Water conservation : मुरादाबाद के रईस लोगों को सिखा रहे जल संरक्षण की कला
Water conservation रेन गन सिस्टम इसमें भी पानी की आधे से अधिक बचत करते हैं इनका कहना है कि कायमगंज फर्रुखाबाद के एक परिचित किसान के यहां देखकर यह विधि अपनाई।
मुरादाबाद। जल संरक्षण पर दुनिया भर में ङ्क्षचता जताई जा रही है। इसके बावजूद पानी की बर्बादी बदस्तूर जारी है। जल संरक्षण के लिए खूब अभियान चलाए जा रहे हैं। पर इसे अमल में लाने वाले कम ही हैं। उन लोगों में से ही एक हैं, बिलारी के रईस अहमद। वे न केवल जल संरक्षण कर रहे हैं, बल्कि दूसरों के इस कला को सिखा रहे हैं।
नया गांव निवासी कृषक रईस अहमद पिछले दो साल से भूगर्भीय जल बचाने की तीन विधियों को अपना रहे हैं, उनकी प्रेरणा से दो अन्य किसानों ने भी यह प्रक्रिया अपनाई हैं,इसके लिए पिछले साल उन्हें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के स्थापना दिवस पर नवोन्मेषी कृषक पुरस्कार भी मिल चुका है।
इनके पास एक है टपक विधि-इससे ङ्क्षसचाई करते समय फसल की जड़ में एक एक बूंद करके पानी टपकता है, इससे पानी की काफी बचत होती है जैसे आलू अथवा मेंथा की फसल में आमतौर पर नलकूप से दस बार ङ्क्षसचाई करनी पड़ती है परंतु इस विधि में एक ङ्क्षसचाई के बराबर पानी खर्च होता है बताया कि केवल बीस मिनट तक की जाती हैं और समझो ङ्क्षसचाई हो गई। इसमें पानी कतई भी बर्बाद नहीं होता और ङ्क्षसचाई करने में श्रम नहीं के बराबर खर्च होता है।बताया कि टपक विधि से उन्होंने सफलतापूर्वक आलू मेंथा और मटर की फसलें उगाई हैं। दूसरी बौछारी विधि है जिसमें ग्वाल, बैंगन, काशीफल, शकरकंद की फसलें सफलतापूर्वक की है इसमें बरसाऊ जैसी बारीक बूंदें फसल पर गिरती हैं और आधे पानी में ही फसल संतृप्त हो जाती है।इनका कहना है कि पूछारी विधि से ङ्क्षसचाई करने के दौरान फसल में प्रकाश संश्लेषण क्रिया भी अच्छी होती है। इसमें जिला उद्यान अधिकारी मुरादाबाद सुनील कुमार ने पूरा सहयोग किया दो बार दौरा भी किया उन्होंने सभी किसानों और आम जनता से आग्रह किया है जीवन बचाने के लिए पेयजल की एक एक बूंद को सहेजें।