ये डाक्टर साहब मरीजों को सुनाते हैं फिल्मी गाना, नशे में करते हैं इलाज Moradabad News
मुरादाबाद के एक चिकित्सक की हरकतें आपको भी हैरान कर देंगी। आप सोच में पड़ जाएंगे कि इलाज कराने आए हैं या कुछ और...।
मुरादाबाद (मेहंदी अशरफी)। अब तो एक साहब की मासिक इनकम कम हो गई। पहले दवाखानों के पंजीयन की जिम्मेदारी के साथ ही नीम हकीम की दुकानों पर कार्रवाई का जिम्मा भी था। महकमे के सर्वेसर्वा की आंखों में उनकी कमाई खटक रही थी। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हाकिम के कान भरने शुरू कर दिए। एक मीटिंग में हाकिम ने खूब फटकार लगाई। नए अफसर से कह दिया इससे बचकर रहो, जेल भिजवा सकता है। इसके बाद नीम हकीम पर कार्रवाई करने का अधिकार स्वास्थ्य केंद्रों के प्रमुख को दे दी। शहर की जिम्मेदारी दूसरे चिकित्सा अधिकारी को दे दी, जिनके पास विभाग था। उन्हें सिर्फ नोटिस संभालने का काम मिला है। हर माह होने वाली इनकम 70 फीसद कम हो गई है। अब शहरी स्वास्थ्य केंद्रों पर ही जनाब की निगाह टिकी है। पुलिस भर्ती में स्वास्थ्य परीक्षण पर नजर टिकी है। देखते हैं वो इसमें क्या-क्या गुल खिलाएंगे।
गाना सुनाकर मरीजों का उपचार
शिफा खाने में दिमाग का इलाज करने वाले ही अपना मानसिक संतुलन खो रहे हैं। इलाज करने वाले महाशय ड्यूटी के समय मदिरा का सेवन करके पहुंच जाते हैं। मरीजों से मस्ती करने के साथ वो स्टाफ से असंवैधानिक शब्दों से पुकारने में पीछे नहीं रहते हैं। आलम है कि उनका आचरण एक या दो दिन से नहीं बल्कि, अर्से से चल रहा है। कोई अभी तक कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पाया है। मरीजों को उपचार के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। नशे में ही महाशय कभी-कभी मरीजों को फिल्मी गीत भी सुनाने लग जाते हैं। मरीज समझ ही नहीं पाता है कि इलाज कराने आए हैं या फिर गाना सुनने। यदि उनको किसी ने टोक दिया तो उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। पुराने मरीज को देखकर बुलाते हैं तो ऐेसे में मरीज वहां से जाने में ही अपनी भलाई समझता है।
आपरेशन नहीं, दे रहे मीठी गोली
सरकारी अस्पतालों में आपरेशन थियेटर बनवा दिए, उपकरण उपलब्ध करवा दिए। जिन पर जिम्मेदारी है, वे मरीज देखने के बाद या तो दर्द निवारक दवा लिखकर दे देते हैं या फिर उसे कुछ दिन रुकने के लिए कहते हैं। इससे ही काम चल रहा है। रिकार्ड की बात करें तो दो साल में सिर्फ 20 ही आपरेशन हो पाए हैं। पहले दो से तीन आपरेशन रोज होते थे। अब आलम यह है कि माह में एक या दो आपरेशन हो जाए तो बड़ी बात है। संसाधन को पर्याप्त उपलब्ध करा दिए लेकिन, निगरानी नहीं हो रही है। ऐसे में जिन पर जिम्मेदारी है। वो अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर रहे हैं। जनप्रतिनिधि से लेकर प्रशासनिक अधिकारी तक अस्पताल के सामने से गुजरते हैं। किसी को भी अंदर झांकने की फुरसत नहीं है। यदि प्रतिदिन या सप्ताह में जांच हो जाए तो हालात सुधर जाएंगे।
स्वास्थ्य विभाग में अब तो रामराज
स्वास्थ्य महकमे में अब बड़ा बदलाव दिखाई देने लगा है। पहले शासनादेश, कार्रवाई विवरण और न जाने क्या-क्या मुखिया के पास लाना पड़ता था। पहले तो स्थिति ऐसी थी कि कागजों पर हस्ताक्षर नहीं होते थे। बिल तक पास नहीं होते थे। उस दौरान मैडम का खौफ इस कदर था कि एक लिपिक तो गश खाकर ही कार्यालय में गिर पड़ा था। उनके कार्यकाल और वर्तमान मुखिया के कार्यकाल की तुलना खूब हो रही है। चटखारे लेकर चाय पर चर्चा होती है। उनमें नए साहब को अच्छा बताया जाता है। नए साहब पर फिलहाल कार्यभार है। इसलिए कामकाज में कोई बाधा नहीं है। पुराने ढर्रे पर काम शुरू हो गया और कामकाज भी सभी के हिसाब से चलने लगा है। इतना जरूर है कि कार्यालय में रौनक रहने लगी है। किसी को कोई डर नहीं है और आराम से सब काम चल रहे हैं। इसी को तो रामराज का शासन कहते हैं।