कांठ बवाल मामले में पांच माह से सुलग रही थी चिंगारी, पुलिस की कार्रवाई से भड़क उठा था गुस्सा
एक जनप्रतिनिधि के दबाव में लाउडस्पीकर को बजाना बंद कर दिया गया था। स्थानीय ग्रामीण धीरे-धीरे इस बात की शिकायत अधिकारियों से कर रहे थे लेकिन कोई भी इस मामले में मदद को तैयार नहीं होता था। इसके बाद भाजपा के नेताओं ने इस मामले में दखल देना शुरू किया।
मुरादाबाद, जागरण संवाददाता। कांठ बवाल में पुलिस ने खूब हवा देने का काम किया था। इस मामले का हल शांतिपूर्ण तरीके से किया जा सकता था। लेकिन, स्थानीय पुलिस ने एक जनप्रतिनिधि के इशारे पर वाहवाही लूटने के लिए पांच माह से सुलग रही आग को पांच दिन में भड़काने का काम किया था।
कांठ के अकबरपुर चेंदरी गांव में मंदिर में लगे लाउडस्पीकर को लेकर जनवरी माह में एक समुदाय के लोगों ने आपत्ति दर्ज कराई थी। जिसके, बाद एक जनप्रतिनिधि के दबाव में लाउडस्पीकर को बजाना बंद कर दिया गया था। स्थानीय ग्रामीण धीरे-धीरे इस बात की शिकायत अधिकारियों से कर रहे थे, लेकिन कोई भी इस मामले में मदद को तैयार नहीं होता था। इसके बाद भाजपा के नेताओं ने इस मामले में दखल देना शुरू किया। सपा के शासनकाल में भाजपा नेताओं के एंट्री मारते ही सत्ता पक्ष के नेता भी हावी हो गए। सत्ता का प्रभाव दिखाने के लिए उन्हाेंने पुलिस से मदद मांगी और तत्कालीन एसपी देहात ने जल्दबाजी दिखाते हुए 26 जून 2014 को मंदिर से लाउडस्पीकर उतरवा दिया था। ग्रामीण भी इस मामले से इतने नाराज हो गए तो कि वह भाजपा नेताओं के पुतले जलाने लगे थे। तब फिर महापंचायत बुलाने का निर्णय लिया गया था। इसके बाद भाजपा नेताओं ने एकजुटता दिखाते हुए कांठ में चार जुलाई को महापंचायत बुलाने का ऐलान किया था। इस मामले में पुलिस ने शुरू से ही आग में घी डालने का काम किया था। अगर तत्कालीन अफसर सूझबूझ से काम लेते तो शायद कांठ विवाद ही नहीं होता।