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उर्दू अदब का बेशकीमती खजाना है मुरादाबाद की मुस्लिम पब्लिक लाइब्रेरी में

शहर ए जिगर मुरादाबाद की घनी आबादी के बीच बसे मुहल्ला रफतपुरा में कायम मुस्लिम पब्लिक लाइब्रेरी में उर्दू साहित्य की दुर्लभ किताबें मौजूद हैं।

By Edited By: Published: Sat, 01 Dec 2018 01:01 PM (IST)Updated: Sat, 01 Dec 2018 12:50 PM (IST)
उर्दू अदब का बेशकीमती खजाना है मुरादाबाद की मुस्लिम पब्लिक लाइब्रेरी में
उर्दू अदब का बेशकीमती खजाना है मुरादाबाद की मुस्लिम पब्लिक लाइब्रेरी में
मुरादाबाद (डॉ. मनोज रस्तोगी)। शहर ए जिगर की घनी आबादी के बीच बसा है मुहल्ला रफतपुरा, जिसे कंबल के ताजिए के नाम से भी जाना जाता है। थाना मुगलपुरा के तहत आने वाले इस मुहल्ले में कायम है मुस्लिम पब्लिक लाइब्रेरी। इस लाइब्रेरी की खासियत है कि यहा फारसी और उर्दू अदब का बेशकीमती खजाना मौजूद है। यहां लगभग साढ़े तीन सौ साल पुरानी मुहम्मद हुसैन बुरहान तबरेजी की फारसी में लिखी डिक्शनरी फरहंग बुरहाने काते मौजूद है तो मैसूर के नवाब हैदर अली और उनकी सल्तनत पर फारसी में सन 1803 में छपी शाने हैदरी भी। इस समय यहा संस्कृत, हिंदी, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी की लगभग बीस हजार किताबें हैं। मुरादाबाद के लेखकों की दुर्लभ किताबें हैं यहां लाइब्रेरी प्रबंध समिति के सह सचिव मोहम्मद माजिद बताते हैं कि इस लाइब्रेरी में आइना ए अकबरी भी है। पुरानी किताबों में सन 1837 में छपी दुख्तरे फिरहौन, 1903 में छपी प्रिंसपल ऑफ सर्जरी, लुगात किशोरी (1872), मौलवी अब्दुल हक की मुकदमा हयातुन्नजीरा (1912), दास्तान ए अमीर हम्जा (1910) उल्लेखनीय हैं। यही नहीं इस लाइब्रेरी में मुरादाबाद के लेखकों और यहीं छपीं तमाम ऐसी किताबें हैं जो अब दुर्लभ हैं। इन किताबों का जिक्र करते हुए कमेटी के सचिव सलीम शाह खा बताते हैं कि यहा एक किताब है तारीख जंगे रोम व यूनान। यह किताब काजी मोहम्मद जलालुद्दीन मुरादाबादी ने लिखी थी और इसे मुंशी फजल मोहम्मद साहब रिसाला शरारा व जया ब्रदर्स मुरादाबाद ने सन 1898 में मत्बुआ शमशुल मुताबे मुरादाबाद में छापा था। एक और किताब तारीखे लंका दिखाते हुए कहते हैं कि यह किताब मिर्जा मुहम्मद काजिम बिरलास और सन 1900 में अल¨हद प्रेस मुफ्ती टोला में छपी थी। रफतपुरा में विधिवत रूप से संचालित हो रही है लाइब्रेरी अतीत के पन्नों को पलटने पर जानकारी मिलती है कि आजादी के तकरीबन 65 साल पहले सन 1882 में यह लाइब्रेरी शाही मदरसे में कायम हुई थी। उसके बाद यह शाही मस्जिद के पास ही बर्तन बाजार में एक दुकान के ऊपर किराए की इमारत में पहुंच गई। उस दौर में इस लाइब्रेरी को म्यूनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन हाफिज मोहम्मद इब्राहिम, सिकंदर अली खान, मौलवी अजीज हसन, मुंशी अलीमुद्दीन आदि ने बुलंदियों पर पहुंचाया। सन 1984 से यह लाइब्रेरी रफतपुरा में विधिवत रूप से संचालित हो रही है यहा पूर्व सासद हाफिज मुहम्मद सिद्दीक, कामरेड सज्जाद हुसैन शाह खा ने इसे और बेहतर किया। युवाओं में खत्म हो रहा है किताबें पढ़ने का शौक पिछले लंबे अरसे से इस लाइब्रेरी की खिदमत कर रहे डॉ. नूर उल हसन कहते हैं कि पहले इस लाइब्रेरी में शहर के तमाम लोग जिनमें नौजवान भी होते थे, आते थे और किताबों को पढ़ते थे लेकिन अब मौजूदा इंटरनेट के दौर में धीरे-धीरे किताबें पढ़ने का शौक खत्म हो गया है। अब यहां आने वाले ज्यादातर लोग अखबार पढ़ने आते हैं। अदबी, तारीखी, मजहबी, सियासी किताबें पढ़ने वालों की संख्या बहुत ही कम है।

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