेंग्वेज फेस्टिवल, रेख्ता फाउंडेशन, कुमाऊं लिटरेचर फेस्टिवल, डेक्केन लिटरेचर फेस्टिवल, शंकर शाद ट्रस्ट, साहित्य कला परिषद, साहित्य एकेडमी जैसी संस्थाओं के साहित्यक कार्यक्रम का हिस्सा रहे। उन्हे मधुकर श्याम सम्मान, राम गोपाल चतुर्वेदी सम्मान, लखनऊ महोत्सव आदि संस्थाओं ने सम्मानित किया है।
युवा कवि महेश राठौर सोनू, तारिक उस्मानी, गुलजार, सागर सैनी, अफजाल आदि इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे है। महेश राठौर सोनू गांव राजपुर गढ़ी के निवासी हैं। उन्हे साहित्य संगम संस्थान, राष्ट्रीय भाषा गौरव, नवरत्न, भारत भारती, समीक्षाधीश, साहित्य केतु संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। उनकी एक कविता है- 'मंजिल है दूर मगर पाकर रहेंगे, जिद है कि आसमान को छूकर रहेंगे।'