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Coronavirus:कोरोना वायरस के खौफ पर भारी है पेट की आग Moradabad News

लुधियाना से साइकिल पर सवार होकर निकल पड़े घर। खाली जेब व भुखमरी के संकट से लिया बड़ा फैसला। लोगों को उठानी पड़ रही हैं कई प्रकार की दिक्कतें।

By Ravi SinghEdited By: Published: Wed, 01 Apr 2020 11:23 AM (IST)Updated: Wed, 01 Apr 2020 11:23 AM (IST)
Coronavirus:कोरोना वायरस के खौफ पर भारी है पेट की आग Moradabad News
Coronavirus:कोरोना वायरस के खौफ पर भारी है पेट की आग Moradabad News

मुरादाबाद,जेएनएन। सुल्तानपुर के रहने वाले दिहाड़ी मजदूरों के पेट की आग कोरोना के खौफ पर इस कदर भारी पड़ी कि वह लुधियाना से साइकिल पर सवार होकर घर के लिए निकल पड़े। चौथे दिन मुरादाबाद पहुंचे देहाड़ी मजदूरों ने कहा कि खाली होती जेब व भोजन के संकट ने कठिन व दुस्साहसिक फैसला लेने को मजबूर कर दिया।

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मंगलवार को दिन के साढ़े 11 बजे थे। कांठ रोड पर हरिद्वार की ओर से आते सात युवक दिखे। सभी की आयु 20 से 25 के बीच थी। चेहरे की थकान बता रही थी कि वह लंबी दूरी तय करके मुरादाबाद पहुंचे हैं। युवकों ने अपने नाम अरुण सिंह, घनश्याम सिंह, सुनील, अनिल दीपक, सूरज सिंह व रवि बताए। ये सभी सुल्तानपुर जिले के खसड़े गांव के रहने वाले हैं। उनका एक साथी सुरजीत आगेे बढ़ चुका है। पूरे देश मेें लाकडाउन होने के बाद मजदूरों का दूसरे क्षेत्रों से पलायन जारी है।

आड़े वक्त गुरुद्वारे का लंगर बना वरदान

मजदूरों ने बताया कि वह प्रतिदिन कमाने व खाने वाले लोग हैं। दुकान व बाजार बंद होने के बाद खाद्य सामग्री का संकट था। चारों तरफ निहारने के बाद भी पेट भरने का विकल्प नहीं मिला। आड़े वक्त में गुरुद्वारे का लंगर वरदान बना। उधर यह भी आशंका घर करने लगी कि लाकडाउन की अवधि और आगे बढ़ेगी। तभी एक ही गांव के रहने वाले सभी मजदूरों ने घर लौटने का फैसला कर लिया।

साइकिल को ही बना दिया साधन

ट्रेन व बसें बंद होने से मजदूर हताश नहीं हुए। घर पहुंचने का साधन उन्होंने वह साइकिल चुनी, जिस पर सवार होकर हर रोज काम पर निकलते थे। शनिवार शाम को सभी एक साथ लुधियाना से सुल्तानपुर रवाना हो गए। मुरादाबाद तक दूरी तय करने में उन्होंने महज सहारनपुर में ही रात्रि विश्राम किया।

सता रही खाली होती जेब

घर पर होली का त्योहार मनाने के बाद वह लुधियाना पहुंचे। चंद दिन बीते थे। तभी कोरोना महामारी का संकट खड़ा हो गया। जेब लगभग खाली है। जो चंद रुपये जेब में पड़े हैं, वह लंबी दूरी तय करने के दौरान खर्च हो रहे हैं। ऐसे में एक दूसरे का सहयोग करते हुए मजदूर घर की ओर बढ़ रहे हैं।  


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