औषधि प्रभारी ने सालभर तक चेक ही नहीं की दवा
औषधि प्रभारी ने सालभर तक चेक ही नहीं की दवा
औषधि प्रभारी ने सालभर तक चेक ही नहीं की दवा
जागरण फालोअप :::
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- 13,99,691 दवा हुई एक्सपायर का रिमाइंडर भेजने का दावा
- 16,89,266.97 लाख रुपये की है दवा
- 2019 में डेढ़ माह में ही हो गई थी दवाओं की जांच
- दवा वितरण करने में बरती गई पूरी तरह लापरवाही
जागरण संवाददाता, मुरादाबाद : सरकार की योजनाओं को पलीता लगाने में कोई पीछे नहीं है। खुद पर आंच आई तो औषधि भंडार प्रभारी दूसरों को जिम्मेदार ठहराने की जुगत में जुट गए हैं। उन्होंने 2019-20 में दवाओं का स्टाक चेक ही नहीं किया। जिसका नतीजा यह निकला कि जिन दवाओं के लिए हजारों मरीज भटकते रहे और मजबूरन महंगे दामों पर निजी मेडिकल स्टोरों में खरीदा। लाखों रुपये की उन दवाओं की मियाद रखे-रखे ही खत्म हो गईं।
कारपोरेशन के औषधि भंडार में पूरे जिले को दवाओं का वितरण होता है। इसमें सामुदायिक-प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर दवाएं पहुंचाई जाती हैं। नए सिस्टम के तहत पोर्टल पर ही दवाओं की डिमांड भेजनी पड़ती है। कोरोना काल में मंगवाई गई दवा एक्सपायर हो गई। औषधि भंडार प्रभारी ने दवाओं के स्टाक को देखा तक नहीं है। वह दावा करते घूम रहे हैं कि एक्सपायर दवाओं की जानकारी कारपोरेशन को पहले से ही थी। यह व्यवस्था सिर्फ मुरादाबाद ही नहीं बल्कि प्रदेश के सभी जिलों में है। सभी जगह यही स्थिति रही है। हालांकि अब दावे करने से कोई फायदा नहीं है। 13,99,691 दवा एक्सपायर हो गई। औषधि भंडार में व्यवस्था खराब होने से दवाओं का रखरखाव भी ठीक नहीं है। बहरहाल देखने वाली बात यह है कि डिप्टी सीएम एवं स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक लगातार किसी न किसी जिले में छापा मारकर स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर से पर्दा उठा रहे हैं। उसके बाद भी कर्मचारी बात मानने को तैयार नहीं है।
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यह है मामला
लाखों रुपये की दवा स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही की भेंट दवाएं चढ़ गईं। हृदय, उल्टी-दस्त, एंटी बायोटिक, एंटी सेप्टिक लोशन समेत तमाम दवाएं एक्सपायर हो गईं। 29 प्रकार की दवा मंडलीय औषधि भंडार में 13 लाख 99 हजार 691 एक्सपायर हो गई। इन दवाओं की कीमत 16 लाख 89 हजार 266 रुपये 97 पैसे पोर्टल पर दर्ज हैं। यह दवाएं 2019-20 से मंडलीय औषधि भंडार में रखी हैं। उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लायर्स कारपोरेशन की ओर से सभी दवाएं भेजी गई थीं।
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कारपोरेशन के पोर्टल पर हर एक चीज की जानकारी रहती है। पोर्टल के हिसाब से ही सबकुछ तय होता है। तीन माह पहले ही हमने कारपोरेशन को रिमाइंडर भेज दिया था। कहां-कितनी दवा जानी है। इसकी भी जानकारी पोर्टल पर दर्ज होती है। वहीं से सूची बनती है। इसके बाद दवा का वितरण होता है।
- डीएस नेगी, औषधि भंडार प्रभारी