इंसानी जिंदगी पर भारी आवारा कुत्तों की मनमानी
आवारा कुत्तो पर नगर पालिका की लापरवाही और पशु प्रेमियों की नरमी इंसानी जिदगी के लिए मुसीबत का सबब बन रही है। शहर कस्बे और गांव में बढ रही आवारा जानवरों की फौज लोगों की आजादी के लिए खतरा बन चुकी है।
जागरण संवाददाता, मुजफ्फरनगर : आवारा कुत्तों पर नगर पालिका की लापरवाही और पशु प्रेमियों की नरमी इंसानी जिदगी के लिए मुसीबत का सबब बन रही है। शहर कस्बे और गांव में बढ़ रही आवारा जानवरों की फौज लोगों की आजादी के लिए खतरा बन चुकी है। गली मोहल्लों में कुत्तों का और छतों पर बंदरों का राज कायम है। कब किस कोने से आकर कोई आवारा कुत्ता या बंदर किसी को काटकर गायब हो जाता है, किसी को कुछ पता नहीं चलता। इसके बाद शुरू होता है हाईड्रोफोबिया का खौफ और एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवाने की मारामारी का दौर। छह वर्ष पूर्व चला था जानवरों पर अभियान
आवारा कुत्ते और बंदरों के साथ अन्य आवारा जानवरों की संख्या बढ़ने के पीछे अगर नगर पालिका दोषी है तो पशु प्रेमी भी कम जिम्मेदार नहीं। एक तो आवारा कुत्तों को पकड़ने का कोई अभियान नहीं चलता। यदि चलता भी है तो पशु प्रेमी उस अभियान में रोड़ा बन जाते हैं। छह वर्ष पूर्व नगर पालिका में मथुरा से विशेषज्ञ बुलाकर बंदर पकड़वाए गए थे। बंदरों को जंगलों में छोड़ दिया गया, जो दूसरे क्षेत्र के लोगों के लिए समस्या बन गए। आवारा कुत्तों को पकड़ने के लिए अभियान चलाया गया, लेकिन गली-मोहल्लों के लोगों ने उसका विरोध शुरू कर दिया। हाईड्रोफोबिया का पैदा हो जाता है खतरा
कुत्ता काटने से होने वाली बीमारी को हाईड्रोफोबिया कहा जाता है। इस बीमारी का सबसे बड़ा व अंतिम लक्षण पानी के प्रति दहशत और उससे दूर भागना होता है। लेकिन जब तक ये लक्षण किसी पीड़ित में नजर आना शुरू होते हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। चिकित्सकों के मुताबिक हाईड्रोफोबिया की पहचान यदि शुरू में हो जाए तो उपचार की उम्मीद रहती है, लेकिन यदि इसके लक्षण शुरुआती दौर में न पहचाने जा सके तो उपचार की दिक्कत आती है।इसलिए किसी भी संक्रमित कुत्ते के काटते ही बिना लक्षणों का इंतजार किये एंटी रेबीज वैक्सीन लगवाना शुरू कर दिया जाना चाहिए। अस्पतालों में एआरवी को मारामारी
जिला अस्पताल में प्रतिदिन 40 से 50 लोग ऐसे आते हैं जिनमें अधिकतर को आवारा कुत्ते या बंदर आदि ने काटा हो। हमला करने वाले ये जानवर कहीं रेबीज वायरस से तो संक्रमित नहीं है, इसलिए एहतियातन पीड़ित को एंटी रेबीज वैक्सीन लगवाना जरूरी होता है। इसे देखते हुए जिला अस्पताल में एक माह में औसतन 800 से 1000 लोग एआरवी लगवाने आते हैं। रेबीज वायरस का खतरनाक प्रभाव
संक्रमित कुत्ता, बंदर आदि के काटने या चाटने या उनका थूक घाव आदि पर लगने से रेबीज का संक्रमण संभव है। रेबीज का संक्रमण सीधे तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव डालता है। इसलिए सिर आदि के करीब संक्रमित जीव के काटने से वायरस के शरीर में फैलने का खतरा रहता है। जबकि हाथ-पैर में काटने से संक्रमण थोड़ा देर से फैलता है। आम तौर से रेबीज संक्रमण की स्थिति में कोई उपचार कारगर नहीं। इसलिए आवश्यक है कि संक्रमित कुत्ता, चमगादड़ आदि के काटने के साथ ही उपचार कराना चाहिए। इसलिए एंटी रेबीज तुरंत लगवाने के साथ संबंधित जानवर पर भी नजर रखनी चाहिए। कुत्ता या बंदर काट ले तो घाव को ताजे पानी से धोना चाहिए। यदि किसी पशु को संक्रमित कुत्ते ने काटा है तो उससे भी दूर रहना चाहिए। नई मुसीबत बन रहा आवारा गोवंश
हाल के वर्षो में शहर व देहात क्षेत्र में आवारा गोवंश की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है। सड़को व संपर्क मार्गो पर आवारा घूमते गोवंश लोगों के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं। रात और दिन के समय सड़क पर चलते वाहनों से आवारा गोवंश का टकराना आम बात बन गया है। आए दिन एसी घटनाएं हो रही हैं जब ये आवारा गोवंश एक-दूसरे से लड़ते सड़क पर चलते वाहनों को अपनी चपेट में ले लेते हैं। गांव में खेती-किसानी के लिए भी आवारा पशु चुनौती बन गए हैं। खेतों में खड़ी फसल भी आवारा पशु उजाड़ रहे हैं। आवारा पशुओं का झुंड खेतों में घुस जाता है और फसलों को बीमार कर देता है।