वन विभाग के बड़े साहब का कहना है, तेंदुआ नहीं करता इंसानों पर हमला Moradabad News
आम तौर पर लोग आए दिन तेंदुए के हमले का जिक्र करते ही रहते हैं। कुछ लोग इस हमले में घायल भी हो जाते हैं। लेकिन विभाग के अधिकारी की बातें जान आप भी चौंक जाएंगे।
मुरादाबाद (प्रकाश सिंह रैकवार)। हरियाली वाले विभाग के बड़े साहब के पास लगता है तेंदुए से उनका कभी वास्ता ही नहीं पड़ा है, तभी तो वह कहते फिरते हैं कि तेंदुआ कभी किसी इंसान पर हमला ही नहीं करता है। ऐसा उन्होंने अपने 30 साल से ज्यादा की नौकरी में अनुभव किया है। लगता है कि साहब जंगल तक नहीं गए। रास्ते में तेंदुए के हमले पर जुमला पेश करते हैं कि तेंदुए के हमले की शिकायत करने वाले सब झूठ बोलते हैं। मतलब तो यही निकलता है कि पहले तेंदुए को निमंत्रण दो फिर साहब को बुला लो, तभी मानेंगे कि तेंदुआ हमला करता है। खैर तेंदुए के हमले में कुछ लोगों की मौत तक उस क्षेत्र में हो चुकी है। सब घायलों को झूठा बताने वाले साहब चंद साल बाद रिटायर ही होने वाले हैं। उनको इसकी चिंता कुछ ज्यादा है।
सरकार में भागीदारी का ख्वाब
मौके को भुनाने वाला ही असली चैंपियन बनता है, फिर चाहे वह खेल हो या राजनीति। जब दोनों का संगम हो जाए तो कहना की क्या। हाल ही में महानगर के एक महाशय तो मौके को भुनाने के चैंपियन निकले। उनकी बेटियों ने दूसरे प्रदेश में जाकर ऐसा निशाना साधा कि पूरे शहर में बेटियों का नाम हो रहा है। कमल के फूल से पहले ही जुड़े हैं। उनकी नजर अब लोकल सरकार में अपनी भागीदारी की है। चाहते हैं कि इसी बहाने से मौका मिल जाए तो लगा दें चौका। ऐसे कई अवसर आए जब उनके घर पर पार्टी से जुड़े बड़े नेताओं ने दस्तक दी हो लेकिन, बेटियों के प्रदर्शन के बहाने महाशय अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं। घर पहुंचे बड़े नेताओं की फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं। दूर की नजर के लिए अपना कैनवास बढ़ा रहे हैं।
कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना
मजरूह सुल्तानपुरी ने 64 साल पहले फिल्म सीआइडी के लिए यह गाना लिखा था। गाने के बोल पिछले महीने शहर के प्रमुख स्टेडियम में जीवंत हो उठे। स्टेडियम में महिला सशक्तीकरण के नाम पर खेल प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। यहां खेल कम हुए सेल्फी का दौर ज्यादा चला । प्रतियोगिता आधे घंटे में बिना किसी मानक के समाप्त हो गई। चूंकि प्रतियोगिता का आयोजन शहर में सियासी रसूख रखने वाले लोगों के घरों की महिलाओं ने किया था, इसलिए स्टेडियम से जुड़े पदाधिकारी भी इसमें जुटे रहे। एक मैडम तो खिलाडिय़ों के प्रदर्शन की लिस्ट तक उठा ले गईं। फोन करने पर कार्यक्रम से जुड़े पदाधिकारियों को लिस्ट नहीं मिली। आखिर झल्लाकर स्टेडियम के एक पदाधिकारी बोल ही उठे कि दरअसल, खेल तो एक बहाना था, शायद फोटो खिंचवाने पर इनका निशाना था। मार्च में ऐसे ही आयोजन करने का मैडम ने वादा भी किया है।
आश्वासन के महारथी
खेल विभाग के एक बड़े साहब ऐसे हैं जिनके पास कोई भी काम लेकर जाता है, उसको सकारात्मक जवाब ही मिलता है। अलग बात है काम होने की गारंटी कम ही है। विभाग से जुड़े लोग इन्हें आश्वासन का महारथी बताते हैं। इस बात को बल तब मिला, जब उनसे मंडल के एस्ट्रोटर्फ पर इंटरनेशनल मुकाबले के आयोजन को लेकर बात की गई। बिना किसी कैलेंडर के उनका जवाब आया आयोजन जल्द ही, शायद इसी साल। जबकि सच यही है कि साहब के पास ऐसे आयोजन को लेकर कोई खाका नहीं हैं। वह एक बार सरकार के मुखिया के आंगन में इंटरनेशनल मुकाबला करा भी चुके हैं। इसके बाद उनके खास बन गए। इसी का नतीजा है कि इस विभाग के निजाम बदल गए लेकिन, उनकी हनक जस की तस है। उनका ध्यान खेल पर हो तो सुधार हो और प्रतिभाएं आगे आए। निजी कोचिंग की बजाए स्टेडियम में निखार आए।