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मौसम का मिजाज बदलने से लहलहाई फसलें,पशुओं को मिली राहत

जागरण संवाददाता, मुरादाबाद : मौसम के मिजाज ने फिर करवट बदली है। बतौर, कड़ाके की ठंड न

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 Dec 2017 02:09 AM (IST)Updated: Thu, 21 Dec 2017 02:09 AM (IST)
मौसम का मिजाज बदलने से लहलहाई फसलें,पशुओं को मिली राहत
मौसम का मिजाज बदलने से लहलहाई फसलें,पशुओं को मिली राहत

जागरण संवाददाता, मुरादाबाद :

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मौसम के मिजाज ने फिर करवट बदली है। बतौर, कड़ाके की ठंड नहीं, बल्कि राहत के लिए। लाभ, सर्दी में ठिठुर रहे इंसानों को तो मिला ही, साथ ही ताजगी से फसले भी लहलहाने लगी हैं। दो दिन से निकल रही गुनगुनी धूप से पशुओं को भी राहत मिली है। हैरतअंगेज बात ये है कि दुधारू पशुओं में भी दूध देने की मात्रा बढ़ गई है।

दरअसल फसलों का उत्पाद, इंसान की सेहत, जानवरों का रहन-सहन और पक्षियों की चहचहाट का दारोमदार मौसम पर है। मौसम सर्द होने से इनकी दिनचर्या में भी बदलाव आता है। फसलों में कीट, जानवरों में रोग, दुधारू पशुओं में दूध की क्षमता कम और इंसानी जिंदगी में गर्माहट मौसम की आहट पर निर्भर है। कृषि विभाग की मानें तो दो दिन से निकल रही गुनगुनी धूप पर्यावरण, प्रदूषण और लोगों की सेहत के लिए लाभ का सौदा है।

फसलों को लाभ-

रबी की फसलों का दारोमदार मौसम पर है। सामान्य ठंड और कोहरा गिरने से फसलों को लाभ होता है। बढ़वार तेजी से होती है। भूमि की उर्वरा शक्ति कायम रहती है सो अलग। यानी, फसलों का उत्पादन उम्मीद के मुताबिक। अगर, 10-15 दिन लगातार कोहरा गिरे, सूरज दिखाई न दे तो नुकसान ही नुकसान। यानी गेहूं, आलू, सरसों, मटर में मुनाफा कम और नुकसान ज्यादा। कृषि वैज्ञानिक डॉ. एके मिश्र व डॉ. बलराज कहते हैं कि रबी की फसलों के लिए अधिक ठंड अधिक नुकसान, कम ठंड कम नुकसान। प्रगतिशील किसान देवेंद्र सिंह व भानुप्रकाश यादव ने फसलों को राहत मिलने की बात कही है। फिलवक्त दो दिन से गुनगुनी धूप निकलने से फसलों में नुकसान की सम्भावना कम हो गई है। उप कृषि निदेशक डॉ. अशोक कुमार तेवतिया ने फसलों के सामान्य होने की बात कही है।

पालतू पशुओं में प्रभाव-

पशुओं में ठंड का असर इंसान से अधिक महसूस किया जाता है। यही वजह है कि मामूली ठंड और गंदे बिछावन से पशु बीमार होने लगते हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित एक साल की उम्र तक के बच्चे होते हैं। चार साल से अधिक उम्र का पशु कड़ाके की ठंड को बर्दाश्त कर लेता है लेकिन एक साल तक के बच्चे को निमोनिया घेर लेता है। यही बिनाह है कि दिसंबर व जनवरी में पशुओं में छोटी उम्र के बच्चे अधिक मरते हैं। बीते चार पांच दिन गिरने वाले कोहरे से पशुओं के बच्चों में रोग फैलने का खतरा पैदा हो गया था। गांव नकटपुरी कलां निवासी मुहम्मद इस्माईल व खबड़िया निवासी भूपेंद्र का कहना है कि लगातार कई दिन कोहरा गिरने से पशुओं में बीमारी की शुरुआत हो गई थी। दुधारू पशु भी खतरे में थे।

मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. तिलक सिंह कहते हैं कि लगातार कोहरा गिरने से पशुओं में निमोनिया रोग फैलने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। फिलवक्त खतरा टल गया है।

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आवारा पशु-

कड़ाके की ठंड, कोहरा और बूंदाबांदी। आवारा पशुओं को भी प्रभावित करते हैं। नील गाय, जंगली सूअर व आवारा गायें अक्सर ठंड से प्रभावित होती हैं। दिन भर दौड़ने की क्षमता न होने से इनके बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। जुकाम और निमोनिया होने से इनकी मौत हो जाती है। ग्रामीणों की मानें तो बीते साल आवारा पशुओं के एक दर्जन बच्चे जंगलों में मृत पाए गए।

मूंढापांडे निवासी माखन सिंह, नाजरपुर निवासी नरेश प्रताप सिंह चौहान व चक लालपुर निवासी ऋषिपाल सिंह के मुताबिक जाड़ों के दिनों में ये आम बात है।

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साइबेरियन पक्षी-

ठंड के मौसम में जनपद की बड़ी झीलों में साइबेरियन पक्षियों की आमद शुरू हो जाती है। इसबार किसी भी झील में पक्षी दिखाई नही दे रहे हैं। गोट, सिरसखेड़ा, भदासना, पदिया नगला, लखनपुर लाड़पुर, मोड़ा तैया, मुहम्मदपुर झीलों से साइबेरियन पक्षी नदारद हैं। वन क्षेत्र अधिकारी उड़न दस्ता- बरेली क्षेत्र रमाकांत ने बाहरी पक्षियों के न पहुंचने की बात कही है।


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