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जब सत्ता थी तो मद में चूर थे, अब कुर्सी हासिल करने के लिए कर रहे कसरत Moradabad News

रात को भी टीम दौड़ती रहती है। आधी रात मेें घरों के आसपास का कूड़ा खोजा जा रहा है। भई डर इस बात का है कि कहीं टीम हमारी पोल न खोल दे।

By Narendra KumarEdited By: Published: Wed, 29 Jan 2020 02:10 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jan 2020 02:10 PM (IST)
जब सत्ता थी तो मद में चूर थे, अब कुर्सी हासिल करने के लिए कर रहे कसरत  Moradabad News
जब सत्ता थी तो मद में चूर थे, अब कुर्सी हासिल करने के लिए कर रहे कसरत Moradabad News

मुरादाबाद (जेएनएन)। अगला साल बीतते ही जंगे मैदान में आना है। इसलिए नेताजी ने पत्ते सजाना शुरू कर दिए हैं। जब सत्ता थी तो उसी मद में चूर थे। कुर्सी गई तो सपने चकनाचूर हो गए। चुनाव जीतने के लिए मेहनत भी खूब की। बहन ने कई मौके भी दिए लेकिन, भाई तो जंगे मैदान में चल ही न सके। अब सवाल राजनीतिक विरासत बचाने का है, तो नेताजी ने असली चाल चल दी है। लोहे से लोहे को काटने की तैयारी कर ली है। सियासी दुश्मन के घर सेंध लगने की ठानी है। साहबजादे पर जादू मार दिया है। बहना से खुद के रिश्ते की दुहाई देकर महावत बनने के लिए रजामंद कर लिया है। ऐसे में साहबजादे के सवारी करते ही पुराने शेर का खेल खराब। बेटे के सिर उठाने के साथ बाबू का विकेट गिरा और टिकट कटते ही बूढ़े नेताजी पैडल मार लखनऊ की पंचायत के लिए हुए रवाना। 

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सब साहब का करम

शासन की कोई टीम आए या प्रभारी अफसर। बात कही मुख्यमंत्री के दौरे की हो तो फिर तो हर चेहरे पर डर ही डर का आलम है। साहब जब आए थे तो अपनी सफाई दिखाने की ठानी ली। दिन में कई बार परिवहन कार्यालय से लेकर सड़क तक दौडऩे लगे। मातहत भी अलर्ट कर दिए गए। कार्यालय के गेट पर दफ्तर सजाए लोगों को खदेडऩे में पुलिस तक बुला ली गई। संकल्प था कि यहां पर भ्रष्टाचार नहीं होने देंगे। दलाल नहीं दिखेंगे। पुलिस की टीम पहुंच गयी। चालक से लेकर मालिक तक की सुविधा की कड़ी को गेट से भगा दिए गए। अब सब बदला हुआ है। गेट पर वही पुरानी भीड़ है। कार्यालय में लोग विभाग को राजस्व दिलाने में मददगार हैं। अब सब ठीक है। न प्रभारी अफसर का डर है और न ही चेकिंग का, क्योकि साहब का करम। मंशा ठीक लेकिन, व्यवस्थागत खामी है।    

मीनार की बदल रही आवाज

दल एक है, मगर दिल में फासला है। यानी दोनों में अपनी टोपी ऊंची करने की जिद है। तभी तो एक ने सीएए के विरोध में जमात उतारने की तैयारी कर ली। मन घबराया तो अपनी चाल बदल दी। जमात वाले कहां रुकने वाले। सो, सभी निकल पड़े सड़क पर अपनी वाली की। भीड़ में मुखिया नहीं दिखे तो भीड़ का गुस्सा आसमान चढ़ गया। अब सड़क पर उतर कर अपनी ताकत का अहसास कराने वाले चुप हो गए हैं। इसी का फायदा दूसरा कैंप उठा रहा है। अब इस बात को हवा दी जा रही है कि भाई कौम को गरम पानी में गिराने वालों से सावधान रहना जरूरी है, जिसने सीएए के सवाल पर विरोध का एलान किया वह क्यों दुबक गए? मतलब साफ है दोनों घरानों में युद्ध का माहौल है। मंच पर एका का नाटक और मन में तगड़ी जंग जरूरी इसके लिए अभी तक जारी है।

भाई यह कूड़ा अब मेरा

तब तो जंग इस बात की थी कि यह इलाका मेेरे शहर में नहीं आता है। हवाला इस बात का भी देते थे कि जिसकी कालोनी, वह अपना शहर साफ रखे। पर्यावरण को कहीं धुआं से दिक्कत आई और एनजीटी ने नोटिस भेजी तो साब का जवाब तैयार था कि न तो धुआं वाला इलाका मेरा है और न ही उस कालोनी के लोगों के प्रति जिम्मेदारी मेरी है। सरकार से पैसे लेने है और केंद्रीय टीम की परीक्षा में पास होना है तो घर-घर दस्तक शुरू है। कोई थैले में भी सड़क किनारे कूड़ा नहीं गिरा जाए। कोई शहर और गलियों में कूड़ा न फेक जाए, इसके लिए खुफिया लोग छोड़े गए हैं। 


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