बेटे की परवरिश को चौखट लांघ कर्मयोगी बनीं रेनू अरोड़ा
घर की महिला सुबह सबसे पहले उठती है लेकिन इस महिला के संघर्ष की कहानी थोड़ी अलग है।
मुरादाबाद (मोहसिन पाशा) : घर की महिला सुबह सबसे पहले उठती है। रोजमर्रा के कामकाज निपटाती है। पूजा-अर्चना कर बच्चों को स्कूल तो पति को काम पर भेजती है। यह भारतीय परंपरा में निहित है। इसका सभी पालन करते हैं, लेकिन मुहल्ला कंजरी सराय की 40 वर्षीय रेनू अरोड़ा इनमें से कुछ अलग हैं। वह यह सब काम करने से पहले तड़के ही सड़कों पर निकल पड़ती हैं। घर-घर अखबार पहुंचाती हैं। इसके बाद घर आती हैं और अन्य काम करती हैं। रेनू कर्मयोगी हैं। बीमारी से पति की मौत के बाद बेटे की परवरिश के लिए उनको यह काम करना पड़ा। इस तरह किया गुजारा
आमतौर पर पुरुष ही समाचार पत्र बेचने का काम करते हैं। महानगर के मुहल्ला कंजरी सराय में रहने वाले सुरेश अरोड़ा कपूर पेट्रोल पंप के पास फड़ लगाकर समाचार पत्र बेचा करते थे। यह 12 साल पुरानी बात है। खून की कमी, शुगर आदि बीमारियों ने सुरेश को घेर लिया और उनकी मौत हो गई। सुरेश के निधन के बाद पत्नी रेनू और 13 साल का बेटा रोहित असहाय हो गए। इनके सामने दो वक्त की रोटी का संकट खड़ा गया। पति की मौत के बाद अंतिम संस्कार कराकर जैसे-तैसे रेनू ने एक सप्ताह का समय घर में काटा। बेटे की तरफ देखा तो रोने लगी। कहने लगी कि अब तुम्हारी फीस कौन जमा करेगा। छोटी सी उम्र में बेटे ने मां को फड़ संभालने को कहा। ननद ने भी रेनू को समझाकर हौसला बढ़ाया। रेनू ने पति की तेरहवीं से पहले ही अपनी चौखट लांघकर बेटे के साथ टाउन हाल पहुंच गईं। वहां समाचार पत्र की एजेंसी चलाने वालों से मुलाकात करके 250 समाचार पत्र खरीदे और पहले ही दिन 200 रुपये कमाकर घर लौटीं। इसके बाद रेनू का हौसला बढ़ता गया। तभी से वह पति की फड़ पर समाचार पत्र बेचकर परिवार चलाने लगीं। वह रोजाना 200 से 250 रुपये तक कमा लेती हैं। शुरुआत में रेनू खुद घर-घर जाकर अखबार बांटती थी। बाद में बेटा उनका सहयोग करने लगा। बेटे ने भी बीकॉम की पढ़ाई पूरी करके निजी कंपनी में नौकरी करनी शुरू कर दी है। पड़ोसियों ने मदद करके बनवाया मकान
गरीबी की वजह से उनके घर की हालत अच्छी नहीं थी। रेनू ने बताया कि पहले घर रहने लायक नहीं था। कुछ मैंने और बेटे ने कमाया। बाकी आसपास के लोगों की मदद से उनके घर की हालत सुधर गई। अब तो मेरा बेटा जवान हो गया
रेनू बताती हैं कि सुबह घर से निकलकर समाचार पत्र खरीदने जाना शुरुआती दिनों में मेरे लिए बहुत मुश्किल था। हर व्यक्ति उसे तिरछी नजर से देखते थे। मैं सो रहे बेटे को नहीं उठाती थी, ताकि उसकी पढ़ाई पर असर न पडे़। अब तो मेरा बेटा जवान हो गया। वह समाचार पत्र खरीदकर लाकर फड़ तक पहुंचा देता है।