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नचाते हैं पुरुषोत्तम और नाचते हैं हम

न भूमिका का अभ्यास न कभी रंगमंच पर पूर्वाभ्यास न किसी से संवाद बोलने की कला सीखी और न कहीं से औपचारिक प्रशिक्षण लिया। मंच पर साल में एक बार आते हैं वह भी महज 15 दिन के लिए। इसके बावजूद श्रद्धालु उनके अभिनय और संवाद के कायल हो जाते हैं। श्रीरामलीला के ये स्थानीय कलाकार न तो पैसों की ललक में अभिनय करते हैं और न इन्हें नाम चमकने की फिक्र है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 14 Oct 2021 11:40 PM (IST)Updated: Thu, 14 Oct 2021 11:40 PM (IST)
नचाते हैं पुरुषोत्तम और नाचते हैं हम
नचाते हैं पुरुषोत्तम और नाचते हैं हम

जेएनएन, मुजफ्फरनगर। न भूमिका का अभ्यास, न कभी रंगमंच पर पूर्वाभ्यास, न किसी से संवाद बोलने की कला सीखी और न कहीं से औपचारिक प्रशिक्षण लिया। मंच पर साल में एक बार आते हैं वह भी महज 15 दिन के लिए। इसके बावजूद श्रद्धालु उनके अभिनय और संवाद के कायल हो जाते हैं। श्रीरामलीला के ये स्थानीय कलाकार न तो पैसों की ललक में अभिनय करते हैं और न इन्हें नाम चमकने की फिक्र है। श्रीरामलीला में पसंद की भूमिका मिल जाए और कोई मुट्ठी भर प्रशंसा कर दे, बस प्रोत्साहन की यही डोर उन्हें हर साल मंच पर खींच लाती है। कलाकारों का कहना है कि नचाते हैं पुरुषोत्तम और नाचते हैं हम, इसमें हमारी कौन सी विशेषता।

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शहरों में श्रीरामलीला के लिए बाहर से मंडली को बुलवाया जाता है। मंडली पर लाखों रुपये खर्च होते हैं। इसके लिए कमेटी नगरवासियों से सहयोग लेती हैं, लेकिन क्षेत्र के ग्रामीण अंचल में होने वाली श्रीरामलीलाओं में बाहर के नहीं, बल्कि स्थानीय कलाकार काम करते हैं। मंच पर इनका अभिनय देख श्रद्धालु वाहवाहीं देते नहीं थकते। अभिनय के अलावा मंचन के निर्देशक, प्रस्तोता, गीतकार व संगीतकार, मंच सज्जा, प्रकाश संयोजन, वेशभूषा सभी का जिम्मेदारी भी स्थानीय लोग ही उठाते हैं। अभिनय और मंच सज्जा किसी भी दृष्टि से व्यावसायिक विशेषज्ञों से कमतर नहीं होते। यहां लोग रामलीला को महज मंचन नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, धार्मिक और भावनात्मक रूप से लेते हैं। उनके लिए यह आयोजन धार्मिक अनुष्ठान या आयोजन की तरह होता है। इस कारण सब लोग समर्पित भाव से काम करते हैं। सठेड़ी गांव में चल रही श्रीरामलीला में श्रीराम का अभिनय कर रहे मुकुल मोघा व लक्ष्मण का किरदार निभा रहे मानव मोघा का कहना है कि उन्होंने कभी किसी से संवाद बोलना या अभिनय करना नहीं सीखा। श्रीरामलीला के मंच पर संवाद बोलते-बोलते वे पारंगत हो गए। अब तो सारे संवाद कंठस्थ हैं। दर्शक उन्हें भगवान श्रीराम व लक्ष्मण रूप में देखना पसंद करते हैं। उन्हें भी यह सोचकर अच्छा लगता है कि दर्शक उन्हें इस रूप में देखने के लालायित हैं। माता सीता की भूमिका निभाने वाले अर्जुन और रावण बनने वाले अजय का भी यही कहना है। संगीत व गीत श्रद्धालुओं को खूब भाते हैं। श्रद्धा और आस्था से चल रही श्रीरामलीला देखनी हो तो सठेड़ी गांव में आइए। इस गांव के श्रीरामलीला आयोजन समिति के संरक्षक जलदीप सिंह, सुनील राजपूत, अध्यक्ष आदेश कुमार, उपाध्यक्ष राजीव कुमार, महासचिव मनोज कुमार, सचिव सतीश कुमार, प्रबंधक देवेंद्र सिंह, उप प्रबंधक कपिल, कोषाध्यक्ष अरविद कुमार, उपकोषाध्यक्ष नितिन कुमार, निर्देशक विशेष कुमार, सहायक निर्देशक विकास कुमार का कहना है कि शहरों में लाखों रुपये खर्च कर श्रीरामलीला मंडली को बुलवाया जाता है। देहात क्षेत्र में इतनी रकम चंदे में नहीं आती है। इस कारण स्थानीय कलाकारों के सहयोग से रामलीला होती है।

सीता करती नौकरी, राम-लक्ष्मण पढ़ाई

सठेड़ी गांव की श्रीमरामलीला में माता सीता का अभिनय कर रहे अर्जुन हरियाणा में एमजी सेबिनेट प्राइवेट लिमिटेड में नौकरी करते है, जबकि श्रीराम का अभिनय कर रहे मुकुल रामानुज कालेज-दिल्ली में पढ़ते है। लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले मानव श्रीराम ग्रुप आफ कालेज-मुजफ्फरनगर में अध्यनरत हैं। तीनों शाम को नियत समय पर श्रीरामलीला में मंच पर पहुंच जाते हैं। उनका कहना है कि श्रीरामलाल में अभिनय लालच में नहीं करते है। उन्हें लोगों से मिलने वाला प्रोत्साहन मंचन पर खींच लाता है। श्रीरामलीला में श्रद्धालुओं को मर्यादा में रहने और माता-पिता की सेवा करने की प्रेरणा और धार्मिक ग्रंथों की जानकारी मिलती है।


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