Lockdown: थकान व माथे की लकीरें बयां कर रहीं मजदूरों की मजबूरी Sambhal News
350 किलोमीटर पदयात्रा कर घर जा रहे मजदूर। मजदूरों की मदद करने के लिए आगे आए लोग। मजदूरों को अभी तय करना है लंबा सफर।
सम्भल,जेएनएन। कोरोना वायरस के चलते देश लॉकडाउन कर दिया गया है, ऐसे में रोज मजदूरी करने वाले मजदूरों के पास सिवाय घर लौटने के और कोई रास्ता नहीं बचा है। घर लौटने के लिए वाहन उपलब्ध न होने के कारण मजदूरों को पैदल ही घर लौटना पड़ रहा है। हालत यह है कि पैदल सफर करते-करते उनके पैरों में छाले तक पड़ गए हैं। साथ ही भूख भी घर पहुंचने की आस तोड़ती नजर आ रही है।
नहीं कम हो रही है मजदूरों की परेशानी
गौरतलब है कि देश में फैले कोरोना वायरस को डब्बलूएचओ ने महामारी घोषित किया है। इस वायरस से जीतने के लिए केन्द्र सरकार ने देशभर में 14 अप्रैल तक लॉकडाउन घोषित कर दिया है साथ ही ट्रेन, बस व प्राइवेट वाहनों को प्रतिबंधित कर दिया है। ऐसे में अपने गांव से रोजी रोटी की खोज में अन्य शहरों में मजदूरी करने वाले मजदूरों के सामने एक बड़ा संकट पैदा हो गया है। मजदूरी तो खत्म हो ही गई है साथ ही उनके पास खाने का भी कोई ठिकाना नहीं बचा है। हालात यह हैं कि उनके सामने सिवाय घर लौटने के और कोई रास्ता नही बचा है। साधन न होने के कारण मजदूर टोलियां बनाकर अपने गांवों को पैदल ही चल दिए हैं। उनके सामने कई समस्याएं भी खड़ी हैं और घर लौटना भी मजबूरी है। शनिवार को दिल्ली की एक प्राइवेट फैक्ट्री में करने वाले मजदूर लॉकडाउन के बाद उन्हें निकाल दिया गया। जिला बरेली के गांव देवचरा के निवासी ङ्क्षपकू, सुनीता, ढाकनलाल, रामदास, मुनेन्द्र, अनिल, पुष्पा आदि शुक्रवार की सुबह आठ बजे सवारी नहीं मिलने के कारण पैदल ही दिल्ली से अपने गांव की ओर चल दिए। शनिवार को लगभग दोपहर 12 बजे जब यह मजदूर चन्दौसी होते हुए अपने गांव जा रहे थे तो मजदूरों के चहरों पर थकान व ङ्क्षचता की लकीरे साफ दिखाई दे रहीं थीं। मजदूर रास्ता पूंछते-पूंछते अपने गांव की ओर पैदल ही जा रहे थे। बहजोई बस स्टैंड के पास जब इन मजदूरों की हालत लोगों ने देखी और उनके बारे में जाना तो लोगों ने इन मजूदरों को खाना, व फल खिलाकर मजदूरों की मदद की।