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संवेदनाओं से बदलती है सोच और समाज

कर्म ही वह जादुई तत्व है, जो आपको स्थायी सफलता दिलाता है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 18 Sep 2018 11:52 PM (IST)Updated: Tue, 18 Sep 2018 11:52 PM (IST)
संवेदनाओं से बदलती है सोच और समाज
संवेदनाओं से बदलती है सोच और समाज

मुजफ्फरनगर : भाग-दौड़ भरी ¨जदगी में लोगों के पास अपने के लिए ही समय नहीं है। वृद्ध आश्रम में बुजुर्गो की संख्या बढ़ रही है। बच्चों का दादा-दादी, नाना-नानी से संपर्क कम होता जा रहा है। कई बार हादसों के बाद पीड़ित को त्वरित उपचार नहीं मिल पाता। सड़क किनारे पड़े घायल को देखकर लोग मुंह भेरकर निकल जाते हैं। इससे सामाजिक तानाबाना टूट रहा है। बच्चों, अभिभावकों और शिक्षकों को इस दिशा में सकारात्मक होने की जरूरत है। अध्यापक और छात्र अविस्मरणीय और अद्वितीय होते हैं। जिस प्रकार एक कुम्हार थपकी देकर घड़े को आकर देता है तथा उसके रूप को संवारता है उसी प्रकार समय समय पर मार्गदर्शन कर एक अध्यापक अपने शिष्य को प्रतिभा को निखार कर उसे सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाने की कोशिश करता है। माता-पिता के बाद वह अध्यापक ही हैं, जो बालक के लिए अपने समस्त जीवन को अर्पित करता है। अध्यापक छात्र के लिए एक आदर्श यानी मॉडल होता है। अध्यापक की बताई गयी बातों को छात्र बड़ी आसानी से स्वीकार कर लेता है तथा अध्यापक के आदेश को स्वीकार भी कर लेता है। इस भौतिकवादी युग में समस्त परिवार मोबाइल तथा टीवी में लगा रहता है तथा स्वयं माता-पिता के पास अपने बच्चों के लिए समय नहीं है। बच्चे दादा-दादी व नाना-नानी के किस्सों और कहानियों से अछूते रह जाते हैं। दरअसल इसकी मुख्य वजह एकल परिवार हैं। संयुक्त परिवार दूर तक दिखाई नहीं देते, जिसके चलते बच्चों में अपने बुजुर्गो के प्रति संवेदनाएं कम होती जा रही हैं। शिक्षक संवेदनाओं को पुन: जीवित कर सकता है। बालक के अंदर संवेदनाओं का होना बहुत अनिवार्य है। चाहे अध्यापक हो या छात्र हमें हर कदम बहुत फूंक-फूंककर उठाना चाहिए। एक बार एक घटना स्वयं मेरे साथ घटित हुई। करीब 20 साल पूर्व मैं कक्षा नौवीं में पढ़ा रहा था। मैंने बच्चों को हमेशा विद्यालय में स्नान करके आने तथा बाल व नाखून कटवाकर आने के लिए प्रेरित किया है। हर दिन की भांति मैंने सभी बच्चों के दांत बल नाखून आदि का निरीक्षण किया। एक छात्र जिसके बाल बहुत बढ़े हुए थे, वह कक्षा में सबसे पिछली पंक्ति में बैठा हुआ था। उसे आगे बुलाया और बाल न कटवाने का कारण पूछा। बालक के कोई संतोषजनक जवाब न देने पर मैंने बालक को तमाचा जड़ दिया। इसके बाद मैंने जो देखा वह दृश्य बहुत दुखद था, उस बालक का कान कटा हुआ था। अपने बालों को बढ़ाकर वह बालक अपने कटे कान ढंकने की कोशिश किया करता था। यह सब देखकर मुझे बहुत ग्लानि हुई। तबसे आज तक अपने सभी छात्रों से कहता हूं कि हमें कोई भी निर्णय बिना सोचे-समझे नहीं लेना चाहिए। यदि आप सफलता चाहते हैं, तो कर्म में जुट जाएं। यदि आप समय का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना सीख लेते हैं, तो आगे चलकर समय आपको पुरस्कार में वह वस्तु दे देगा, जिसे आप प्रबलता से चाहते हैं। सम्मान, धन, सुख या जो भी आप चाहते हैं।

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- नरेश प्रताप ¨सह, प्रधानाचार्य चौ. छोटूराम इंटर कॉलेज, मुजफ्फरनगर बेहतरीन लक्ष्यों और सर्वश्रेष्ठ योजनाओं के बावजूद आप असफल हो सकते हैं, यदि आप उन पर अमल न करें। कर्म ही वह जादुई तत्व है, जो आपको स्थायी सफलता दिलाता है। हम सब जानते हैं कि बिना मेहनत किए सफल नहीं हो सकते, लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि इसके बावजूद हम मेहनत से जी चुराते हैं। काम को टालते रहते हैं, मूड न होने का बहाना बनाते हैं, समय या संसाधन की कमी का तर्क देते हैं। इस संदर्भ में तुलसीदासजी के इस दोहे को याद रखें, 'सकल पदारथ है जग माही। करमहीन नर पावत नाहीं।' यानी इस संसार में सारी चीजें हासिल की जा सकती हैं, लेकिन वे कर्महीन व्यक्ति को नहीं मिलती हैं। काम से जी चुराने का मूलभूत कारण यह है कि हम स्वभाव से आलसी होते हैं और हमारा मन हमें मनोरंजन या आनंद की आसान तथा आकर्षक राह की तरफ खींचता हैं। हम यह भूल जाते हैं कि सफलता की राह मुश्किलों से भरी है, जिस पर चलने व श्रम करने के लिए हमें अपने मन पर काबू पाना होगा, अपनी इच्छा शक्ति को दृढ़ करना होगा और लक्ष्य की ओर लगातार बढ़ाना होगा। हम यह भी भूल जाते हैं कि सफल व्यक्ति अपने मन के दास नहीं, बल्कि उसके स्वामी होते हैं। इस संबंध में सबसे अच्छी सलाह यह है, कोई काम शुरू करते समय अपने मूड से सलाह न लें। यानी मूड के हिसाब से नहीं, बल्कि अपने लक्ष्य और योजना के अनुसार काम करें। जार्ज बर्नार्ड शॉ का कई बार लिखने का मूड नहीं होता था, लेकिन मूड हो या न हो, वे लिखते थे, क्योकि उन्होंने महान साहित्यकार बनने के अपने लक्ष्य को कभी अपनी नजर से ओझल नहीं होने दिया। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्होनें संकल्प किया कि वे हर दिन पांच पेज लिखेंगे, चाहे उनका मूड कैसा भी हो। अगर आप भविष्य में सफलता की फसल काटना चाहते हैं, तो आपको उसके लिए बीज आज बोने होंगे। अगर आप आज बीज नहीं बोएंगे तो भविष्य में फसल काटने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। कई बार ऐसी स्थिति सामने आ जाती है जब मनुष्य गलत कर बैठता है। दूसरे की संवेदनाआओं का अहसास काफी देरी से होता है। एक बार वे कक्षा 10वीं के बच्चों को पढ़ा रहे थे। क्लास में एक कक्षा नौवीं का छात्र बैठा था। जब उससे कारण पूछता तो वह कुछ नहीं बोल पाया। उसे डांटते हुए क्लास से बाहर जाने को कहा, लेकिन वह अपनी कुर्सी से नहीं उठा। छात्र के दुस्साहस पर बड़ा गुस्सा आया और आवेश में आकर छात्र को की पिटाई कर दी। तब भी वह कुर्सी से नहीं उठा। क्लास में सन्नाटा पसरा था। उक्त छात्र को तत्काल क्लास रूम छोड़ने को कहा, जिस पर बालक कुर्सी से नीचे गिर गया। जब उससे खड़ा नहीं हुआ गया तो बड़ा आश्चर्य हुआ। तब एक छात्र ने बताया कि वह बालक दिव्यांग है। इस पर बड़ा पश्चताप हुआ। बालक को उठाया और गले लगा लिया। इस घटना का जिक्र दूसरे शिक्षकों से भी किया।

- फूलचंद, प्रधानाचार्य, महर्षि सुखदेव इंटर कॉलेज, मोरना


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