अपने ही घर में बेगानी हो गई संस्कृत भाषा
संस्कृत भाषा अपने ही घर में उपेक्षित हैं। लोगों को जागरूकहोने की जरूरत है।
मुरादाबाद (अनुज मिश्र) : देववाणी और भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा को कितनी भी उपमाएं दी जाए कम हैं। वैदिक काल की यह भाषा धर्मग्रंथों का आधार है। इस भाषा में लिखित रचनाएं पढ़ने और सुनने मात्र से ही मानव की अंतर्रात्मा का रोम-रोम प्रफुल्लित हो उठता है। आज 26 अगस्त को विश्व संस्कृत दिवस है। पूरे विश्व में इसे मनाया जाता है। यह भाषा पूर्णतया वैज्ञानिक भी है। इसके चलते विश्व पटल पर इस भाषा का वर्चस्व है। विदेश के लोगों ने इस भाषा की महत्ता को स्वीकारा है। लिहाजा सात समुंदर पार भी इस भाषा को लेकर लोग काफी जागरूक हैं। लेकिन एक कड़वा सच यह भी हैं कि विश्वफलक पर लोहा मनवाने वाली यह भाषा आज अपने ही घर में महरूम है।
जर्मनी में संस्कृत भाषा पर हो रहे सर्वाधिक शोध
संस्कृत भाषा को लेकर जर्मनी के लोग काफी जागरूक हैं। व्यापक स्तर पर भाषा का प्रचार प्रसार होता है। जर्मनी के कॉलेजों में पाठ्यक्रमों में यह भाषा शामिल है। उच्च शिक्षा में इस भाषा में शोध कार्य हो रहे है। शोध कार्य में निकले निष्कर्ष का प्रयोग विज्ञान के क्षेत्र में किया जा रहा है।
दुनिया के टाप टेन विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है संस्कृत
संस्कृत की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया के टाप टेन विश्वविद्यालयों में यह भाषा पढ़ाई जाती है। इंग्लैंड की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से लेकर डेनमार्क की हैमलेट यूनिवर्सिटी में इस भाषा में पढ़ाई कराई जाती है। तमाम विदेशी वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में संस्कृत का अध्ययन कर रहे हैं।
मुरादाबाद में एकमात्र संस्कृत महाविद्यालय
मुरादाबाद शहर में एकमात्र संस्कृत महाविद्यालय है। वर्ष 1953 में स्थापित इस महाविद्यालय का उद्घाटन तत्कालीन सरकार में शिक्षामंत्री रहे आचार्य डॉ. संपूर्णानंद ने की थी। इसके साथ ही एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय से संबंद्ध पांच अशासकीय कॉलेजों में चार में इस भाषा में पढ़ाई होती है।
छात्रों का होता है यज्ञोपवीत
संस्कृत दिवस के दिन संस्कृत महाविद्यालय में विधि विधान से छात्रों का यज्ञोपवीत संस्कार होता है। नदी में स्नान के बाद छात्र महाविद्यालय पहुंचकर सप्त ऋषियों की पूजा करते हैं। उसके बाद यज्ञोपवीत संस्कार होता है। यज्ञोपवीत संस्कार के बाद आचार्य द्वारा छात्रों को भाषा के प्रचार प्रसार और लोगों के कल्याण के लिए जागरूक किया जाता है।
संस्कृत दिवस मनाने का उद्देश्य
संस्कृत दिवस मनाने का उद्देश्य भाषा का व्यापक स्तर पर प्रचार प्रसार करना है। हर वर्ष श्रावणी पूर्णिमा अर्थात रक्षा बन्धन को भारत सहित कई देशों में संस्कृत दिवस मनाया जाता है।
भाषा के प्रति जागरूक बनने की जरूरत : पूर्व प्राचार्य
संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। विश्वफलक पर लोगों ने इसकी महत्ता को स्वीकारा है। लेकिन आज यह भाषा अपने ही घर में उपेक्षा का शिकार है। युवाओं में इस भाषा के प्रति रुझान घटता जा रहा है। यह चिंतनीय है। संस्कृत दिवस तभी सफल होगा। जब हम सभी इस भाषा के प्रति जागरूक बनेंगे।
-डॉ. जेपी कोठारी, पूर्व प्राचार्य, संस्कृत महाविद्यालय, मुरादाबाद