कुंभ के अखाड़ों को रोशन कर रहे मुल्लाजी
कपिल कुमार, मुजफ्फरनगर मैं तुम्हें अपने उसूलों की कसम देता हूं, मुझे मजहब के तराजू में न
कपिल कुमार, मुजफ्फरनगर
मैं तुम्हें अपने उसूलों की कसम देता हूं, मुझे मजहब के तराजू में न तोला जाए।
मैंने इंसान ही रहने की कसम खाई है, मुझे ¨हदू या मुसलमान न समझा जाए।।
नामचीन शायर अशोक साहिल के इस शेर की मुजफ्फरनगर के मोहम्मद महमूद मुल्लाजी बखूबी नुमाइंदगी कर रहे हैं। सांप्रदायिक दंगे और मंदिर-मस्जिद को लेकर नफरत के अंधेरे में भटकी इंसानियत को 'मुल्लाजी लाइट वाले' जगमग कर रहे हैं। वह 33 साल से देशभर में आयोजित कुंभ मेलों में संतों के अखाड़ों की बिजली व्यवस्था को संभालते हैं। अखाड़े में ही पांच वक्त की नमाज भी पढ़ते हैं।
मुल्लाजी लाइट वाले के नाम से मशहूर मोहम्मद महमूद की शहर की पुरानी घास मंडी में लाइट एंड साउंड की 40 साल पुरानी दुकान है। करीब साढ़े तीन दशक से वह अखाड़ों में बिजली व्यवस्था का काम करते हैं। प्रयागराज कुंभ में भी उन्हें जूना अखाड़े ने यह जिम्मा दिया हुआ है। सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है मुल्लाजी की टीम
76 साल के मुल्लाजी की टीम में ¨हदू और मुस्लिम कारीगरों की बराबर की संख्या है। उनकी टीम में सुक्खा मिस्त्री, लालू, कालू, मेहताब, अरुण गुप्ता और शहजाद आदि शामिल हैं। पंडित बलबीर बतौर मुनीम हिसाब-किताब देखते हैं। आनंदपुरी का अनिल बावर्ची का काम संभालता है।
मुल्लाजी का यह 11वां कुंभ
मोहम्मद महमूद मुल्ला हरिद्वार के चार, प्रयागराज के चार, उज्जैन के तीन कुंभ और अर्द्धकुंभ में बिजली का काम कर चुके हैं। यह काम उन्हें अपने वालिद मरहूम मोहम्मद जाकिर से विरासत में मिला।
कुंभ जैसी खुशी कहीं नहीं
मोहम्मद महमूद का कहना है कि जूना अखाड़े के साधु-संत और महंत की कृपा से उन्हें कुंभ में बिजली का काम मिलता रहा है। केवल कमाई ही उनका मकसद नहीं है, बल्कि समाजसेवा की इच्छा भी कुंभ में पूरी हो जाती है। नौचंदी मेला समेत जन्माष्टमी, दीपावली, दशहरा आदि त्योहारों में भी उन्हें भरपूर काम मिलता है।