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सराहनीय : स्लम के बच्चों की जिंदगी बदलने निकली युवाओं की टोली

ऐसे युवा भी हैं जो अभी पढ़ाई कर रहे हैं। ये लोग अपनी जेब खर्च से रुपये बचाकर और 150 सदस्यों के घर से अखबारों की रद्दी बेचकर बेसहारा और असहाय बच्चों की शिक्षा पर खर्च कर रहे हैं।

By RashidEdited By: Published: Tue, 01 Jan 2019 02:24 AM (IST)Updated: Tue, 01 Jan 2019 12:05 PM (IST)
सराहनीय : स्लम के बच्चों की जिंदगी बदलने निकली युवाओं की टोली
सराहनीय : स्लम के बच्चों की जिंदगी बदलने निकली युवाओं की टोली

मुरादाबाद । स्लम यानी मलिन बस्ती, जिसका जिक्र आते ही झोपड़ी, जिसकी छत टीन और पन्नी की, जगह-जगह गंदगी, मैले-कुचैले अशिक्षित बच्चों की तस्वीर जेहन में उभर आती है। इनकी जिंदगी को संवारने का काम शुरू किया है 40 युवाओं की टोली ने। इस टोली में कोई इंजीनियर है तो कोई व्यवसायिक शिक्षा प्राप्त युवा। टोली में लड़कियां भी हैं। ऐसे युवा भी हैं जो अभी पढ़ाई कर रहे हैं। ये लोग अपनी जेब खर्च से रुपये बचाकर और 150 सदस्यों के घर से अखबारों की रद्दी बेचकर बेसहारा और असहाय बच्चों की शिक्षा पर खर्च कर रहे हैं। पठन-पाठन की पूरी सामग्री भी उपलब्ध कराते हैं।

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एक साल पहले बनाई संस्था

एक साल पहले परिवर्तन द चेंज नाम से संस्था बनाकर शुरू हुआ मिशन अब बढ़ता जा रहा है। अब तक शहर में चार स्थानों पर पाठशाला लग चुकी है। पांचवी पाठशाला कांशीराम नगर में शुरू की है। मई 2017 से अब तक 220 बच्चों को चार स्थानों पर क्लास लगाकर पढ़ाया गया। इनमें से 88 बच्चों का प्रवेश प्राथमिक पाठशाला में करवाया गया। इसका रिकार्ड संस्था ने अपने पास रखा है। वर्तमान में एक पाठशाला काशीराम नगर में चलाई जा रही है, जिसमें करीब 50 बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोडऩे की मुहिम चल रही है।

अभिभावक को बताते हैं शिक्षा का महत्व

संस्था के कर्ताधर्ता कपिल कुमार बताते हैं कि मलिन बस्ती में बच्चों के अभिभावकों को शिक्षा का महत्व बताया जाता है। शिक्षा के प्रति अलख जगाने की कोशिश की जाती है। उसके बाद बच्चों को पढ़ाई के लिए भेजते हैं। कपिल बताते हैं कि मजदूरी करने वाले अपने बच्चों को डेरे पर रखते हैं। पहले उनको समझाते हैं, उसके बाद ही बच्चों को भेजते हैं। प्रत्येक पाठशाला तीन माह तक चलती है। आवश्यकता पडऩे पर अवधि बढ़ा दी जाती है। इस दौरान जब महसूस होता है कि अब बच्चे खुद पढऩे जाने में रुचि ले रहे हैं, उनका दाखिला निकटतम सरकारी प्राथमिक पाठशाला में करा दिया जाता है। दाखिले के लिए जरूरी कागजात स्थानीय पार्षद की मदद से बनवाए जाते हैं।

यह पाठ्य सामग्री दे रही संस्था

बच्चों को पेंसिल, कॉपी, किताबें, इरेजर, शार्पनर, बैग उपलब्ध कराया जाता है। जहां क्लास चलती है, वहां पर चटाई व ब्लैक बोर्ड आदि सामग्री का इंतजाम किया जाता है। सारा खर्च अपनी पॉकेट मनी और रद्दी बेचकर करते हैं। कोई मदद करने के लिए कहता है तो एनसीईआरटी की किताबे, कॉपी, चॉक, रजिस्टर मंगवा लेते हैं। अभी तक किसी से कोई डोनेशन नहीं लिया, न पंजीयन कराया है।

मोबाइल पाठशाला की तैयारी

युवाओं का संकल्प है कि सुदूर क्षेत्रों में पढ़ाई के लिए एक मोबाइल वैन चले। इससे एक दिन में 2-3 जगह अलग-अलग जगहों पर पाठशाला लगाई जा सके और ज्यादा से ज्यादा बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ा जा सके। संस्था में सबसे ज्यादा उम्र के कर्ताधर्ता कपिल कुमार 27 वर्ष के हैं, बाकी सभी छोटे हैं। 2013 में पास आउट मैकेनिकल इंजीनियर कपिल की टोली में इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर हिमांशु सक्सेना हैं। पारस भारद्वाज, दीपांशु सैनी समेत अन्य सदस्य इंजीनियङ्क्षरग कर रहे हैं या फिर अन्य विधा की पढ़ाई कर रहे हैं। 


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